पाकिस्तान के ज़िला फ़ैसलाबाद में रहने वाले नदीम मसीह की ज़िंदगी एक झटके से बदल गई जब उनके छोटे भाई ने एक मुसलमान लडकी से शादी कर ली।
साल भर पहले फैसलाबाद में अपने बड़े घर में अपने माता-पिता और बीवी-बच्चों के साथ रहने वाले नदीम अब एक छोटे से कमरे में किराए पर रहने को मजबूर हैं।
उनका घर-बार बिक गया, पिता की मौत हो गई और परिवार बिखर गया। हालांकि हालात इससे भी बुरे हो सकते थे।
पढ़िए पूरी कहानी
नदीम बताते हैं कि “आसिम (उनका छोटा भाई) और सानिया कॉलोनी से भाग गए थे। जिसके बाद मोहल्ले में काफी तनाव हो गया। मौलवी धमकी देने लगे कि हम आपकी लड़कियों को उठा लेंगे। उसी डर से मेरे परिवार सहित सभी मोहल्ले वाले अपना घर बार छोड़कर रिश्तेदारों के यहां चले गए। मेरे पिताजी को खबर मिली हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई।”
हालात को देखते हुए नदीम ने अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई हेल्पलाइन पर संपर्क किया। फिर एक गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) के कार्यकर्ताओं ने मुहल्ले के सामाजिक कार्यकर्ताओं, मुस्लिम बिरादरी, मौलवी और पुलिस की मदद से इस समस्या को हल करवाया।
आसिम ने विधिवत रूप से इस्लाम ग्रहण कर सानिया से निकाह कर लिया, लेकिन ख़ौफ़ बना रहा और नदीम के अलावा पूरा परिवार घर-बार बेचकर किसी दूसरे इलाके में चला गया।
गैर सरकारी संगठन ‘रेट नेटवर्क’ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता नवेद वाल्टर दावा करते हैं कि फ़ैसलाबाद ज़िले में ही दो साल की अवधि के दौरान उन्होंने आसिम और सानिया जैसे २५ मामले निपटवाए हैं।
इनमें या तो ईशनिंदा का मामला दर्ज होने या फिर हिंसक भीड़ के हमला करने का ख़तरा था।
नवेद कहते हैं, “हमें जब कोई व्यक्ति हमारे टोल फ्री नंबर पर सूचना देता है तो तुरंत हमारी टीम वहां पहुंच के स्थिति संभालती है। अगर कोई भीड़ हमला करने की सोच रही हो, किसी जगह को जलाए जाने की स्थिति बन रही हो है तो हम क्षेत्र के धार्मिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पुलिस, वकीलों और स्थानीय राजनीतिक नेताओं और मीडिया से संपर्क करते हैं, उन्हें शामिल करते हैं।”
बेपरवाह सरकार
गैर सरकारी संगठन से एक और सामाजिक कार्यकर्ता टॉमस राजा बताते हैं कि वह अपने मोहल्ले के लोगों के हाल-चाल से परिचित रहने के लिए उनसे मिलते जुलते रहते हैं।
वह बताते हैं, “जब आसिम और सानिया की समस्या सामने आई तो बात जलाने-गिराने तक पहुंच गई थी। सामान्यतः जो लोग समस्या सुलझाने में साथ दिया करते थे उन्होंने कहा कि हम आपकी मदद नहीं कर सकते। लेकिन मैं रेट नेटवर्क के स्वयंसेवकों के साथ अपने मुस्लिम और ईसाई दोस्तों से बात की। उनके अलावा क्षेत्र के एसएचओ ने हमारा बहुत साथ दिया। जिसके कारण यह मामला हल हो पाया।”
पाकिस्तान में अक्सर होता यह है कि ईशनिंदा का आरोप लगने के बाद, इससे पहले कि मामला अदालत में जाए, उग्र भीड़ उसका फैसला सड़कों पर ही कर देती है।
अक्सर ऐसे मामले गलतफहमी या निजी रंजिश की वजह से सामने आते हैं।
वादा वाल्टर कहते हैं कि “अगर हम ऐसे मामलों का समाधान न करवाएं तो बड़े हादसे भी हो सकते हैं, जो पहले हुए भी हैं।”
ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान की रिपोर्ट भी कहती है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कानून बनाना कभी सरकारी प्राथमिकता में नहीं रहा। ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यको के संरक्षण के लिए काम करने वाले इन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है।
स्त्रोत : बी बी सी