मडगांव विस्फोटकी घटनामें साधकों हेतु कष्टदायक सिद्ध हुआ पुलिस पूछताछका स्वरूप !

पौष शुक्ल पक्ष १०, कलियुग वर्ष ५११५

मडगांवमें विस्फोट होनेके पश्चात समाज, राष्ट्र एवं धर्मके उद्धार हेतु प्रयास करनेवाले तथा घटनासे कुछ भी संबंध न होनेवाले सनातनके साधकोंकी गोवा, महाराष्ट्र तथा कर्नाटककी पुलिसद्वारा की गई आतंकवादी पूछताछ जैसी पूछताछ कभी आतंकवादियोंकी भी न हुई होगी ! दबावतंत्रका उपयोग,  अपशब्दोंका प्रयोग, धाक एवं दबावद्वारा की गई यह पूछताछ सही अर्थमें आतंकवादी कहें, ऐसी ही थी; किंतु साथ ही साधकोंका मनोबल अल्प करनेवाली भी थी । केवल ईश्वरीय कृपासे सनातनके साधक इस परीक्षामें उत्तीर्ण हुए ! सभ्यतासे आचरण करनेवालोंके साथ धमकी देनेवाली आवाजमें बात करनेकी पुलिसकी गुंडा प्रवृत्ति !

मडगांव विस्फोट अन्वेषणके कारण गोवा पुलिस कई बार सनातन आश्रम आयी । अधिकांश समय पुलिस अधिकारियोंकी भूमिका तानाशाहकी ही रही थी ।

इसके कुछ प्रसंग…

१. एक पुलिस अधिकारी आश्रमके आर्थिक व्यवहार देखनेवाले व्यक्तिका नाम पूछते हुए सीधा प्रथम तल्लेपर आया । स्वयंको किससे मिलना है, स्वागत कक्षपर यह बतानेकी सज्जनता भी उसने नहीं दिखाई । प्रथम तल्लेपर एक साधकसे उद्दंडतासे ही इस विषयमें पूछताछ की । साधक इस अधिकारीको आर्थिक व्यवहार देखनेवाले व्यक्तिके पास ले गया । उस अधिकारीने उद्दंडताभरी आवाजमें ही साधकसे लेखाकी कापियां मांगीं ।

२. अन्य एक प्रसंगमें पुलिस आश्रम स्थित संगणकसे, संबधित साधकको पूर्व सूचना दिए बिना, `डाटार्’ भी पूर्वकल्पना न देकर ‘कॉपी’ कर रही थी । यह बात एक साधककी समझमें आनेपर उसने नियमानुसार ‘कॉपी’ की गई ‘हार्डडिस्क’ की ‘हैशवैल्यू’ की मांग की । उसपर उस पुलिस अधिकारीने उस साधकको ‘हैशवैल्यू’ दूं, अथवा आश्रमको ‘सील’ लगाऊं, ऐसी धमकी दी ।

अपशब्दों तथा दमनतंत्रका उपयोग कर साधकोंकी पूछताछ करनेवाले खाकी वस्त्रोंमें गुंडे !

गोवा पुलिसने अनेक साधकोंको पुलिस थाना बुलाकर उनकी पूछताछ की । उस समय साधक तथा पुलिसके मध्य कैसे संवाद  थे, यहां इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण दे रहे हैं ।

अ. पुलिस पूछताछ अर्थात केवल दबावतंत्रका उपयोग नहीं, अपितु दमनचक्र !

पुलिस (ऊंची आवाजमें ) : तुम रामनाथी कितनी बार गए हो ?
साधक : ३ से ४ बार पत्नीके साथ आश्रम देखने जा चुका हूं ।
पुलिस : क्या अपराधीको पूर्व कभी देखा है ?
साधक : अपराधके पश्चात दैनिकमें छायाचित्र देखा है ।
अन्य सारी पुलिस : यह भी था । इसे भी अंदर डालो । अच्छी पिटाई करो, उसके पश्चात यह मुंह खोलेगा ।
पुलिस (क्रोधसे ) : तेरी कनपट्टीमें लगाता हूं । उठो, खडे हो जाओ ।
(साधक उठ खडा हुआ । )

आ. सनातनके दो साधकोंकी पूछताछ करते समय पुलिसद्वारा किया गया मानसिक छल !

१. १६.१०.२००९ की रात मडगांव नगर पुलिस थानाके पुलिस उपनिरीक्षकने हमें अलग-अलग बुलाकर हमारी पूछताछ की तथा हमारे उत्तर लिख कर लिया । उस समय उन्होंने आरंभमें शांतिसे प्रश्न पूछे । तदुपरांत उन दोनोंने निम्नस्तरपर जाकर अनुचित गालियां देकर प्रश्न किए । मुझपर आक्रमण किया, केश पकडकर, सिरको पकडकर गालियां दीं एवं धमकाया । तुम्हें नंगा कर बिजलीका झटका देता हूं, अच्छी मारपीट करता हूं, इसप्रकारसे  धमकाना बहुत देरतक चलता रहा । सनातन संस्था, मेरे माता-पिता, तथा अध्यात्म एवं धर्म शिक्षाके विषयमें एकदम निम्नस्तरपर जाकर बोले, उन्हें गंदी गालियां भी दीं । इसके जैसे अनेक माध्यमोंसे वे हमपर दबाव डाल रहे थे । रातके लगभग तीन-साढेतीन बजेतक यह चलता ही रहा था ।

२. मडगांव पुलिस थानामें लगभग २-२.३० बजेसे दूसरे दिन दोपहर लगभग १२ बजेतक हमें एक ही कक्षमें रखा था । एक रात पूर्व आश्रममें १०.३० बजेसे हमारे आश्रम वापिस जानेतक (रात ८.३० बजेतक ) हमें सोने नहीं दिया । प्रात: लगभग ९ बजे आधा कप चाय दी । दोपहर १२ बजे एक हवालदारने एक पेटिस खानेको दिया । दोपहर दो बजे कैदियोंको जो खाना दिया जाता है, उसमें मछली-चावल था । एक पुलिसने पूछा, खाना खाओगे क्या ? तब हमने उनसे कहा कि हम मांसाहार नहीं करते । उसपर पुलिसने फटकारा कि जो मिल रहा है, खा लो । और कुछ नहीं मिलेगा । हम खाली पेट ही रह गए ।

३. पुणेसे जो साधक आश्रममें आए हैं, उनके नाम उन्होंने पूछे । उनके नाम बताए, उनमें पुरुषोंकी अपेक्षा लडकियां तथा महिलाओंके नाम अधिक थे, अत: उन्होंने तुम्हें केवल लडकियोंके नाम मालूम हैं, क्या निरंतर लडकियोंके साथ रहते हो ? इस जैसे लडकियोंके विषयमें निम्न भाषामें अनेक अनावश्यक प्रश्न किए ।

– एक साधक

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