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वैज्ञानिक स्तरपर ‘अग्निहोत्र’द्वारा जलप्रदूषण रोकना संभव होने की बात सिद्ध !

यज्ञसामर्थ्य नकारनेवाले वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर सिद्ध करने पर क्या इसे स्वीकार करने का विवेक दर्शाएंगे ?

सोमयाग यज्ञ के स्थान पर खडे रहनेवाले श्री. प्रणय अभंग

पुणे (महाराष्ट्र) : वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर सिद्ध हो गया है कि अग्निहोत्रद्वारा वायु प्रदूषण ही नहीं, अपितु जलप्रदूषण भी न्यून करना संभव है। मुळा-मुठा नदी के प्रदूषित जल पर अग्निहोत्र की राख का क्या परिणाम होता है, यह जांचने पर पता चला कि प्रदूषित जल की क्षारता ८० प्रतिशत न्यून हो गई है। यह राख सूक्ष्म-जीवप्रतिबंधक (एंटिमायक्रोबियल) गुणधर्म दर्शा रही है। जलशुद्धि हेतु अग्निहोत्र प्रभावी होने की बात सामने आई है। (क्या इस प्रयोग का लाभ केंद्र एवं राज्यशासन भारत की नदियोंके शुद्धिकरण हेतु करेंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) ‘इंटरनैशनल जर्नल ऑफ एग्रिकल्चर साइन्स एंड रिसर्च’ ने भी (आइ.जे.ए.एस.आर.) इस संशोधन पर ध्यान केंद्रित किया है। श्री. प्रणय अभंग एवं श्रीमती मानसी पाटिल ने राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के (एन.सी.एल्) निवृत्त शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे के मार्गदर्शन में यह संशोधन किया है। फर्ग्युसन महाविद्यालय के बायोटेक्नोलोजी विभाग एवं रमणबाग विद्यालय में अग्निहोत्र के प्रयोग किए गए।

श्री. प्रणय अभंग ने कहा कि अग्निहोत्र की ताजी राख एक ‘कॉलम’ में ली गई। इस में नदी का ५०० मिलीलिटर प्रदूषित जल छोडा गया। तदुपरांत इस जल का अभ्यास करने पर पता चला कि उस की क्षारता ८० प्रतिशत न्यून हो गई। फसल बढना तथा बीजोंको अंकुर फुटने की प्रकिया के संदर्भ में अग्निहोत्र का प्रयोग करने पर उसके अच्छे परिणाम मिले। एक ही प्रकार की, समान उंचाई की, समान पृष्ठ रहनेवाले दो पौधे रोपे दो अलग अलग कक्षों में रखे गए। दोनों पौधोंको समान अनुपात में सूर्यप्रकाश एवं जल उपलब्ध होने की व्यवस्था की गई। इस में एक कक्ष में अग्निहोत्र किया गया। परिणाम दिखाई दिया कि जिस कक्ष में अग्निहोत्र किया गया, उस कक्ष में पौधोंकी बाढ भली-भांति हुई है। मंत्रोच्चार के साथ किया गया अग्निहोत्र एवं बिना मंत्रोच्चार के किया हुआ अग्निहोत्र का भी पौधोंके बढनेपर होनेवाले तुलनात्मक परिणाम का अभ्यास किया गया। इस समय ऐसा पाया गया कि मंत्रोच्चार के साथ किए गए अग्निहोत्र के कारण पौधे की बाढ भली भांति हो गई। अग्निहोत्र के कारण सल्फर डायऑक्साईड तथा नायट्रोजन डायऑक्साईड इन प्रदूषकोंका प्रमाण भी ९० प्रतिशत अल्प हो गया है तथा वातावरण के रोगजंतुओंका प्रमाण भी न्यून हो गया है।

श्री. अभंग ने आगे ‘अग्निहोत्र’ इस विषयपर संशोधन करनेकी इच्छा प्रदर्शित की; किंतु वैदिक विज्ञान की इस विषयपर संशोधन करने के लिये निधी की जादा आवश्यकता रहती है, ये बात भी उन्होने बात दी। (वैदिक प्रयोगोंके संदर्भ में चले ऐसे संशोधन को बढावा देकर क्या भाजप शासन ‘अच्छे दिन’ लायेगी ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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