पौष कृष्ण १३ , कलियुग वर्ष ५११५
प.पू. डॉ. आठवलेजी |
१. हिंदुओंके विरोधके कारण १८ वर्षोंसे सम्मत न किया गया जादूटोनाविरोधी कानून शासनद्वारा अध्यादेशके माध्यमसे जनतापर थोपना, यह लोकशाही नहीं, अपितु हुकूमशाही थी ।
२. विधानमंडलमें जादूटोनाविरोधी अध्यादेश बि अडचनें सम्मत होना चाहिए; इसलिए कांग्रेस शासनने उनके विधायकोंके लिए पक्षादेश(व्हीप) निकालनेका निर्णय लिया था । यह लोकशाहीका नहीं, अपितु ठोकशाहीका निर्देशक है ।
३. अब कांग्रेस शासनने विधानमंडलके दोनों सभागृहोंमें विरोधी दलके साथ चर्चा करनेके अतिरिक्त अमानवीय बहुमतके आधारपर जादूटोनाविरोधी कानून पारित किया । यह लोकशाही नहीं, अपितु बहुमतशाही है ।
४. यदि कोई कानून विरोधी दलोंसे चर्चा करनेके अतिरिक्त बहुमतके आधारपर सम्मत किया जाता है, तो विरोधी दलकी क्या आवश्यकता ? इस घटनासे यह सिद्ध होता है कि जिस दलका बहुमत होगा, भारतीय लोकशाहीमें उसे ही हुकुमशाही करनेकी संधि है । यह लोकशाही नहीं, अपितु एकाधिकारशाही है ।
५. भविष्यमें विधानसभामें विरोधी दलके अतिरिक्त केवल सत्ताधारी दलके ही विधायक होने चाहिए । इस अलोकशाहीके कारण विरोधी दलके विधायकोंपर व्यय की जानेवाली जनताकी राशि तो बच सकती है ।
– (प.पू.) डॉ. आठवले (१९.१२.२०१३)