आषाढ कृ. १०, कलियुग वर्ष ५११४
गंगा नदीके अस्तित्वका प्रश्न ठहरा धर्माभिमानियोंका आत्मिक विषय !
रामनाथी, गोवा : आज गंगा नदीके शुद्धिकरणके साथ अस्तित्वका प्रश्न भी निर्माण हो गया है । इस नदीके प्रवाहके किनारे आज ३०० से अधिक परियोजनाओंका निर्माण कार्य होना है । नदीके ५० किलोमीटरके पात्रके आस-पास निर्माण कार्य किया जाएगा तथा सुरंगसे पानी छोडा जाएगा । इस कारण लगभग ५०-६० वर्ष उपरांत ऐसा समय आएगा जब हिंदू कहेंगे कि ‘गंगा नदी थी ।’ ऐसे समय ‘गंगानदी माताके समान है’ ऐसा नहीं अपितु ‘गंगा नदी हिंदुओंकी माता है’ ऐसा दृढ होकर कहें, इस प्रकारका प्रतिपादन कर ‘पनून कश्मीर’ संगठनके श्री. अश्वनी कुमार चृंगूजीने अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशनके चौथे दिन उपस्थित हिंदुओंका ध्यान आकर्षित किया । यह प्रश्न उपस्थित धर्माभिमानियोंकी आत्माका विषय बन गया ।
श्री. चृंगू बोले कि, ‘युनेस्को’ने गंगा नदीको ‘वैश्विक सांस्कृतिक विरासत’ निश्चित किया है, फिर भी इन संस्कृति विनाशक परियोजनाओंको अनुमति कैसे दी जाती है ? गंगा नदीके प्रस्तावित विनाशके लिए शासनका भूगर्भशास्त्र एवं खनिज विभाग, पर्यावरण विभाग तथा वनविभाग ही उत्तरदायी हैं । सरस्वती नदीके समान यह नदी भी लुप्त होनेवाली हो तो, उसके किनारे स्थित तीर्थस्थलोंका क्या होगा ? नदीमें सहस्रावधी कुंड स्थित है उनका क्या होगा ? वहां जाकर साधना करनेवाले साधुओंका क्या होगा ? वे कहां जाएंगे ? आजके राजनेता गंगा नदीको केवल एक जलस्रोत मान रहे हैं, इसीके कारण यह हो रहा है । गंगा नदीके अस्तित्वके लिए आंदोलन करना, प्रत्येक हिंदूका कर्तव्य है; क्योंकि प्रत्येक हिंदू गंगापुत्र है । स्पष्ट एवं जोर देकर कहें कि, हमें गंगा नदी वैसी ही चाहिए, जैसी सहस्र वर्षोंपूर्व थी ।
श्री. चृंगूजीद्वारा बताया गया गंगा नदीका महत्त्व :
१. गंगा नदी हिंदुओंके लिए मोक्षदायिनी तथा हिंदु संस्कृतिकी पवित्र विरासत है |
२. गंगा नदीके साथ हिंदुओंकी संस्कृति जुडी हुई है ।
३. गंगा नदीका स्रोत भूकंपके क्षेत्रसे प्रवाहित होता है; परंतु नदीके पानीके कारण भूगर्भमें विविध स्तर निर्माण होकर वे भूकंपके झटके भीतर ही भीतर सहनेका कार्य करते हैं ।
३. गंगा नदीका स्रोत भूकंपके क्षेत्रसे प्रवाहित होता है; परंतु नदीके पानीके कारण भूगर्भमें विविध स्तर निर्माण होकर वे भूकंपके झटके भीतर ही भीतर सहनेका कार्य करते हैं ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात