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त्र्यंबकेश्वरको उत्तराखंड जैसा संकट ! – जलतज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह

पौष पूर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११५


नासिक (महाराष्ट्र) – त्र्यंबकेश्वरकी प्राकृतिक रचना उत्तराखंड जैसी ही है । उत्तराखंडमें नदीकी रचनाके साथ छेडछाड की गई । उसके परिणाम सबके सामने आए । त्र्यंबकेश्वरकी परिस्थिति भी इससे पृथक नहीं है, तथा भविष्यमें वहां भी उत्तराखंड जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है, मेगसेसे पुरस्कार विजेता तथा प्रसिद्ध जलतज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंहने  ऐसी चेतावनी दी है । 

सिंहने आगे कहा, 

१. गोदावरीके उगमसे (आरंभसे) नासिक नगरतकके नदीपात्रमें न्यूनतम १०८ कुंड थे । इन कुंडोंद्वारा निरंतर पानीका निकास होकर नदी बहती रहती थी; किंतु त्र्यंबकेश्वरके साथ नासिकमें बडी मात्रामें कांक्रीटीकरण किया गया है । 

२. त्र्यंबकेश्वरमें तो नदीको नाला अथवा गटरका स्वरूप दिया गया है । बंद की गई नदी कितनी धोखादायक सिद्ध हो सकती है, यह इससे पूर्व अनेक घटनाओंद्वारा सामने आ चुका  है । 

३. गोदावरीको हम ‘माता’ कहते हैं, तो माताको आपकी आवश्यकता होनेपर उसकी ओरसे पीठ फेरनेका साहस आप कैसे कर सकते हैं ? 

४. त्र्यंबकेश्वरसे रामकुंडतक अनेक पुरोहित नदीकिनारेपर कर्मकांड कर अपना भरण-पोषण करते हैं । पुरोहित समाज बडा है तथा उन्हें भी प्रदूषण रोकने तथा संवर्धन हेतु उचित प्रयास करने आवश्यक हैं । 

५. गंगा नदीके संदर्भमें ऐसी योजना कार्यान्वित की जा रही थी; किंतु वहां पुरोहित एवं प्रशासनमें विवाद उत्पन्न होनेसे वह पूरी न हो सकी । 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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