माघ कृष्ण पक्ष ४, कलियुग वर्ष ५११५
पाकिस्तानमें हिंदुओंको पाठशालामें कलमा पढाया जाता है । हमें कलमा पढनेमें कठिनाई होती है, किंतु हमपर बलप्रयोग किया जाता है । मैंने १२ वीं तककी शिक्षा प्राप्त की है तथा मैंने नौकरी हेतु आवेदन दिया था; किंतु मैंने इस्लामकी शिक्षा नहीं ली; अत: मुझे नौकरी नहीं प्राप्त हो सकी । शिक्षण प्राप्त करनेमें ऐसी अडचनोंके कारण अधिकांश लडकोंको ‘एबीसीडी’ भी नहीं आती । हिंदु लडकियोंको भी बुरखा पहनकर बाहर निकलना पडता है । सायं ५ के पश्चात हिंदु लडकियां बाहर नहीं निकलतीं । क्योंकि कहांसे कोई मुसलमान आए तथा उन्हें उठाकर ले जाएगा, इसकी कोई शाश्वति नहीं होती ।
– एक हिंदु शरणार्थी लडकी
पाकिस्ताने आए शरणार्थी हिंदु किशनमलद्वारा भारत प्रशासनको किया गया आवाहन :
पाकिस्तानसे पुन: वापिस आनेवाली हिंदु महिलाओंके अलंकार मुन्नबाओ, राजस्थान स्थित भारतीय सीमा अधिकारियोंने बलपूर्वक निकाल लिए । भारत प्रशासनके पाससे अलंकार पुन: प्राप्त हो, इस हेतु पुन:पुन: मांग करनेपर भी नहीं प्राप्त हुए । यदि प्रशासन हमारी सहायता करने हेतु ये अलंकार चाहता है, तो वह उन्हें अवश्य रख ले; किंतु वे हमारी आवश्यकताओंकी ओर भी ध्यान दे ! यदि प्रशासनके पास हमारी ओर ध्यान देने हेतु समय न हो, तो वे हमें वैसा लिखकर दे कि आप पाकिस्तान वापिस जाओ ! हम पाकिस्तान जाएंगे, किंतु मरते दमतक इस्लामको स्वीकार नहीं करेंगे !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात