पौष शुक्ल पक्ष ७, कलियुग वर्ष ५११५
जमात सिबिर के लोगों ने हिंदुओं के गांवों पर हमला किया,…ये तस्वीर बांग्लादेश की चुनावी हिंसा की है |
ढाका – बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार का विरोध कर रही विपक्षी बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी और प्रतिबंधित संगठन जमात सिबिर ने अब वहां रह रहे हिंदुओं पर निशाना साधना शुरू कर दिया है । आलम ये है कि रविवार को हुए हिंसक चुनाव के बाद से लगातार देश के कई जिलों में हिंदू आबादी पर संगठित हमले हो रहे हैं । उनके घरों और दुकानों को लूट लिया गया है. कहीं मंदिर तो कहीं खुले मैदान में शरण लिए ये लोग वापस नहीं लौट रहे हैं, क्योंकि प्रशासन भी उनकी सुरक्षा का आश्वासन नहीं दे पा रहा है ।
बांग्लादेश के अखबार डेली स्टार के मुताबिक रविवार को वोटिंग के बीएनपी और जमात सिबिर के लोगों ने हिंदुओं को लूटा और उनके घरों में आग लगा दी । हिंसा की ये वारदातें ठाकुरगांव, दिनाजपुर, रंगपुर, बोगरा, चिटगॉन्ग जैसे कई इलाकों में हुईं । इस हिंसक तरीके को देखकर लोगों को १९७१ की हिंसा याद आ गई. तब भी सेना समर्थित कट्टरपंथियों ने हिंदू आबादी को ऐसे ही निशाना बनाकर जुल्म ढाए थे ।
इस बारे में अभयनगर के बिस्वजीत सरकार ने अपना अनुभव बताया । उनके मुताबिक १९७१ में पाकिस्तानी फौज और रजाकरों ने हमारे गांव में आग लगा दी थी । अब २०१४ में भी वैसा ही माहौल बन गया है । दंगाइयों ने पेशे से मछुआरे बिस्वजीत के दुकान और घर में आग लगा दी और उनका मछली पकड़ने का जाल जला दिया ।
जमात के दंगाइयों ने मायारानी नाम की एक बुजुर्ग घरेलू काम करने वाली नौकरानी को भी नहीं बख्शा । उसका सब कुछ, यहां तक की झोपड़ी में रखा पांच किलो चावल भी लूट लिया । मायारानी ने बताया कि उनके पास सिर्फ बदन का एक कपड़ा साड़ी बची है ।
वोट डाला तो भुगतो अब
गांव वालों के मुताबिक जमात शिबिर के एक्टिविस्ट ने चुनाव में हिस्सा न लेने की धमकी दी थी । मगर मालोपारा समेत कई इलाकों के वोटरों ने इसकी परवाह नहीं की । इसके बाद वोटिंग वाले दिन ही शाम को चार पांच सौ की भीड़ ने गांवों पर हमला करना शुरू कर दिया । दो घंटे तक हिंसा का नंगा नाच चला, जिसमें सैकड़ों बम फोड़े गए । सैकड़ों घर लूटे और जला दिए गए । हजारों लोगों को घर-गांव छोड़कर जाना पड़ा । ज्यादातर लोगों को नदी पार कर दूसरे गांव में शरण लेनी पड़ी. कई लोग जंगल में छिप गए । फिलहाल इनमें से ज्यादातर लोग इस इलाके में चल रहे एक इस्कॉन कृष्ण मंदिर के बरामदे में डेरा डाले हुए हैं ।
जब सब हो गया, तब आई पुलिस
स्थानीय लोगों के मुताबिक उन्होंने हिंसा की शुरुआत में पुलिस-प्रशासन और सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेताओं को फोन किया । मगर कोई फरियाद काम नहीं आई. रात में पुलिस तब आई, जब सब कुछ बर्बाद हो चुका था ।
इसी तरह से चिटगॉन्ग और दिनाजपुर में भी सैकड़ों घर और दुकानें जला दिए गए । स्थानीय लोगों के मुताबिक २ हजार से भी ज्यादा जमात सिबिर के लोगों ने धारदार हथियारों के साथ वोटिंग वाले दिन शाम को हमला किया.इन लोगों ने चिटगॉन्ग में एक मंदिर को भी लूटने की कोशिश की मगर स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के चलते वह ऐसा नहीं कर पाए ।
स्त्राेत : आज तक