प्रवचनके माध्यमसे हिंदु राष्ट्र-स्थापनाके विषयमें जागृति कैसे करें ?

माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११५

६ से १० जून २०१३ की कालावधिमें हिंदू जनजागृति समितिकी ओरसे श्री रामनाथ देवस्थान, रामनाथी, फोंडा, गोवामें हिंदु राष्ट्रकी स्थापना हेतु द्वितीय अखिल भारतीय हिंदू अधिवेशन आयोजित किया गया था । अधिवेशनमें श्री. चारूदत्त आफळेजीके मार्गदर्शनका सारांश यहां प्रस्तुत है ।

१. धर्मप्रसारका कार्य करने हेतु हिंदु संगठनोंके लिए कीर्तनकार, प्रवचनकार तथा कथावाचकोंका निर्माण करना आवश्यक 

धर्मप्रसारके कार्यमें कीर्तनकार, प्रवचनकार, कथाकार इन सब लोगोंका स्थान बहुत प्रधान रहा है । इसलिए, मेरी विनती है कि सभी हिंदु संगठन ऐसे धर्म-प्रसारकोंका निर्माण करें । विद्यालय-महाविद्यालयोंके जो युवक-युवतियां वक्तृत्व स्पर्धाओंमें भाग लेते हैं तथा जिनमें वक्तृत्वका सद्गुण है और वाणीपर प्रभुत्व है, ऐसे युवक-युवतियोंको अपने आश्रममें बुलाकर प्रशिक्षित करें ।

२. विकृति, प्रकृति और संस्कृति

स्वामी विवेकानंद कहते थे,
अ. विकृति : जब दूसरोंका छीनता हूं, तब वह मेरी विकृति है ।
आ. प्रकृति : जब मैं अपनी भूख मिटानेके लिए कष्ट कर खाता हूं, तब वह मेरी प्रकृति है ।
इ. संस्कृति : जब मैं सभीकी आवश्यकताओंका विचार कर, यथाशक्ति सबमें बांटकर, आनंदपूर्वक खाता हूं, तब वह मेरी संस्कृति है ।

३. ईसाइयों अथवा मुसलमानोंके हाथका खानेवाला व्यक्ति ईसाई अथवा मुसलमान हो जाता है, ऐसा प्रचारकोंके कहने मात्रसे गोवाके अधिकतर लोगोंका ईसाई होना; किंतु यह असत्य है, यह धर्मशास्त्रोंमें लिखा होना :

जब यह प्रचार किया गया कि ईसाईके हाथका खानेवाला ईसाई और मुसलमानके हाथका खानेवाला मुसलमान हो गया । तब, इस झूठी बातोंमें फंसकर धर्मशिक्षाके अज्ञानवश गोवामें अधिकतर हिंदू ईसाई बने । सावरकरजी पूछते थे कि आपमें पाचन-शक्ति नहीं है क्या ? वे हमारे हाथका अन्न खानेपर हिंदु नहीं बनते, तो हम उनके हाथका अन्न खाकर ईसाई अथवा मुसलमान कैसे बन सकते हैं ? हमने उनका खाया, तो भी हमारा धर्म-परिवर्तित नहीं होगा, इतना साहस तो दिखाइए । धर्मशास्त्रके आधारपर हम यह सब कर सकते हैं ।

४. नरकासुरके बंदीगृहमें बद्ध १६ सहस्र स्त्रियोंको भगवान श्रीकृष्णने स्वीकारा, तब,लव-जिहादके जालमें फंसी लडकियोंको अपनानेमें क्या अडचन ?

लव जिहादके संदर्भमें हम कहते हैं कि कोई हमारी लडकियोंको भगा ले जाता है और जब वे अपने घर लौटती हैं, तब उन्हें कोई नहीं अपनाता । भगवान श्रीकृष्णने, नरकासुरके बंदीगृहमें बद्ध १६ सहस्र स्त्रियोंसे विवाह कर, उनका पालन भी किया था।

५. जब विज्ञानकी प्रगति पूरी हो जाएगी, तब वे इसी हिंदु धर्मके सिद्धांतोंपर लौटेंगे !

६. आज धर्मप्रसार करनेके लिए अनेक प्रचारकोंका निर्माण होना आवश्यक

केवल पुणेमें ईसाई धर्मका प्रचार करनेके लिए ईसाइयोंने ५०० से अधिक धर्मगुरुओंको भेजा है । वे एक प्रांतके लिए ३००-४०० प्रचारक निर्माण करते हैं । इसके विपरीत, हम संपूर्ण महाराष्ट्रके लिए १० अच्छे प्रचारक (प्रवचनकार) भी नहीं भेज सकते, यह कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ।

७. देवताओंसे पवित्र हुई इस भूमिपर होनेवाले आक्रमणोंकी वेदना कीर्तनकार इत्यादिद्वारा देशके प्रत्येक गांवमें पहुंचाना और देशभक्ति तथा राष्ट्रभावना जगाकर हिंदु राष्ट्रके लिए सहस्रों युवकोंको भक्तिके प्रवाहमें लाना, यही आजकी चुनौती !

जिस भूमिको श्रीरामचंद्र श्रीकृष्ण, देवी, ऋषि-मुनियोंने संभाला है, पवित्र किया है, उस भूमिको यदि कोई छेदता है, तो देशके प्रत्येक गांवमें उसकी वेदना पहुंचानेका कार्य इन कीर्तनकार, प्रवचनकार, कथाकार और अन्योंद्वरा किया जाना आवश्यक है।
आज जो बंगालमें हुआ है, उसका हम धिक्कार करते हैं, जब ऐसा प्रस्ताव प्रत्येक कथाकारके कार्यक्रममें आने लगेगा, तभी देशमें राष्ट्रीय भावना जागेगी । इस राष्ट्रभावनाको हम ईश्‍वरभक्तिके साथ जगाएंगे । देशभक्ति और शौर्यकी प्रेरणाको भी हम जगाएंगे और समाजको आश्‍वस्त करेंगे । हम हिंदू राष्ट्रके लिए उठें, लडें और आशंकाओंका खंडन करते हुए, सहस्रों युवकोंको भक्तिधारामें लाएं । ऐसे युवकोंका, आध्यात्मिक साधना और क्षात्रधर्म साधना (युद्धशक्तिकी साधना) दोनों सूत्रोंपर, मार्गदर्शन करनेके लिए कीर्तनकार, प्रवचनकार और कथाकार अपनेआपको समर्पित करें । प्रत्येक हिंदूसंगठन, मंदिर, मठको ऐसे कथाकारोंसे सहायता मिलनी चाहिए ।

८. सनातन संस्था बहुत अच्छा कार्य कर रही है तथा ऐसी संस्थाओंकी और हमारे राष्ट्रपर होनेवाले आघातोंकी सूची कीर्तनकारोंके पास होना आवश्यक !

आज हमारे राष्ट्रपर कौन-कौनसे आघात हो रहे हैं, उसकी सूची कीर्तनकारोंके पास नहीं होती । सनातन संस्था बहुत अच्छा कार्य कर रही है, इसकी भी सूची इनके पास नहीं होती ।  हम यह सूची वेबसाइटपर (सूचना जालस्थलपर) रख सकते हैं । रामायण ग्रंथमें रावणके अत्याचारोंका जिस प्रकारका वर्णन मिलता है, उसी प्रकारका अत्याचार वर्ष २०१२ में करनेवाले रावणोंको हमें आगामी १४ वर्षमें दूर करना है, यह बात कथाकार कह सकते हैं।

९. सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समितिका मिलकर, हिंदूसंगठनोंमें समन्वय बनानेका, गोवधर्र्न पर्वत उठाने जैसा कठिन कार्य करनेका प्रयत्न

मैं सनातन संस्था और हिंदू जनजागृति समितिका हार्दिक अभिनंदन करता हूं, जिन्होंने हिंदूसंगठनोंमें समन्वय बनानेका, गोवर्धन पर्वत उठाने जैसा अत्यंत कठिन कार्य करनेका प्रयास किया है । १०० विद्यार्थियोंसहित मेरी कीर्तनशाला और सभी प्रवचनकार आपसे सदैव जुडे रहेंगे, यह मैं आश्‍वासन देता हूं और आपसे विदा लेता हूं । अनेक धन्यवाद । नमस्कार !

– श्री. चारुदत्त आफळे

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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