वियतनामका आदर्श: छत्रपति शिवाजी महाराज

पौष अमावस्या, कलियुग वर्ष ५११५


दक्षिण पूर्वका वियतनाम जैसा छोटा देश अपनी स्वतंत्रता हेतु वर्षोंसे अण्वस्त्र सिद्ध, विश्वके सबसे बलाढ्य अमेरिकाके साथ लडता रहा तथा केवल छत्रपतिद्वारा प्रक्षेपित प्रेरणाके बलपर जीता भी । छत्रपतिने भी इसी ‘कूटनीति’का उपयोग कर मुगलोंको पराभूत किया था । वियतनामी योद्धाओंने वही पाठ आचरणमें लाया था । वियतनाम युद्धकी जीतके पश्चात वहांके राष्ट्रपतिने स्वयं, ‘छत्रपति शिवाजी महाराजकी युद्धनीतिका पाठ `हमने आचरणमें लाया; अत: हम बलाढ्य अमेरिकाको हरा सके !’ ऐसा वक्तव्य दिया था ।

वियतनाम एक ऐसा देश है, जिसने हिंदुस्थानसे प्रेरणा प्राप्त की, उसका भी एक इतिहास है । वियतनाम तथा अमेरिकाके मध्य २० वर्ष युद्ध चलता रहा । अमेरिकाको लगता था कि इस देशको नष्ट करने हेतु केवल कुछ समय ही लगेगा, केवल कुछ घण्टे ही पूरे होंगे; किंतु वियतनामका युद्ध अमेरिकाको बहुत महंगा पडा; क्योंकि वियतनामी योद्धाओंने छत्रपति शिवाजी महाराजका आदर्श मानकर उनकी युद्धनीतिका आलंबन किया था । वियतनामके इस युद्धमें विजयी होनेपर वार्ताकारोंने उनके राष्ट्रपतिसे इस जीतका रहस्य पूछा था, इसपर उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसी महासत्ताको पराभूत करना अपने देश हेतु असंभव था, यह बात स्पष्ट है; किंतु युद्धकी कालावधिमें हिंदुस्थानके एक बहादुर राजाका चरित्र मेरे हाथमें आया था । उनसे प्रेरणा लेकर ही हमने युद्धनीति निश्चित की तथा अत्यंत दृढतासे उसे कार्यान्वित किया, परिणामस्वरूप, कुछ दिनोंमें ही हम जीत रहे हैं, ऐसा दिखाई देने लगा । इसपर वार्ताकारोंने पूछा, वह हिंदुस्थानी बहादुर राजा कौन था ? तो राष्ट्रपतिने उत्तर दिया, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज !’ यह महापुरुष यदि हमारे देशमें जनम लेता, तो आज हम पूरी दुनियापर राज करते । स्वयंकी मृत्युके पूर्व उन राष्ट्रपतिने अपनी अंतिम इच्छा लिखकर रखी थी कि मेरी समाधिपर निम्नांकित संदेश लिखा जाए, ‘छत्रपति शिवाजी महाराजका एक सैनिक समाधिस्त हुआ !’ उनकी समाधिपर आज भी यह संदेश देखनेको मिलेगा ।

 


 

कुछ वर्ष पूर्व वियतनामकी महिला विदेशमंत्री भ्रमण हेतु हिंदुस्थान आई थीं । राजनैतिक शिष्टाचारानुसार उन्हें लाल किला तथा महात्मा गांधीकी समाधि दिखाई गई । वो सब देखनेके पश्चात उन्होंने प्रश्न किया कि छत्रपति शिवाजी महाराजकी समाधि कहां है ? उनका यह प्रश्न सुनकर हिंदुस्थानी राजशिष्टाचार अधिकारी आश्चर्यचकित होग गए । उन्होंने जानकारी दी कि छत्रपति शिवाजी महाराजकी समाधि तो महाराष्ट्रके रायगढमें है । इसपर उन्होंने कहा कि मुझे छत्रपति शिवाजी महाराजके समाधिस्थान जाकर शीष झुकाना है ! जिनकी प्रेरणासे हम अमेरिका जैसे महाबलाढ्य राष्ट्रको पराभूत कर सके, उनकी समाधिके सामने शीष झुकाए बिना मैं मेरे देश वापिस जा ही नहीं सकती । वियतनामकी यह परराष्ट्रमंत्री रायगढ गर्इं । उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराजकी समाधिका दर्शन किया । उन्होंने रायगढकी मिट्टी अपनी मुट्ठीमें ली तथा बडी श्रद्धासे अपनी थैलीमें (बैगमें) सुरक्षित रखी । इतना ही नहीं अपितु मिट्टीसे भरा हाथ उन्होंने अपने माथेसे लगाया । जैसे उन्होंने उस पवित्र मिट्टीका टीका ही अपने माथेपर लगाया । उनकी यह स्थिति देखकर विदेश मंत्रालयके अधिकारी केवल आश्चर्यचकित ही नहीं हुए, अपितु भावविभोर हो गए । वार्ताकारों तथा वहां उपस्थित कुछ अधिकारी व्यक्तियोंने उनसे इस संदर्भमें प्रश्न किया, इसपर उन्होंने कहा, यह शूरवीरोंके देशकी मिट्टी है । इसी मिट्टीमें छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे महान राजाका जनम हुआ । अब यहांसे जानेपर मैं यह मिट्टी वियतनामकी मिट्टीमें मिला दूंगी । इससे हमारे देशमें भी ऐसे महान शूरवीर नायक जनम लेंगे । इस घटनाको अब बहुत वर्ष बीत गए हैं । हाल ही में ‘सशक्त भारत’ नामके एक नियतकालिकके नवंबर माहके संस्करणमें इस घटनाका विस्तारपूर्वक वृत्तांत छपकर आया है ।


दक्षिण पूर्वका एक छोटासा देश अपनी स्वतंत्रता हेतु वर्षोंसे अण्वस्त्रोंसे सज्ज विश्वके सबसे बलाढ्य राष्ट्रसे लडता रहा तथा केवल छत्रपतिकी प्रेरणासे जीता भी । अमेरिका दूसरे महायुद्धका जागतिक विजयी राष्ट्र था; किंतु वियतनाम स्थित अमेरिकाकी बलाढ्य सेनाको, उनपर आक्रमण कब, कहां, तथा कैसे होता था, यह समझमें ही नहीं आता था । झपट्टा मारकर वियतनामी गोरिल्ला घने जंगलमें कहां, कैसे छुप जाते थे, अमेरिकन सेनाकी समझमें यह बात कभी भी नहीं आई । वियतनामका विभाजन करनेका अमेरिकाका सपना कभी भी पूरा नहीं हो सका । छत्रपतिने भी इसी ‘कूटनीति’ का उपयोग कर मुगलोंको पराभूत किया था । वियतनामी योद्धाओंने वही पाठ दोहराया था । वैसे तो अमेरिकाके पास अति संवेदनशील तंत्र थे । जिस क्षेत्रमें मानवी मूत्र होगा, उस क्षेत्रमें यंत्रके दिए जल जाते थे । वियतनामी गोरिल्ले कहां छुपे हैं, यह वे खोज निकालते थे तथा उसी स्थानपर बम गिराकर गोरिल्लाओंको मारते थे । उस समय पुन: छत्रपतिकी ‘कूटनीति’ उनके काम आई । इन गोरिल्लाओंने मिट्टीके मटकेमें मूत्र इकट्ठा कर वे मटके पडोंपर लटका दिए । परिणामस्वरूप, अमेरिकन यंत्रोंको प्रत्येक क्षेत्रमें गोरिल्ले ही होनेके संकेत प्राप्त होने लगे । अमेरिकाने गोरिल्लाओंको पकडने हेतु खटमलोंका उपयोग किया । खटमल खूनकी प्याससे मानवकी दिशामें जाते हैं; किंतु गोरिल्लाओंने गैसका उपयोग कर सारे खटमल ही मार डाले । अमेरिकाने दिमाग लगाकर ऐसी असंख्य कार्यवाहियां कीं; किंतु वियतनामी गोरिल्ले छत्रपतिकी ‘कूटनीति’ के सहारे उनपर हावी हो गए । अंतमें अमेरिका समझ गई कि अपना अणुबम स्वतंत्रता हेतु लडनेवाले इन योद्धाओंका साहस नहीं तोड सकता । अंततः अमेरिकाको पीछे हटना पडा । इस ‘कूटनीति’ पर युद्ध वार्ताकार श्री. मिलींद गाडगीलने एक रंजक पुस्तक लिखी है । वियतनामी गोरिल्लाओंने  छत्रपतिकी यह शिक्षा आत्मसात की तथा वे विजयी हुए । यह बात अपने लिए अत्यंत अभिमानास्पद है ।

स्त्रोत : दैनिक सामना

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