वैशाख कृष्णपक्ष १२, कलियुग वर्ष ५११७
देश में भले ही संस्कृत उपेक्षा की शिकार हो, लेकिन जर्मनी में संस्कृत और इंडोलॉजी कोर्सेस की मांग को संकेत माने, तो यह देश संस्कृत की परंपरा और सभ्यता को सहेजने का संभावित संरक्षक दिख रहा है ।
हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ने संस्कृत और इंडोलॉजी कोर्सेस की भारी मांग के बाद स्विट्जरलैंड, इटली सहित भारत में भी स्पोकेन संस्कृत का समर स्कूल शुरू करने जा रहा है ।
यूनिवर्सिटी में क्लासिक इंडोलॉजी के हेड प्रोफेसर एक्सेल माइकेल ने कहा, ‘जब हमने इसे 15 साल पहले शुरू किया था, तो कुछ सालों के बाद इसे बंद करने के बारे में सोच रहे थे । हालांकि अब इसकी स्ट्रेंथ बढ़ाने जा रहे हैं और दूसरे यूरोपियन देशों में भी कोर्सेस शुरू करने जा रहे हैं ।’
जर्मनी की टॉप यूनिवर्सिटी में से १४ संस्कृत, क्लासिकल और मॉडर्न इंडोलॉजी पढ़ाती है, जबकि ब्रिटेन में सिर्फ चार यूनिवर्सिटी संस्कृत और अन्य कोर्सेस पढ़ाती है ।
हर साल अगस्त महीने में शुरू होने वाला समर स्कूल एक महीने चलता है और पूरी दुनिया से छात्र आवेदन करते हैं । डॉ. माइकेल ने कहा, ‘अब तक ३४ देशों के २५४ छात्रों ने इस कोर्स में हिस्सा लिया है । हालांकि हर साल बड़ी संख्या में आवेदन खारिज कर देते हैं ।’ जर्मनी के अलावा अमेरिका, इटली, ब्रिटेन और बाकी यूरोपीय देशों से छात्र संस्कृत पढ़ने आते हैं ।
प्रोफेसर ने कहा कि संस्कृत को धर्म और एक निश्चित राजनीतिक विचारधारा से जोड़कर देखना बेवकूफी है । साथ ही संस्कृत की समृद्ध विरासत को तुच्छ आंकना है । उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि बौद्ध धर्म के मूल विचार भी संस्कृत में है । प्राच्य दर्शन की उत्पत्ति, इतिहास, भाषा, विज्ञान और संस्कृति की बेहतर समझ के लिए संस्कृत के मौलिक साहित्य को पढ़ना जरुरी है । क्योंकि यह सबसे पहले हुई खोजों और विचारों में से एक हैं ।’
हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में संस्कृत पढ़ने वाली मेडिकल की छात्रा फ्रैंसेस्का लुनेरी ने कहा, ‘मैं इस बात से सहमत हूं । मुझे मनोविश्लेषण में रुचि है और मैं जानना चाहती हूं कि टेक्स्ट, कल्चर और समाज के जरिए मानव विचारों की उत्पत्ति कैसे हुई ।’
लुनेरी ने कहा, ‘गिरिन्द्र शेखर बोस के कार्य को समझने के लिए मैं बांग्ला सीखना चाहती हूं । प्राच्य मनोविश्लेषण पर उनका काम बेहतरीन है और उस पर कोई अध्ययन नहीं हुआ है, यहां तक कि भारत में भी, संस्कृत सीखना इसी दिशा में पहला कदम है ।’
डॉ. माइकेल ने कहा दुनिया में संस्कृत के विद्वानों के लिए जर्मनी स्टोर हाउस बना हुआ है । हावर्ड, कैलिफोर्निया, बर्कले और यूके में संस्कृत के विद्वान भी जर्मन हैं । ऐसा क्यों? के सवाल पर उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, ‘संभवत हमने भारत को कॉलोनी नहीं बनाया और उसके प्रति एक रोमांटिक दृष्टिकोण बनाए रखा ।’
स्त्रोत : आज तक