सतह से हवा में मार करने वाली अत्याधुनिक मिसाइल विकसित करने साथ आए भारत व इस्राइल

नई दिल्ली : जब से भारत और इस्राइल के बीच १९९२ में कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए हैं तब से लगातार दोनों देशों की मित्रता परवान चढ़ती जा रही है। दोनों ही देशों के बीच रक्षा-सामरिक, सांकृतिक, कृषि विज्ञान तथा व्यापारिक रिश्ते बेहद ही मजबूत हैं। खासकर रक्षा सहयोग के मामले में इस्राइल हमारे लिए पिछले बहुत सालों से एक भरोसेमंद साथी की भूमिका निभाता आ रहा है। ऐसी खबर है कि बहुत ही जल्द भारत इस्राइल के साथ एक और बड़े रक्षा समझौते को अंतिम रूप देने की कगार पर है।

एक अँग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुए समाचार के अनुसार बुधवार को रक्षा मंत्रालय के सूत्रों से खबर मिली है कि सतह से हवा में मार करने वाली मध्यम दूरी की मिसाइल प्रणाली के विकास पर दोनों देशों की एजेंसियाँ डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) तथा इस्राइली ऐरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ बहुत जल्द मिलकर काम कर सकती हैं।

स्वदेश में ही इस मिसाइल प्रणाली को बड़े स्तर पर बनाने के लिए रक्षा क्षेत्र की सरकारी कंपनी भारत डायनामिक्स अनुमति हासिल कर सकती है। भारत को रक्षा के हथियार और तकनीक बेचने के मामले में इस्राइल पहले से ही सबसे अधिक आपूर्ति करने वाला देश है और पिछले १५ वर्षों में अब तक भारत के साथ इस्राइल ने करीब १० अरब डॉलर से अधिक के समझौते किए हैं। इस्राइल भारत को खुफिया हथियारबंद ड्रोन, आधुनिक रडार तथा शक्तिशाली मिसाइल प्रणाली बेचता आ रहा है। वह इस्राइल ही था जिसने भारत को १९९९ के कार्गिल युद्ध में रातों रात तेज़ी दिखाते हुए काफी तरीके से मदद की थी। इस्राइल और रूस की मदद से भारत पहले ही तीन फाल्कन अवाक्स रडार प्रणाली का इस्तेमाल करता आ रहा है और आगे भी बहुत जल्द करोड़ों डॉलर की लागत वाली दो और फाल्कन अवाक्स भारत को मिलने हैं।

इस्राइल बहुत से मामलों में भारत से मेल खाता है। एक तो समान बात है की दोनों ही देश आतंकवाद की समस्या से ग्रस्त हैं औरपिछले काफी सालों से आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई करते आ रहे हैं। दूसरी बात यह कि इस्राइल में भारत की तरह लोकतंत्र की सरकार है। बल्कि, इस्राइल तो पूरे अरब देशों के बीच में स्थित है जहां बाकी जगह राजशाही है लेकिन अकेले उस क्षेत्र में लोकतान्त्रिक देश इस्राइल ही है।

दरअसल, फरवरी में ही इस्राइल के रक्षा मंत्री मोशे यालोन भारत आए थे और अपनी सबसे उन्नत मिसाइल रोधक प्रणाली आइरन डोम इंटरसेप्टर की तकनीक बेचने की पेशकश की थी और वह भी मेक इन इंडिया के अंतर्गत जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत के लिए सबसे बड़ा नारा है।

इसी आइरन डोम प्रणाली का कमाल था जब इस्राइल ने खुद की रक्षा के लिए पिछले साल हमास आतंकियों के रॉकेटों के खिलाफ किया था और बहुद हद तक आइरन डोम प्रणाली सफल भी रही थी क्योंकि रॉकेटों का पता लगाकर आइरन डोम उन्हें आसमान में ही नष्ट कर देती थी। भारतीय सेना की आसमान की रक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए होने वाले इस समझौते की लागत करीब ९००० करोड़ रुपए बताई जा रही है जिसमें अत्याधुनिक रडार तथा हथियार नियंत्रण प्रणाली मौजूद होगी।

इसके अलावा भी भारतीय नौसेना व वायु सेना के लिए इस तरह के सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के विकास का काम चल रहा है जिसकी लागत १३००० करोड़ रुपए है। जहाँ वायुसेना व नौसेना के मिसाइलों की अवरोधन (इंटेरसेपशन) क्षमता ७० किलोमीटर की है वहीं थल सेना के मिसाइल की यही क्षमता ५० किलोमीटर के दायरे तक की होगी।

इस तरह की सतह से हवा में मार करनेवाली मिसाइल प्रणाली का यह काम होता है कि दुश्मन की तरफ से आ रही संदिग्ध विमानों, ड्रोनों, मिसाइलों व हेलीकॉपतारों का बहुत पहले से ही पता लगाकर, खोजकर उसे नष्ट कर देना। यह नई बननेवाली प्रणाली उसी बराक-1 का उन्नत संस्कारण होगी जिसका इस्तेमाल कुछ सालों से भारत के १४ युद्धपोत कर रहे हैं।

हालांकि, पिछले सरकार के कार्यकाल में २००५ में मंजूरी दिये जाने के बाद से इस २६०६ करोड़ की लागत वाली मिसाइल परियोजना में बहुत रुकवटें और देरी आयीं। इसे मई २०११ में ही पूरा हो जाना था। परंतु अब पिछले साल नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद अगस्त में ६८०० टन वजनी ‘आईएनएस कोलकाता’ का जलावतरण हुआ और अब बहुत जल्द इसी युद्धपोत से पहली बार एंटि मिसाइल डिफेंस सिस्टम (सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली) का असल परीक्षण किया जाना है।

पिछले वर्ष इस्राइल में इसी मिसाइल प्रणाली का (होम ऑन टार्गेट) परीक्षण किया गया था और हाली ही में इन मिसाइलों को ‘आईएनएस कोची’ नामक युद्धपोत में भी शामिल किया गया है।

कुछ ऐसी ही कहानी वायुसेना के लिए २००९ में मंजूर की गयी मिसाइल प्रणाली (सतह से हवा में मार करने वाली) प्रोजेक्ट का भी था जिसकी लागत तब १००७६ करोड़ रुपए आँकी गई थी ताकि वायुसेना की धीमी पड़ती ताक़त को नयी ऊर्जा का संचार मिल सके लेकिन यह प्रोजेक्ट भी देरी की भेंट चढ़ता गया और अब इसी प्रोजेक्ट को अगस्त २०१६ में पूरा होना है। इन्हीं देरियों का ही नतीजा था कि अब तक थल सेना के लिए इसी तरह के प्रोजेक्ट पर सौदा अटका पड़ा था।

स्त्रोत : न्यूज़भारती 

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