राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना भी भारत को ‘इंडिया मुक्त’ बनाने की है। संघ की राय है कि देश को इंडिया नाम से मुक्त करके इसका नाम सिर्फ भारत ही रहने दिया जाए। इससे नागरिकों में राष्ट्रप्रेम के साथ अपनी संस्कृति, सभ्यता और जड़ों से जुडऩे की भावना सुदृढ़ होगी। यहां तक कि हिंदी, हिंदू, हिंदुस्थान का नारा बुलंद करने वाले संघ को हिंदुस्थान का उर्दू तर्जुमा हिंदुस्तान भी रास नहीं आता है।
इस आशय का प्रस्ताव संसद में लाने का सुझाव भी संघ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भी भेजा है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें मांग की गई है कि कि भारत को भारत ही कहा जाए, इंडिया नहीं।
हालांकि संघ के मंतव्य को पूरा करने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करना होगा क्योंकि इंडिया जो कि भारत है के वाक्य से ही संविधान की प्रस्तावना शुरु होती है, जिसे बदलना होगा। संसद और राज्यों का राजनीतिक गणित देखते हुए यह आसान नहीं है।
संघ नेताओं का कहना है कि दुनिया के किसी भी देश के तीन नाम नहीं हैं। इसलिए भारत नाम पर किसी को कोई विरोध नहीं होना चाहिए और अगर सरकार इस आशय का प्रस्ताव संसद में लाती है तो उसे समर्थन जुटाने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। फिर जो विरोध करेगा, जनता के बीच यही संदेश जाएगा कि उसे भारत से नहीं इंडिया से प्रेम है। जिसका राजनीतिक लाभ भाजपा को ही मिलेगा।
संघ की मोदी सरकार से कई अपेक्षाएं
यह जानकारी देते हुए संघ नेतृत्व के करीबी सूत्रों ने बताया कि अप्रैल में बेंगलुरु में हुई भाजपा कार्यकारिणी के दौरान सरकार और मंत्रियों के कामकाज पर संघ नेताओं के साथ भाजपा के कुछ नेताओं के साथ हुई बातचीत में संघ नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया था कि अपने वैचारिक एजेंडे के तहत संघ की भाजपा की पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं। उसके तहत इंडिया की जगह देश का नाम सिर्फ भारत रखने पर भी चर्चा हुई।
संघ नेतृत्व के के करीबी सूत्रों के मुताबिक तीन अप्रैल को बेंगलूरु में संघ के सर कार्यवाह सुरेश राव भैया जी जोशी और सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले एवं सह सरकार्यवाह एवं राजनीतिक मामलों के प्रभारी कृष्णगोपाल की बैठक हुई थी। यह बैठक भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी स्थल से अलग किसी स्थान पर हुई।
बैठक में भाजपा के संगठन महासचिव रामलाल को भी बुलाया गया था। बैठक में संघ नेताओं ने सरकार की आर्थिक नीतियों, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, शिक्षा नीति आदि पर चर्चा भी की थी। बेंगलुरू से लौटकर कृष्णगोपाल ने प्रधानमंत्री मोदी से भेंट करके बैठक में चर्चा में आए मुद्दों की जानकारी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में भी दाखिल हुई याचिका
भारत को इंडिया कहा जाए या नहीं, इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दाखिल की गई है। चीफ जस्टिस एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे पर निरंजन बटवाल द्वारा दाखिल याचिका पर केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए अपना पक्ष रखने को कहा है।
याचिका में कहा गया कि ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि भारत को इंडिया के नाम से जाना जाता था और न ही भारत में रहने वाले लोगों को इंडियन कहा जाता था। मुगल काल में भी भारत को इंडिया नहीं कहा गया। इंडिया और इंडियन शब्द का ईजाद ब्रिटिश काल में हुआ और यह अंग्रेजों द्वारा दिया गया नाम है।
याचिका में कहा गया कि भारतीय संविधान के जनक डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान बनाने से पहले संविधान सभा से इस मुद्दे पर चर्चा भी की थी। हालांकि उस समय को स्पष्ट राय नहीं बन पाई थी।
स्त्रोत : अमर उजाला