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इस्लामिक विश्वविद्यालयका विषय सर्वत्र पहुंचाने हेतु आयोजित ‘हिंदु गर्जना सभा’ के कारण हिंदुओंमें जागृति

माघ कृष्ण पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११५

तिरुपति श्री बालाजीके पुण्यक्षेत्रमें स्थापित हो रहे हीरा इस्लामिक विश्वविद्यालयके विरुद्ध हिंदू जनजागृति समितिकी ओरसे २० दिसंबरको विशाल हिंदु गर्जना सभा आयोजित की गई थी । प्रशासनद्वारा इस सभाका विरोध करनेसे समितिके कार्यकर्ताओंको प्रशासनके विरोधका सामना कर सभा संपन्न करनी पडी । सभा सफलतापूर्वक संपन्न होनेकी बात समझनेपर श्रीगुरुदेवने कहा, `जो अपेक्षित था, वह प्राप्त हुआ’ । इससे हिंदू जनजागृति समितिका मूल उद्देश्य निद्रिस्त हिंदुओंको जागृत करना, जागृत हिंदुओंको संगठित करना तथा संगठित हिंदुओंको क्रियाशील करना, साध्य हुआ, इसकी अनुभूति आई तथा श्रीगुरुदेवजीके बोलनेका अर्थ समझमें आया । इस अवसरपर हुए अनुभव आगे दे रहे हैं ।

१. स्थानीय हिंदुओंको जागृत करने हेतु किया गया विविधांगी प्रचार-प्रसार !

सभाका प्रसार करते समय एक बात विशेष रूपसे ध्यानमें आई, वह यह कि वहांके अधिकतर स्थानीय लोगोंको भी वहां स्थापित हो रहे इस्लामिक विश्वविद्यालयके संदर्भमें कुछ भी जानकारी नहीं थी । अत: घरघर जाकर विषय प्रस्तुत करना, रिक्शासे उद्घोषणा करना, भित्तीपत्रक चिपकाना, हस्तपत्रक वितरित करना, ऐसी विविध पद्धतियोंद्वारा प्रचार-प्रसार कर लोगोंको जागृत करना पडा ।

२. सभाद्वारा हिंदुओंमें हुई जागृति

२ अ. सभाके पश्चात रिक्शा चालकको विश्वविद्यालयके विषयमें सत्य समझमें आनेकी बात बताना :

सभाके दूसरे दिन हम सभी साधक रिक्शासे `श्री बालाजी’के दर्शन हेतु जा रहे थे, उस समय रिक्शा चालकसे विश्वविद्यालयके विषयमें पूछा । तब उसने कहा कि कल ही यहां एक विशाल सभा हुई । उसी समय मुझे भी यह समझमें आया कि यहां ऐसा कुछ चल रहा है, । यह सुनकर हम सभी साधकोंको श्रीगुरुदेवजीके चरणोंमें बडी कृतज्ञता प्रतीत हुई ।

२ आ. प्रसिद्ध वृत्तवाहिनियोंद्वारा सभाका चित्रीकरण, सीधा प्रक्षेपण तथा चर्चासत्रोंका आयोजन करना :

आंध्र प्रदेशकी प्रसिद्ध वृत्तवाहिनियोंमेंसे ५ वृत्तवाहिनियोंने सभाका चित्रीकरण किया तथा कुछने सीधा प्रक्षेपण भी किया । परिणामस्वरूप समाजमें इस विषयके संबंधमें गांभीर्य उत्पन्न हुआ है । कुछ वृत्तवाहिनियोंने चर्चासत्रोंका आयोजन भी किया । आंध्र प्रदेशका प्रसिद्ध वृत्तपत्र ‘आंध्राज्योति’ ने ५ दिन निरंतर विश्वविद्यालयके विषयमें वार्तांकन किया ।
इन सबसे निद्रिस्त हिंदुओंको जागृत करना, समितिका मूल उद्देश्य सिद्ध होनेकी बातका अनुभव हुआ ।

३. जागृत हिंदुओंको संगठित करने हेतु उठाए गए कदम

३ अ. ‘तिरुमला तिरुपति पावित्र्य सुरक्षा वेदिका’ नामके संगठनकी स्थापना तथा विश्वविद्यालयका विरोध करनेके कार्यका आरंभ ! :

तिरुपति स्थित कुछ स्थानीय हिंदुत्ववादी अपनी क्षमतानुसार उस विश्वविद्यालयका विरोध करनेका प्रयास कर रहे थे । ऐसे हिंदुओंके तथा वहांके स्वामीजीके समर्थनमें समितिने अपना सारा बल लगा दिया । आंध्र प्रदेशके अलगअलग क्षेत्रोंमें अलगअलग विषयोंको लेकर कार्यरत रहनेवाले अन्य हिंदुत्ववादी संगठन इससे पूर्व ही गोवामें आयोजित हिंदु अधिवेशनके माध्यमसे समितिसे जुड गए हैं । उन सभीको विषय समझानेपर उन्होंने संगठित होकर कार्य करनेकी सिद्धता दिखाई । इससे अल्पावधिमें सारे हिंदुत्ववादी, स्वामीजी तथा समितिका ‘तिरुमला तिरुपति पावित्र्य संरक्षण वेदिका’, नामका एक संगठन स्थापित हुआ । इस संगठनके अंतर्गत इस विश्वविद्यालयका विरोध करनेका कार्य आरंभ हुआ तथा श्रीकृष्णकी कृपासे जागृत हिंदुओंके संगठित होनेकी बात समझमें आई ।

३ आ. विश्वविद्यालयका समूल उच्चाटन होने हेतु निर्माणाधीन श्री वेंकटेश्वर सेनामें सम्मिलित होने हेतु सैकडों युवकोंद्वारा अपने नाम देना :

सभा समाप्त होनेपर विश्वविद्यालयका समूल उच्चाटन होनेतक कार्य करने हेतु ‘श्री वेंकटेश्वर सेना’, इस नामसे एक सेनाकी स्थापना करनी आवश्यक है, इस विचारसे वृत्तपत्रमें विज्ञापन दिया । विज्ञापन देनेके पश्चात केवल ४-५ दिनोंमें ही सैकडों युवकोंने इस सेनामें भरती होने हेतु अपने नाम दिए । इससे अपने हिंदु धर्मपर आया संकट नष्ट करने हेतु समितिने इच्छुक तथा हिंदुत्व हेतु निस्वार्थ कार्य करनेकी इच्छा मनमें रखनेवाली युवा पीढीको कोने-कोनेसे संगठित किया तथा जागृत हिंदुके संगठित हो जानेकी प्रचीति आई ।

४. संगठित हिंदुओंको क्रियाशील करना

४ अ. निष्क्रिय हिंदु संगठनका आंदोलन करने हेतु प्रवृत्त होना :

इस्लामिक विश्वविद्यालयके विषयमें सबकुछ जाननेपर भी कुछ न करनेवाले कुछ प्रतिष्ठित हिंदु संगठनोंने समितिद्वारा आयोजित हिंदु गर्जना सभा संपन्न होनेके पश्चात आंध्र प्रदेशके अलग अलग स्थानोंपर आंदोलन करना आरंभ किया है ।

४ आ. विविध जनपदोंके हिंदुत्ववादियोंद्वारा तिरुपतिका विषय जानकर हिंदुत्वका कार्य करनेकी इच्छा प्रकट करना :

सभाके पश्चात अपने अपने जिलोंमें प्रसार हेतु वापिस आए कार्यकर्ताओंसे मिलनेवाले हिंदुत्ववादी भी तिरुपतिका विषय जाननेको उत्सुक दिखे । सब जाननेके पश्चात वे समितिके मार्गदर्शनमें कार्य करनेके उद्देश्यसे, `हम भी हिंदुत्वका कार्य करनेकी इच्छा रखते हैं; आप बताइए कि हम क्या करें’, ऐसा कहने लगे । इस प्रकार वे संगठित होकर कार्य भी करने लगे हैं ।

कृतज्ञता : इससे जो अपेक्षित था, वह प्राप्त हुआ, ऐसा जो श्रीगुरुदेवने बताया था, उसका अर्थ समझमें आया । हिंदु राष्ट्र स्थापित करने हेतु समाजमें जाकर निस्वार्थ सेवा करने हेतु पगपगपर श्रीगुरुदेव मार्गदर्शन कर रहे हैं, इस विचारसे तथा इस कार्यकी फलनिष्पति्त देखकर हिंदु राष्ट्रकी स्थापना अवश्य होगी ही, ऐसी दृढ श्रद्धा उत्पन्न हुई । अत: हम श्रीगुरुदेवके चरणोंमें कोटि कोटि कृतज्ञ हैं । हे प्राणप्रिय, परम प्रिय श्रीगुरुराया, हिंदु राष्ट्र स्थापनाके उच्च कार्यमें आपने हम तृणवत जीवोंको सम्मिलित करवा लिया है । सेवाके माध्यमसे अखंड सिखा रहे हैं तथा भरभरके आनंद दे रहे हैं, इस हेतु आपके चरणोंमें जितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, अल्प ही है। हम सभी साधकोंसे आपको अपेक्षित ऐसी सेवा करवा लीजिए । आपकी कृपा हमपर सदैव बनी रहे, आपके चरणोंमें शरणागत भावसे ऐसी प्रार्थना है ।
– सौ. विनुता शेट्टी, आंध्र प्रदेश (९.१.२०१४)

स्त्राेत : दैनिक सनातन प्रभात

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