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१. लोकमान्य तिलकका ईसाईयोंके हाथका खाना खानेसे पुणेके ब्राह्मणोंद्वारा बहिष्कार किया जाना तथा प्रायश्चित्त लेनेपर उसे निरस्त करना
लोकमान्य तिलककी वह पंचहौद मिशन, पुणेकी घटना ! वहां उन्होंने एक वार्ताकारपरिषदमें ईसाई लागोंके हाथसे चाय बिस्कुट खाए; अत: पुणेके ब्राह्मणोंने उनका बहिष्कार किया । तत्पश्चात संकेश्वथर-करवीर शंकराचार्यने उन्हें प्रायश्चित्त बताया । उन्होंने प्रायश्चित्त लिया । तदुपरांत ब्राह्मण उनके घर जाने लगे एवं उनके सामाजिक बहिष्कारको निरस्त किया गया ।
२. अपराधीके कारागृहमें रहकर दंड पूरा करनेपर भी समाज उसे अपराधी समझता है, इस कारण समाजमें उसका व्यवहार करना कठिन हो जाना
आजके फौजदारी अधिनियमानुसार किसीको अपराधी सिद्ध किए जानेपर वह कारागृहमें गया, तो उसे पुन: समाजमें व्यवहार करना असंभव होता है । अपराधी दंड भुगतकर भी केवल अपराधी ही रहता है । एक बार ‘अपराधी ’ का ठप्पा लग गया, तो वह सदाके लिए लग जाता है । (Once a criminal always a criminal.)
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३. अंग्रेजी नाटककार एवं महाकवि ऑस्करको अपराधी समझकर समाजद्वारा दिए गए कष्ट
३ अ. अपराधी जानकर लोगोंद्वारा ऑस्करकी देहपर थूकना: ‘ऑस्कर वाईल्ड’ शेक्सपियरके समकक्षवाले अंग्रेजी नाटककार एवं महाकवि थे । उन्हें दो वर्षोंका कारावास दिया गया था । इससे उनकी बहुत अपकीर्ति हुई । उनकी सजा समाप्त होनेपर एक पुलिस उन्हें एक छोटेसे स्थानपर छोड जाती है । दो वर्षों बाद वे बाहरकी दुनिया, निसर्ग देख रहे थे, तथा ‘कितना सुंदर’ ! (हाऊ ब्युटीफूल) ऐसा बोलते हैं । उनकी आंखोंमें आंसू आ जाते हैं । कविहृदय जो ठहरा ! वह पुलिसवाला उन्हें कहता है, `हे मूर्ख, ऐसा कुछ मत बडबडाओ । लोग तुमपर थूकेंगे !’ वैसा ही हुआ । किसीने तो ऑस्करको देखा, पहचाना, तथा उनपर थूक दिया । ‘थू ! तेरी जिंदगी !' ऑस्करमें मानो आग लग जाती है । वहांसे दौडकर वे एक मित्रके पास जाते हैं ।
३ आ. ऑस्करके नाटकों हेतु लोगोंकी भारी भीडके पश्चात भी अपराधीको स्थायी रूपसे अपराधी समझनेवाले विदेशियोंके कारण बाहरकी दुनियामें मुंह दिखानेमें स्वयंको असमर्थ पाना : ऑस्करके नाटकोंमें लोगोंकी बहुत बडी भारी भीड होती थी । मानो जैसे लोगोंकी बाढ आ गई हो । कई माहतक उनके नाटक ‘हाऊस फुल! ’ (संपूर्ण स्थान भरे हुए ) चलते थे; किंतु वे बाहर मुंह नहीं दिखा सकते थे ।
३ इ. समाजकी इसी विचारपद्धतिसे ऑस्करको अज्ञातवासमें रहना पडा तथा मनपर परिणाम होनेसे उनकी मृत्यु हो जाना : एक बार एक मित्र रातमें भेष बदलकर उन्हें फ्रान्स ले जाता है । वहां भी उन्हें पहचाने जानेका डर था । नाम बदलकर वे फ्रान्समें अज्ञातवासका जीवन जीते हैं । उनके मनपर इतना गहरा परिणाम होता है कि डेढ वर्ष पश्चात फ्रान्समें ही उनकी मृत्यु हो जाती है । विदेशमें एक बार कोई अपराधी सिद्ध हुआ, तो उसके साथ जीवनभर अपराधी समझकर बर्ताव किया जाता है ।
४. हिंदु धर्मकी महानता
हिंदुओंकी प्रायश्चित्त पद्धतिमें ऐसा कभी भी नहीं होता तथा होगा भी नहीं ।
४. अ विदेशमें `चोरी’ अपराध, तो भारतमें `व्यभिचार’ भयानक अपराध है : आज वहां समाज अर्थप्रधान हो रहा है । वहां चोरी अत्यंत भयानक अपराध है, तो हमारे वैदिक समाजमें व्यभिचार भयानक अपराध है ।
४ आ. मनुस्मृतिके अनुसार पापों हेतु प्रायश्चित्त लेनेपर देह एवं मन अनुशासित होनेसे व्यक्ति उन अपराधोंसे परावृत्त होता है : मनुस्मृतिमें पाप, उपपाप तथा उनके प्रायश्चित्त दिए हैं । प्रायश्चित्त ऐसे हैं जिनका आचरण करनेपर देह तथा मन दोनों ही में अनुशासन आ जाता है तथा वह व्यक्ति उस अपराधसे परावृत्त होता ही है ।
४ इ. हिंदु धर्ममें पापनिवारण हेतु अलग-अलग मार्ग उपलब्ध होना : ईसाई धर्ममें कन्फेशन्स (Confessions) (पाप स्वीकार करना) हैं, उसी प्रकार वैदिक धर्ममें भी है । ब्राह्मणसभा, (पंडितोंकी सभा), धर्मसत्र अथवा होमहवनके स्थानपर अपना पाप घोषित करना, सारे ब्राह्मणोंके सामने पापको स्वीकार करना, प्रायश्चित्तका एक प्रकार है, ऐसा मनुने बताया है ।
४ ई. एक ब्रह्मचारीका स्त्रीसंगसे पापी बननेके कारण उनके आचार्यने उन्हें प्रायश्चित्त बताकर, उनका शुदि्धकरण किया : ‘दक्षिणामूर्ति’ कथा पढनेमें आई । एक ब्रह्मचारी स्त्रीसंगसे पातकी बनता है । अपने आचार्यको वह अपना पाप बताता है । तत्पश्चात छह माह प्रतिदिन अलग-अलग घर तथा बादमें परिसरके गावोंमें भिक्षा मांगने जाता है । भिक्षा मांगते समय अपना पाप बताता है, मैं ब्रह्मचारी हूं तथा गुरुकुलमें रहता हूं; मेरा वेदाध्ययन हो गया है और मैंने स्त्रीसंभोगका पाप किया है । ’, ऐसा वह सर्वत्र बताता है । तदुपरांत उसके आचार्यने उससे दो ‘चांद्रायणे’ तथा ‘विष्णुयाग’ करवाए । वह शुद्ध हो जाता है । आचार्यके ही रिश्तेदारोंमेंसे ‘गोत्र’ मिलनेवाली एक युवती उसे पत्नीके रूपमें सौंप दी गई । दोनोंका विवाह होता है । अब उसे सामाजिकमान्यता (Social Recognition) प्राप्त होती है ।
– गुरुदेव डा. काटेस्वामीजी (संदर्भ : मासिक घनगर्जित, मार्च २०१३)
(हिंदु धर्मकी महानता यही है कि प्रायश्चित्तकर्म द्वारा वह स्वयंका शुदि्धकरण कर सकता है । भगवान श्रीकृष्ण भी गीतामें बताते हैं, `किसीने कितना भी बडा पाप क्यो न किया हो, किंतु यदि उसकी आंखोंमें पश्चात्तापका एक भी आंसू आया, तो वह व्यक्ति मुझे प्रिय है तथा मैं उसका उद्धार करता हूं’ । हिंदु धर्ममें बताए गए कर्मकांडके प्रायश्चित्त तथा भगवानको अपेक्षित मनशुदि्धकरण करनेवाले प्रायश्चित्त के कारण ही हिंदु धर्म सर्वश्रेष्ठ है । इसके सामने पाश्चात्त्योंकी पापकर्म हेतु दंडपद्धति कितनी अपरिपक्व तथा संकुचित है, इससे यही बात सामने आती है । उसमें मानवका पुनरुद्धारक तत्त्व ही नष्ट हो जाता है । इसके पश्चात भी हमने अंधे होकर अंग्रेजोंद्वारा थोपी गई अन्याय बढानेवाली न्यायपद्धति आरंभ रखी तथा उसके दुष्परिणाम भुगत रहे हैं । हिंदु राष्ट्रमें ऐसा कदापि नहीं होगा । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात