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सरकारने सहस्रों मंदिरोंको नियंत्रणमें लिया; परंतु मस्जिद एवं चर्चको नियंत्रणमें नहीं लिया ! – डॉ.

माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११५

‘रोटरी क्लब ऑफ म्हापसा’द्वारा आयोजित अर्पण व्याख्यानमाला


 पणजी (गोवा) : ‘रोटरी क्लब ऑफ म्हापसा’द्वारा आयोजित अर्पण व्याख्यानमालामें ‘क्या न्यायव्यवस्थाका एक ही मार्ग रह गया है ?’ विषयपर बोलते हुए डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामीने प्रतिपादित किया कि देशके ४४ लाख ५० सहस्र मंदिरोंको सरकारद्वारा नियंत्रणमें लिया गया है; जबकि एक भी मस्जिद अथवा चर्च नियंत्रणमें नहीं लिया गया । मंदिरकी कुल आयमेंसे केवल ६ से ७ प्रतिशत निधि मंदिरकी व्यवस्थापर व्यय की जाती है । शेष निधि भ्रष्टाचारद्वारा हडप की जाती है । मंदिरोंसे प्राप्त निधि हज यात्राके लिए दी जाती है । संसद, प्रशासन एवं पत्रकारिता लोकतंत्रके ये तीन स्तंभ ढह गए हैं । उन्हें खडा करनेके लिए न्यायसंस्था उत्तम पर्याय है । इस पर्यायका उचित उपयोग कर न्यायालयीन अंकुशद्वारा पूरी बिगडी व्यवस्थामें सुधार लाना संभव है । 

इस अवसरपर डॉ. स्वामीने श्रोताओंको रामसेतुका तोडना एवं केरलके नटराज मंदिरका सरकारीकरण रोकने हेतु सफलतापूर्वक की गई न्यायालयीन लडाईके संदर्भमें बताया ।

डॉ. स्वामीने कहा, ‘भ्रष्टाचार तथा कामके बोझके कारण जनप्रतिनिधि साधारण जनताकी समस्याओंपर समाधान नहीं ढूंढ पाते । प्रशासकीय तंत्र भ्रष्टतासे ग्रसित हैं । ऐसी स्थितिमें न्यायालयमें जाना ही उपयुक्त पर्याय सिद्ध होता है । जो लोग न्यायालयमें नहीं जा सकते उनके लिए न्यायालयने जनहितकी दृष्टिसे वर्ष १९८१ में न्यायालयमें जानेका अधिकार दिया । तदुपरांत जनहित याचिकाका पर्याय आया । केवल भारतमें जनहित याचिका प्रविष्ट करनेका अधिकार है, जो देशमें अधिकाधिक जागृत शिक्षितवर्ग सिद्ध होनेका परिणाम है । मैंने २-जी स्पेक्ट्रम घोटालेके विरुद्ध न्यायालयमें याचिका प्रविष्ट की थी, जिसके फलस्वरूप न्यायालयने सरकारद्वारा दिया गया २-जी स्पेक्ट्रमका ठेका निरस्त कर दिया ।’

न्यायालयीन लडाईद्वारा डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामीका हिंदुओंको न्याय दिलानेके उदाहरण

डॉ. स्वामीने कहा,
१. ‘रामद्वारा सेतुका निर्माणकार्य किया गया, यह सत्य इतिहास है । हिंदुद्वेषी करुणानिधिने ऐसा सेतु तोडनेका निर्णय लिया । इसके विरुद्ध याचिका प्रविष्ट कर मैंने न्यायालयको पटाया कि सेतुसमुद्रम् प्रकल्प किस प्रकारसे व्ययकारी (खर्चीला) है । इसलिए न्यायालयने यह प्रकल्प रोका ।

२. केरलके चिदंबरम् गांवमें १ सहस्र ५०० वर्ष पूर्वका नटराज मंदिर सरकारद्वारा नियंत्रणमें लिया गया था । वहां पूजा करनेवाले पुजारियोंको मंदिरसे हटा दिया गया था । इसके विरुद्ध मैंने न्यायालयीन लडाई की एवं मंदिरका प्रशासन वापस न्यासियोंको देनेके लिए बाध्य किया । पूजा करना भक्तका अधिकार है । धर्मनिरपेक्ष सरकार मंदिर कैसे चला सकती है ? भविष्यमें कोई सरकार मंदिरका व्यवस्थापन हाथमें लेनेका साहस नहीं करेगी ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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