पौष शुक्ल पक्ष १२, कलियुग वर्ष ५११५
चिपलूनमें सनातनके निर्दोष मुक्त साधकोंकी शोभायात्रा निकाले जानेके कारण दैनिक तरुण भारतके रत्नागिरी आवृत्तिके पेटमें दर्द !
रत्नागिरी – मडगांव विस्फोट परिवादमें निर्दोष मुक्त सनातनके ६ साधकोंकी शोभायात्रा चिपलूनमें निकाली गई, अतः दैनिक तरुण भारतकी रत्नागिरी आवृत्तिके १० जनवरीके अंकमें आलोचनात्मक समाचार प्रकाशित किया गया है । इस समाचारमें यह प्रकाशित किया गया है कि मडगांव विस्फोट परिवादमें निर्दोष मुक्त हुए सनातनके साधकोंकी शोभायात्राको जनपद पुलिस अधीक्षक दीपक पाण्डेयद्वारा कैसे अनुमति प्राप्त हुई ? साधकोंकी निर्दोष मुक्ति यह एक वैधानिक हिस्सा है । अतः उसका आनंद होना सहज है; किंतु वह जिस पद्धतिसे मनाया गया, वह पद्धति यहां पहली बार ही देख रहे हैं । अतः आज अनेक प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं । (हिंदुओंके निर्दोष मुक्त होनेके पश्चात आनंद मनाया गया, तो क्या प्रश्न उत्पन्न हुए, यह भी बतानेकी आवश्यकता है । जब इशरत जहां अपराधी होते हुए भी उसके घर सत्ताधारी नेताओंका आना-जाना रहता है, उसे आर्थिक सहायता की जाती है, तब इन संपादकोंको कोई भी प्रश्न क्यों नहीं पडते ? इसमें आशंका नहीं कि कल साध्वी प्रज्ञासिंहकी निर्दोष मुक्ति हुई, तो हिंदुओंद्वारा इसी प्रकारसे उसका भी स्वागत किया जाएगा । निरपराध हिंदुओंको धीरज देना, यह हिंदुनिष्ठ संगठनोंके कार्यका एक हिस्सा ही है । सनातनकी शोभायात्रापर आलोचना करनेवालोंने क्या कभी स्वार्थी, सत्तालोलुप, भ्रष्ट राजनेताओंकी शोभायात्रापर आलोचना की है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
इस समाचारमें साधकोंकी शोभायात्राको अनुमति देनेवाले जनपद पुलिस अधीक्षक दीपक पाण्डेयकी भूमिकाके संदर्भमें आश्चर्य व्यक्त करते हुए यह प्रकाशित किया गया है कि पाण्डेय अनुशासन प्रिय एवं नियमोंका पालन करनेवाले कत्र्तव्यदक्ष अधिकारीके रूपमें जाने जाते हैं । मोहनदास गांधीकी जयंतीके दिन एक संस्थाने बिना अनुमति ज्येष्ठोंके चलनेकी स्पर्धा आयोजित की; इसलिए आयोजकोंपर पाण्डेयने परिवाद प्रविष्ट करनेकी आज्ञा दी थी । गोवळकोटमें जयहिंद क्रीडा मंडलद्वारा आयोजित मेरेथान स्पर्धा भी, गोवळकोट एक संवेदनशील क्षेत्र है, यह कारण बताकर उसकी अनुमति अस्वीकार कर दी गई थी । (अनुमतिके बिना कार्यक्रम आयोजित करनेवालोंपर वैध मार्गसे कार्रवाई की गई अथवा किसी स्पर्धाकी अनुमति अस्वीकार की गई; इसलिए साधकोंकी शोभायात्राकी भी अनुमति अस्वीकार करें, यह कहना कहांतक उचित है ? वैध मार्गसे आयोजित की गई साधकोंकी शोभायात्रापर आलोचना करना, यह सनातनद्वेष ही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात