पौष कृष्ण १४, कलियुग वर्ष ५११५
![]() गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी |
१. चार सौ वर्ष पूर्वके भारतकी स्थिति
लगभग ४०० वर्ष पूर्व भारतका समाजजीवन अस्तव्यस्त था । जनजीवन हृदय पिघलानेवाला था । पूरे राष्ट्र निःसत्त्व, अस्तव्यस्त एवं मृतप्राय था । देशपर यवनी अत्याचार बढ गए थे । अस्मानी सुलतानी आपत्तियोंसे सारी जनता त्रस्त थी ।
२. हिंदुस्तानमें यवनोंका कार्य तथा उनके कारण हुई देशकी स्थिति
२ अ. मुहम्मद कासिम
मुहम्मद कासिमके वर्ष ७१२ में सिंध प्रांतपर विजय प्राप्त करनेके पश्चात भारतीय जनता त्रस्त हो गई ।
२ आ. मोहम्मद गजनी
वर्ष १००१ से १०२७ इन सत्ताईस वर्षोंमें मोहम्मद गजनीने भारतपर १७ बार आक्रमण किया । सहस्रों भारतीयोंकी हत्या की । लक्षावधि हिंदुओंको मुसलमान बनाया, अनंत स्त्रियोंपर बलात्कार किए तथा अनन्वित अत्याचार किए ।
२ इ. मुहम्मद गोरी
वर्ष १२०० में मुहम्मद गोरीने जो अत्याचार एवं क्रूरता की, कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता । उसकी क्रूरताका विवरण लिखते लिखते इतिहासकारोंकी लेखनी भी थक गई है ।
२ ई. बाबरने मुसलमानी सुलतानशाहीका उदय किया
वर्ष १५२६ में बाबरने देहलीपर विजय प्राप्त किया तथा मुसलमानी सुलतानशाहीका उदय हुआ । वर्ष १५३० तक उसकी सत्ता थी ।
२ उ. हुमायूं
वर्ष १५३० से सन १५५६
२ ऊ. अकबर
वर्ष १५५६ से सन १६०५
२ ए. जहांगीर
वर्ष १६०५ से सन १६२७
२ ऐ. शहाजहां
वर्ष १६२७ से सन १६५८
३. यवनोंद्वारा किए गए अत्याचार
उनकी कालावधिमें किए गए अत्याचार अंतःकरण पिघलानेवाले हैं । उनके भीषण अमानवीय क्रूरताके अनेक विदेशी एवं एतद्देशिय विवरण पढते हैं, तो शरीरपर रोमांच आता है । आंखें सफेद होती हैं एवं सीना फट जाता है ।
३ अ. यवनोंद्वारा किए गए भयावह अत्याचारोंका एवं हृदय पिघलानेवाले यदुनाथ सरकारद्वारा दिया गया विवरण
३ अ १. भारतीयोंके श्रद्धास्थानोंका विध्वंस
अ. भारतीयोंके अनगिनत देवता एवं मंदिरोंको उद्ध्वस्त किया गया ।
आ. तीर्थक्षेत्रोंका विध्वंस हुआ ।
इ. अत्यंत निम्न स्तरपर जाकर देवी-देवताओंकी प्रतिमाका अनादर किया गया ।
ई. प्रतिमाका उपयोग तोफा डालनेके लिए किया गया ।
उ. असंख्य देवताओंकी प्रतिमाओंके पत्थर मस्जिदके पैरोंतलेके पत्थर बनाए गए ।
३ अ २. हिंदुओंकी हत्याकी विभीषिका
अ. अनंत हिंदुओंकी हत्या एक साथ की गई ।
आ. अपनी वीरताके भूषणके रूपमें हिंदुओंके सिर पेडोंपर लटकाए जाते थे ।
इ. उर्वरित हिंदुओंको शासकका धाक प्रतीत हो; इसलिए विभिन्न प्रकारकी क्रूरताके नए-नए प्रकरण अपनाए जाते थे ।
३ आ. यवनोंके अत्याचारोंके हृदयविदारक अनुभव
स्त्रीलोलुप, विलासी एवं ऐयाशी यवनोंद्वारा की गई लूटमार, अग्निकांड, हत्या, बलात्कार, मंदिरोंकी तोडफोड, देवी-देवता एवं तीर्थक्षेत्रोंका विध्वंस, बलपूर्वक किया गया धर्मांतरण, बहुमूल्य ग्रंथोंको जलाना तथा अनंत कला-कौशलकी वस्तुओंका विध्वंस, इतिहासमें इन बातोंकी कोई बराबरी नहीं कर सकता । उनका धर्मप्रेम, अनाडीपन तथा अनिवार्य राज्यतृष्णा आदि हृदयविदारक अनुभवोंसे पूरा राष्ट्र अंदर-बाहर पूरी तरहसे त्रस्त हो गया था ।
४. यवनोंके अत्याचारोंके कारण राष्ट्रकी दुस्थिति
४ अ. हिंदुओंने स्वार्थांधता तथा भयके कारण स्वयंका विनाश किया
मुसलमानी सत्ता अत्याचारी थी ही, किंतु हिंदुओंने भी स्वार्थांधता एवं भयसे स्वयंका विनाश किया । हिंदुओंके स्वार्थने परिसीमातक पार की थी । पिता-पुत्र, भाई-बहन आदि रक्तसंबंधी भी एक दूसरेका साथ देनेके लिए तैयार नहीं थे । अब क्या देवता एवं कौनसा धर्म ? कौनसे राष्ट्र एवं क्या स्वतंत्रता ? कौनसा सुराज्य एवं कौनसा रामराज्य ?
४ आ. हिंदुओंके स्वार्थका समाजमनपर हुआ परिणाम
सारे प्रजाजन दुःख-दारिद्यसे पीडित थे । उनका स्वाभिमान नष्ट हो चुका था । उनमें उत्साहका अभाव था । ऐसे विचार भी उनके मनमें नहीं आते थे कि कुछ देवधर्मका कार्य करें, अपने मानबिंदूकी रक्षा करें ।
४ इ. हिंदु वीर नेताओंकी दयनीय स्थिति
हिंदु वीर नेता अपने कंधेपर मुसलमानी राज्यसत्ताका भार उठा रहे थे । जो पेटको रोटी देगा, वह स्वामी, उस समयके बुदि्धमान एवं प्रतिषि्ठत व्यक्तियोंकी यही भावना थी । क्षात्रधर्मका साक्षात प्रतीक अपनी वीरताद्वारा त्रिखंडपर विजय प्राप्त करनेवाले रणवीर राजपूत देव, धर्म, देश, न्याय तथा अन्यायकी ओर अनदेखा कर अविचारसे राजनेताओंके लिए प्राणार्पण करनेमें ही भूषण मान रहे थे ।
४ ई. हिंदुओंकी असि्मताका लय
दासता तथा दारिद्यकी चक्कीमें पिसनेवाले हिंदुओंका आत्मविश्वास ही नष्ट हो गया था एवं स्वाभिमान भी न्यून हुआ था । असि्मताका लय हुआ था । भारतपर आई यही सबसे बडी आपत्ति थी ।
४ उ. पूरा राष्ट्र ही लाचार हो गया था
राजनेताए मुसलमान थे । वरिष्ठ शासनकर्ता हिंदु जनतापर अत्याचार कर रहे थे । ग्रामीण क्षेत्रके मुसलमान प्रजाजन भी, राज्य अपना है, इस दुराभिमानसे उद्दंड हो गए थे । हिंदु जनता प्रतिकारशून्य, नपुंसक, किंकर्तव्यविमूढ तथा मृतप्राय हो गई थी । पूरा राष्ट्र ही लाचार था ।
४ ऊ. धार्मिक क्षेत्रोंमें भी विभिन्न प्रकारके बहाने उत्पन्न होना
धार्मिक क्षेत्रोंमें भी विभिन्न प्रकारके बहाने उत्पन्न हुए थे । विभिन्न मत एवं पाखंड आ गए थे । परमार्थका बाजार चल रहा था । दाभिंकोंकी स्वार्थी चेष्टाओंकी मात्रा बढ गई थी । समाजमें श्मशानकी शांति व्याप्त हो गई थी ।
५. देशको आत्मविश्वासशून्य एवं हीनसत्त्व समाजमें सत्त्व उत्पन्न कर चैतन्य उत्पन्न करनेवाले महापुरुषकी आवश्यकता थी । उस समय श्री गोस्वामी तुलसीदास नामक युगपुरुषने यह दुष्कर कार्य किया ।
देशको आत्मविश्वास शून्य एवं हीनसत्त्व समाजमें सत्त्व उत्पन्न कर चैतन्य उत्पन्न करनेवाले महापुरुषकी आवश्यकता थी । मृत राष्ट्रको संजीवनी देनेवाला, देवधर्मका अभिमान जगानेवाला, गहरी निद्रामें खोनेवाले राष्ट्रको जागृत करनेका दुष्कर कार्य करनेवाले महामानवकी आवश्यकता थी । समाजमें स्वार्थ, दंभ, भय एवं अंधेपनका विरोध करनेवाला, उन्हें कत्र्तव्यकी दिशा दिखानेवाले प्रभावी युगपुरुषकी आवश्यकता थी । श्री गोस्वामी तुलसीदास नामक युगपुरुषने यह दुष्कर कार्य किया ।
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन (१८.१०.२०१२))
वर्तमानमें भी भारतकी स्थिति ऐसी ही हो गई है । इस स्थितिसे बाहर निकलनेके लिए ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करना अनिवार्य है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात