माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११५
पुजारियोंके वंशपरंपरासे चलते आए अधिकार समाप्त होंगे
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सर्वोच्च न्यायालयका लगेगा झटका !
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हिंदु धर्मकी प्रथा-परंपराओंको नष्ट करनेकी इच्छा रखनेवाले कांग्रेसी राजनेताओंको ‘हिंदु राष्ट्र’ में कठोर साधना करनेका दंड दिया जाएगा एवं हिंदुओंके मंदिर सरकारके नियंत्रणसे मुक्त कर उन्हें भक्तोंके नियंत्रणमें दिया जाएगा !
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हिंदुओ, बलवान हिंदुनिष्ठ संगठन इस विषयमें कुछ नहीं करेंगे । इसलिए अब आपही संगठित होकर वारकरियोंकी सहायतासे धर्मके बढते हुए आघातोंके विरुद्ध आवाज उठाएं !
पंढरपुर (महाराष्ट्र) – सर्वोच्च न्यायालयद्वारा १५ जनवरीको पंढरपुरके श्री विट्ठल मंदिरका व्यवस्थापन राज्यसरकारको देनेका निर्णय लिया गया । इस निर्णयसे पंढरपुर मंदिर अधिनियम १९७३ का कानून लागू हो गया है । शीघ्र ही इस कानूनके प्रबंधोंके अनुसार मंदिर समितिका पुनर्गठन होकर प्रबंधोंके आधारपर मंदिरका कामकाज चलेगा । सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयसे इस मंदिरके बडवे-उत्पात एवं सेवाधारियोंके अधिकार समाप्त हो गए हैं । न्यायालयके इस निर्णयका लाभ उठाते हुए अन्य मंदिरोंकी देवस्थान समितियां तथा अन्य संबंधित लोगोंद्वारा देशके सहस्रो मंदिर नियंत्रणमें लेनेकी संभावना व्यक्त की जा रही है । इसलिए सभी मंदिरके पुजारियोंके वंशपरंपरासे चलती आई पूजाके अधिकार समाप्त होंगे । तुलजापुरके भोपे लोगोंको भी इस निर्णयका झटका बैठनेकी संभावना व्यक्त की जा रही है । स्थानीय सरकारद्वारा आवश्यक स्थानपर स्वतंत्र मंदिर समितिकी नियुक्ति करते समय समितिको वहांके अधिकार मिलने हेतु इस निर्णयसे बडा आधार मिलेगा ।
पूजाके अधिकार इस प्रकार हैं…..
बडवे श्री विट्ठलके पुजारीके रूपमें गिने जाते हैं । वे स्वयं पूजा करनेके साथ सेवाधारी भी नियुक्त करते हैं । बडवोंको सेवाधारी नियुक्त करनेका अधिकार था । पुजारी ७ प्रकारकी पूजा करते हैं । इसमें मूर्तिको स्नान करना, वस्र पहनाना, गंध-अत्तर लगाना, प्रत्यक्ष पूजा करना उसीप्रकार बेणारे पूजाके मंत्र कहते हैं, हरिदास भजन गाते हैं, डिंगरे सजाए हुए भगवानको आईना दिखाते हैं । दिवटे पडोसमें दिए लगाते हैं, पूजा समाप्त होते ही डिंगरे चांदीका दंड लेकर खडे रहते हैं । परिचारक भगवानको स्नान करवाने हेतु गरम पानी लाते हैं एवं आरतीकी सिद्धता करते हैं । उत्पात अकेले ही रुक्मिणीकी पूरी पूजा करते हैं ।
कानूनकी ऐसी हुई ४० वर्षोंकी यात्रा…
४० वर्षपूर्व कुछ वारकरियोंद्वारा बडवे, उत्पात एवं सेवाधारियोंके फेरेसे मंदिरको मुक्त करनेकी मांग की गई थी । इसके लिए वर्ष १९६७ में आलंदीमें (जनपद पुणे) वै. वरलीकर (मुंबई) की अध्यक्षतामें वारकरी महामंडलकी स्थापना की गई । इस महामंडलद्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाईकसे यह मांग की गई । उन्होंने निवृत्त जिल्हा न्यायाधीश बी.डी. नाडकर्र्नी आयोगकी नियुक्ति की । २ फरवरी १९७० को आयोगने सरकारको ब्यौरा दिया, जिसमें बडवे, उत्पात तथा सेवाधारियोंके अधिकार एवं विशेषाधिकार निकालने, पूजाके लिए नौकर रखने तथा धार्मिक देवालय राजनीतिसे मुक्त रखने, दक्षिणा-उतारना बंद करने, प्रांताधिकारीकी व्यवस्थापकके रूपमें नियुक्ति करनेकी संस्तुतियां की गई थीं; परंतु आगे सरकारने कुछ नहीं किया । तदुपरांत स्वातंत्र्य सैनिक शेलारमामा मुंबईमें वीरगति प्राप्त (शहीद) चौकमें अनशनके लिए बैठे थे । रामदासबुवा मनसुख, गो.श. राहिरकर तथा बालासाहेब भारदेने सरकारसे कानून बनानेका आग्रह किया । तत्पश्चात वर्ष १९७३ में तत्कालीन न्याय एवं विधि मंत्री ए.आर.अंतुलेद्वारा विधानसभा एवं विधान परिषदमें पंढरपुर मंदिर अधिनियम १९७३ कानून संम्मत किया गया । तदुपरांत यह कानून अस्तित्वमें आनेसे पूर्व ही बडवे-उत्पात सर्वोच्च न्यायालयमें गए । यह बात प्रमाणके आधारपर सिद्ध करनेकी होनेके कारण न्यायालयने उन्हें दिवानी न्यायालयके माध्यमसे आनेके लिए कहा । तत्पश्चात वरिष्ठ न्यायालय, जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा तदुपरांत सर्वोच्च न्यायालय इस प्रकार वर्ष १९७४ से २०१४ ऐसी पूरी ४० वर्षकी यात्रा इस कानूनको कार्यान्वित करने हेतु की गई है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात