माघ कृष्ण पक्ष ४, कलियुग वर्ष ५११५
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सांगली (महाराष्ट्र) – मुसलमान तथा ईसाई अपने धर्मके विषयमें अभिमानसे बोलते हैं; किंतु हिंदु अनेक जाति तथा अन्य भागोंमें बांटे गए हैं । इन सभीका त्याग कर प्रथमत: मैं हिंदु हूं, ऐसा कहकर ही हमें एक होना पडेगा । आनेवाले लोकसभा चुनावमें गोरक्षा हेतु कार्य करनेकी जिसकी सिद्धता हो, जो बांगलादेशी घुसपैठियोंके विरुद्ध कार्यवाही होनी आवश्यक है, ऐसा कहेगा, अफजलखान हत्याका चित्र लगाना ही चाहिए, ऐसा कहेगा, अर्थात जिस उम्मीदवारको हिंदुत्वका घोषणापत्र स्वीकार हो, उसे ही आनेवाले लोकसभा चुनावमें जिताएं, हिंदु राष्ट्र सेनाके अध्यक्ष श्री. धनंजय देसाईने ऐसा आवाहन किया । वे प.पू. तात्यासाहेब कोटणीस महाराज पुण्यतिथि उत्सवके प्रथम दिवस ‘राजकीय हिंदुत्व : कालकी आवश्यकता’, इस विषयपर बोल रहे थे । इस अवसरपर विविध मान्यवर व्यक्तियोंके साथ श्रीशिवप्रतिष्ठानके श्री. नितीन चौगुले तथा अन्य धारकरी बडी संख्यामें उपस्थित थे ।
श्री. धनंजय देसाईने कहा,…
१. मंदिर हिंदुओंके नियंत्रणमें रहने चाहिए; परंतु आज पंढरपुरके देवस्थान तथा मुंबईके श्री सिद्धिविनायक जैसे देवस्थान सरकारके नियंत्रणमें हैं, जो अत्यंत अयोग्य है ।
२. हिंदू राजनीतिक दृष्टिसे जागृत नहीं हैं । यह जागृति उत्पन्न होनी चाहिए ।
३. यदि राष्ट्रका निर्माण करना है, तो आत्माको जागृत रखना पडता है । इसके लिए आध्याति्मक उपासना ही करनी पडती है ।
४. डच, फ्रेंच, पोर्तुगीज, यवन तथा अन्य अनेक आक्रमकोंद्वारा अत्याचार होकर भी केवल आध्यात्मिक परंपरा रहनेके कारण भारतीय संस्कृति टीकी हुई है । भारतके योद्धाओंके पास गुरुकृपाका सामर्थ्य था ।
५. माताओंको छत्रपति शिवाजी महाराजसमान वीर पुरुषोंको जन्म देनेकी इच्छा रखनी चाहिए एवं वैसे संस्कार करने चाहिए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात