केवल शिवसेना ऐसी मांग करती है, क्या अन्य पक्षोंको यह विषय महत्त्वपूर्ण नहीं लगता ?
नई देहली : सर्वोच्च न्यायालयद्वारा समान नागरी कानून लागू करने के संदर्भ में दो बार आदेश देने पर भी यह कानून अबतक लागू नहीं किया गया। शिवसेना ने राज्यसभा में यह कानून त्वरित लागू करने की जोरदार मांग की। शिवसेना के नेता सांसद श्री. संजय राऊत ने ‘विधि एवं न्याय विभाग का परिचालन’ विषय पर आयोजित चर्चा में सम्मिलित होते समय जम्मू-कश्मीर को विशेष श्रेणी देनेवाली धारा ३७० निरस्त करने तथा ‘बॉम्बे हायकोर्ट’ का नामकरण ‘मुंबई हायकोर्ट’ करने की भी मांग की।
सांसद श्री. राऊत ने कहा कि इससे पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री श्री. रविशंकर प्रसाद ने समान नागरी कानून पर संसद में विचार-विमर्श करने का आश्वासन दिया था। उसका पालन हो। इस कानून पर अब तक केवल विचार-विमर्श ही हुआ। अब कृत्य करने की आवश्यकता है तथा सरकार को उस दृष्टी से कार्यवाही करनी चाहिए।
मृत्यु होने के उपरांत न्याय मिलने पर क्या लाभ ?
अपने देश में न्यायालयीन निर्णयोंकी प्रक्रिया बहुत ही धीमी है, इस बातपर सभागृह का ध्यान आकर्षित करते समय श्री. संजय राऊत ने कुछ अभियोगोंके प्रमाण भी दिए एवं ऐसा प्रश्न उपस्थित किया कि जीवित रहते न्याय मिलना चाहिए, मरने के पश्चात न्याय मिलने से क्या लाभ ?
श्री. राऊत ने कहा…
१. देश के न्यायालयों में ३ करोड १४ लाख अभियोग प्रलंबित हैं। बनारस के कोशीपुरा अभियोग का परिणाम पूरे १३० वर्षोंके उपरांत घोषित हुआ। अयोध्या प्रकरण के परिणाम के लिए भी ११४ वर्षोंतक प्रतीक्षा करनी पडी। हशीमपुरा अभियोग के आरोपी २८ वर्षोंके उपरांत निर्दोष मुक्त हुए।
२. इतनी प्रदीर्घ कालावधि के पश्चात निर्दोष मुक्त होने पर उस से उन्हें क्या लाभ हुआ ? इन लोगोंकी आशाएं एवं कार्यकाल समाप्त हो गया होगा। अतः अब तो सरकार को देश के न्यायालयीन निर्णयोंकी प्रक्रिया शीघ्र गतिसे होने हेतु निश्चित उपाय योजना करनी पडेगी।
३. ‘सौ अपराधी मुक्त हो गए तो चलेगा, परंतु एक भी निर्दोष को दंड नहीं होना चाहिए’, इस मानसिकता से अब न्याय व्यवस्था को बाहर आना चाहिए।
४. पाकिस्तान में मशरत समान देशद्रोही त्वरित मुक्त होते हैं। तदुपरांत ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ की घोषणाएं गुंजती हैं, पाकिस्तान के ध्वज फहराए जाते हैं, परंतु दूसरी ओर पूज्यपाद संतश्री आसारामजी बापू को १८ महिनोंसे कारागृह में सडते रहना पडता है। यह पक्षपात भी समाप्त होना चाहिए।
५. इस सभागृह में अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद तथा तुलसी समान विद्वान अधिवक्ता बैठे हैं। मैंने सुना है कि ये बडे अधिवक्ता प्रचंड शुल्क लेते हैं। निर्धन इतना पैसा कहां से लाएंगे ? इस लिए सरकार को अधिवक्ताओंका भरपुर शुल्क भी नियंत्रित करना चाहिए।’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात