भगवान शिव और पार्वती के मिलन की कहानी वेदों और पुराणों में मिलती है जिसमें बताया गया है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की और तब जाकर शिव जी ने पार्वती से विवाह किया था।
लेकिन पार्वती से विवाह करने से पूर्व भगवान शिव का विवाह हो चुका था देवी सती से। लेकिन देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था। इसके बाद देवी सती के अंगों से भारत और पड़ोसी देशों में जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है शक्तिपीठ बने।
पाकिस्तान में स्थित शक्तिपीठ देवी हिंगलाज के नाम से जाना जाता है। लेकिन शक्तिपीठ के अलावा एक प्राचीन शिवलिंग भी पाकिस्तान में स्थित है। इस शिवलिंग के विषय में माना जाता है कि यह आदि काल से यहां स्थित है और स्वयंभू है।
इस मंदिर के पास हुई थी महाभारत की यह बड़ी घटना
ऐसी मान्यता है कि पाण्डव जब राजपाट जुए में हारकर वन-वन भटक रहे थे तब वह इस स्थान पर भी आए थे और ४ साल तक यहां रहकर इस शिवलिंग की उन्होंने पूजा की थी।
यह शिवलिंग पाकिस्तान की राजधानी लाहौर से करीब २७० किलोमीटर की दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है। जिस मंदिर में यह शिवलिंग स्थित है उसे कटासराज मंदिर के नाम से जाना जाता है।
कटासराज मंदिर के पास एक सरोवर है जिसे बड़ा ही पवित्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में यहीं पर यक्ष ने युधिष्ठिर से अपने प्रश्न किए थे जो यक्ष प्रश्न के नाम से जाने जाते हैं। यह सरोवर कैसे बना और इसका भारत के पुष्कर तीर्थ से क्या संबंध है इसकी भी एक अनोखी कहानी है।
कटासराज सरोवर का भारत के पुष्कर तीर्थ से ऐसा है संबंध
कटासराज का सरोवर उस समय का माना जाता है जब देवी सती ने आत्मदाह किया था। ऐसी कथा है कि देवी सती के आत्मदाह की खबर सुनकर भगवान शिव बहुत दुःखी हो गए थे और उनकी आंखों से दो बूंद आंसू गिरे थे। एक आंसू कटासराज में और दूसरा पुष्कर तीर्थ में गिरा था।
भगवान शिव की आंखों से गिर आंसू से यह सरोवर बन गया। इस सरोवर की खास बात यह है कि इसका पानी दो रंग का है। जहां सरोवर का पानी हरा है वहां सरोवर की गहराई कम है और जहां सरोवर का पानी बहुत गहरा है वहां का पानी गहरा नीला है।
ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर के जल में स्नान करने से मनुष्य के रोग और दोष दूर हो जाते हैं। कटासराज में भगवान शिव के अलावा राम मंदिर और अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर हैं जिन्हें सात घरा मंदिर परिसर कहा जाता है। धार्मिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी यह मंदिर पाकिस्तान में उपेक्षित है।
स्त्रोत : अमर उजाला