सिरपर समाजवादका भूत सवार रहनेवाले पं. नेहरू तथा समाजवादी चिंतन पद्धतिका परिणाम !

पौष कृष्ण १०, कलियुग वर्ष ५११५


१. सनातन धर्म-संस्कृतिकी अपेक्षा चीनके हिंदुस्थान प्रवेश करनेपर देशकी हानि नहीं होगी, ऐसी श्रद्धा रखनेवाले नेहरू !

हिंदुस्थानकी राज्यघटना तथा शासन समाजवादी, लोकशाही स्वरूपका है । लोकशाही एवं समाजवाद (socialism) दोनों एकसाथ कैसे हो सकते हैं ? पं. नेहरू भारतको समाजवादी मोड देना चाहते हैं । समाजवाद, एवं साम्यवाद की ओर उनका झुकाव है । सनातन हिंदु धर्म तथा संस्कृतिके नामका उच्चारण करनेपर उनके तथा उनके गुंडोंकी आंखोंसे आग बाहर निकलती है तथा कनपट्टियां झनझना उठती हैं । चीन एवं तिब्बतपर नियंत्रण पाते हुए हमारे तीनों दलोंके सरसेनापतिने (अनुमान है कि वे जेनरल थिमय्या होंगे ) नेहरूसे कहा, देखते ही देखते हम चीनकी यातायातपर रोक लगाएंगे । चीन यदि तिब्बतपर नियंत्रण करता है, तो हिंदुस्थानको चीनसे बहुत बडा खतरा है । नेहरूने अस्वीकार कर कहा कि हिंदुस्थानमें सनातन धर्म संस्कृति आनेकी अपेक्षा चीन आया, तो हिंदुस्थानकी कुछ विशेष हानि नहीं होगी ।

२. साम्यवादियोंने शांति तथा प्रेमरहित शिक्षा देकर मशीन जैसा नया मानव उत्पन्न किया

१. लेनिनने ईश्वरको अस्वीकार किया । माता-पिताको जरा भी महत्त्व नहीं दिया । शांति तथा प्रेमका जरा भी अंश न होनेवाली शिक्षा ही दी । लेनिनने प्रशासनकी शिक्षाकी नीति ही प्रकट की ।
२. इन साम्यवादियोंने ईश्वर एवं आत्माको अस्वीकार किया । नैतिक मूल्य ठुकराए, त्याग अस्वीकार किया तथा इस भौतिकवादी प्रशासनने नए यंत्रजैसा मानव उत्पन्न किया ।

३. दीर्घकालीन साम्यवादी शासनप्रणालीके दुष्परिणाम भयंकर मृत्यु तथा दासता हैं, यह एक रशियन पंडितके ध्यानमें आना

अनेक वर्षोंतक इस प्रकार  रहनेके पश्चात नोबेल पारितोषिक विजेता रशियन पंडित अलेक्जेंडर सोलेनित्झन (Alexander Solzhenitsyn) ने वस्तुस्थिति पहचान ली तथा बडे दुखके साथ कहता है, दीर्घकालीन साम्यवादी प्रणाली प्रशासनके कारण हम इंद्रियजन्य सुख तथा ऐशोआरामकी पूजा करनेवाले दास बन गए । हम अचेतनके पुजारी बन गए, वस्तुके पुजारी बन गए । उत्पादनके पुजारी बन गए । आज हमने हमारी अस्मिताही खो दी है । हमने इस साम्यवादी भयंकर प्रशासनको स्वीकार किया । उसका मूल्य हमें भयंकर मृत्यु तथा दासताके रूपमें चुकाना पडता है तथा हमने वह चुकाया है । यह साम्यवादके पशुजीवनका भार, जो हमपर जनमसे ही लद गया हो, क्या उसे फेंकने हेतु हम सिद्ध होंगे ?

४. हिंदुस्थानको समाजवादने निर्धन एवं कंगाल बनाया !

कोलोराडोके विलियम आर्मस्ट्रांग, एक ज्येष्ठ सिनेटर, बताते हैं, कि हिंदुस्थानमें इतनी निसर्गसंपत्ति है कि यह देश सारे विश्वके अनाजकी पूर्ति कर सकता है । लोकसंख्या भी अधिक नहीं है । हिंदुस्थान निर्धन वैâसे ? समाजवादने हिंदुस्थानको निर्धन बनाया । वे कहते हैं, भारतकी लोकसंख्या उचित प्रमाणसे अधिक न होकर भी समाजवाद देशको निर्धन बना रहा है । (The population of India is not in excess. The socialism is keeping the country poor.)

वे आगे कहते हैं, जापान, सिंगापुर, हांगकांग ऐसे देश हैं, जहां कोयला तथा खेतीकी भूमि जैसी कोई भी निसर्गसंपत्ति न होते हुए भी अत्यंत घनी लोकसंख्याका भरण-पोषण करते हैं; क्योंकि वे देश आधुनिक समाजवादसे मुक्त हैं । (Japan, Singapore and Hong Kong etc. are countries without almost no natural resources in terms of coal and farmland, support a very heavy densities of population, because they are free from modern Socialism)

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, वर्ष २००८)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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