माघ कृष्ण पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११५
प्रस्तावना : हिंदुओंके पवित्र तीर्थक्षेत्र तिरुपतिमें निार्माण किए जारहे इस्लामिक विश्वविद्यालयके विरोधमें हिंदू जनजागृति समितिने एक विशाल आंदोलन का आयोजन किया था । उसके लिए अलग अलग स्थानोंसे हिंदुओंको आमंत्रित किया जा रहा था । उस उपक्रमके अंतर्गत ही प्रसार हेतु हम प्रतिदिन स्थानीय हिंदुओंको आमंत्रित करनेके लिए जाते थे । प्रसारके समय प्राप्त अनुभव नीचे प्रस्तुत किए जारहे हैं ।
१. तिरुपति के हिंदुओंकी स्थिति
१ अ. इस्लामिक विश्वविद्यालयकी स्थापना के विषयमें अधिकांश स्थानीय हिंदुओंका अनभिज्ञ होना :
इस कालावधिमें एक आश्चर्यजनक बात ध्यानमें आई, वह यह कि वहांके अधिकांश स्थानीय हिंदू, अपने नगर अथवा क्षेत्रमें इस्लामिक विश्वविद्यालय नामक ७ मालोंका विशाल भवन निर्माण हुआ है, इस बातसे सर्वथा अनभिज्ञ थे ।
१ आ. कुछ हिंदुओं द्वारा व्यक्त की गई प्रतिक्रिया :
कुछ लोग, उनके यहां विश्वविद्यालय बनानेसे क्या बिगडता है ? वे भी इस देशके ही नागरिक हैं ना ? इस प्रकारकी प्रतितिक्रिया दे रहे थे तो कुछ लोगोंका ऐसा कहना था, कि उन लोगोंको यहां आने दें ! क्योंकि शासन न्यूनतम (कमसे कम) उनके लिए वृहत स्तरपर नागरी सुविधाओंकी उपलब्धि तो करवायेगा । इससे अपने शासनकी कार्य पद्धति कैसी है, यह ज्ञात होता है ।
२. हिंदुओंको स्वसुखके सामने हिंदु बांधवोंपर आनेवाले संकट एवं उसी प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षाकी तिलमात्र चिंता न होने की बात संज्ञानमें आनेसे, धर्मशिक्षा देनेकी अनिवार्यता परिलक्षित होना
उपरोक्त प्रतिक्रिया सुनकर ऐसा विदित होता है कि हिंदु कितने निद्रिस्त हैं, कितनी चरमसीमाके संकुचित स्वार्थग्राही हैं एवं स्वसुखके सामने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षाकी तिलमात्र चिंता नहीं है, यह ध्यानमें आया । वे स्वयं,स्वत:का कुटुंब एवं अपने जीवनके अतिरिक्त विचार ही नहीं करते । फलस्वरूप अपने चारोंओर क्या चल रहा है, अपने देशकी वर्तमान स्थिति क्या है, इस देशके अपने अन्य हिं बांधव किस प्रकार एवं कैसे संकटोंसे जूझ रहे हैं, इसका विचार भी उनके मनको स्पर्श नहीं करता ।
हम एक पवित्र क्षेत्रके निवासी हैं, इस क्षेत्रकी पवित्रताकी रक्षा करना, यह अपना कर्तव्य है, इसका अल्पसा भी बोध उन्हें नहीं है । ऐसे लोगोंके कारण ही देशके बहुसंख्य हिंदु एवं यह देशही उद्ध्वस्त होनेके मार्गपर है, ऐसा प्रतीत हुआ । ऐसे हिंदुओंमें हिंदुत्वकी चेतना जागृत करनेके लिए धर्म शिक्षाकी अत्यंत आवश्यकता है, यह बात ध्यानमें आयी ।
३. तिरुपतिमें दर्शनार्थियोंके लिए रखी गई कडी सुरक्षाव्यवस्था
३ अ. प्रत्येक स्थानपर जांच यंत्रोंद्वारा जांच करनेके उपरांत ही यात्रियोंको आगे छोडा जाना :
तिरुमला-तिरुपति, तीर्थ क्षेत्रमें प्रत्येक स्थानपर जांच यंत्र लगाए गए हैं । प्रत्येक व्यक्ति तथा उसका सपूंर्ण छोटा-मोटा सामान जांच करनेके उपरांत ही आगे छोडा जाता है । देवस्थान एवं शासन संयुक्तरूपसे यहांकी सुरक्षाका उत्तरदायित्व संभालते हैं । यात्रियोंके लिए देवस्थानके बडे-बडे निवासस्थान हैं । वहांपर निवास करनेवाले चाहे जितनी बार आएं-जाएं,किंतु प्रत्येक बार उनकी जांच करनेके उपरांत ही आगे छोडा जाता है ।
३ आ. धंटों पंक्तिमें लगकर की जानेवाली जांच पडताल
१. श्री बालाजीके मंदिरमें जाते समय अपने साथ कोई भी इलेक्ट्रॉनिक वस्तु लेकर जानेपर बंधन है । बाहर तैनात किए गए देवालयके अधिकारियोंके पास अपने भ्रमणभाष(मोबाइल), छायाचित्रक(कैमरा) एवं तत्सम वस्तुएं जमा करनेके लिए घंटों पंक्तिमें लगना पडता है ।
२. तदोपरांत देवर्शनार्थ पुन: पंक्तिमें खडा रहना पहता है ।
३.अंतमें देवस्थानसे प्रदान किए जानेवाले लड्डूरूपी प्रसादकी भी जांच की जाती है ।
४.सुरक्षाके नामपर हिंदुओंकी इतनी कडी जांच करनेवालोंने देवस्थानकी भूमिपर निर्माण किए जानेवाले इस्लामिक विश्वविद्यालयकी ओरसे आखें पूर्णरूपसे बंद कर रखीं हैं । ऐसा विदित होता है कि यहां देवस्थान एवं राष्ट्रीय सुरक्षाका कदापि विचार नहीं किया गया ? जहांपर ०.५ प्रतिशत भी मुसलमान नहीं हैं, वहांपर विश्वविद्यालय का निर्माण क्यों किया जारहा है, उसका क्या उद्देश्य है, इसका विचार न करनेवाले शासन एवं देवस्थानके व्यवस्थापनको , दिनभरमें श्री बालाजीके दर्शनार्थ आनेवाले बहुसंख्य हिंदु भक्तोंकी जांच करके क्या मिलेगा ? देवस्थान एवं शासनको इस बातपर अवश्य विचार करना चाहिए ; परंतु चूंकि वे उसका विचार नहीं कर रहे हैं, इसलिए अब जागृत हिंदुओंको ही उन्हें तदनुसार विचार करनेके लिए बाध्य करना चाहिए ।
– श्रीमती विनुता शेट्टी, आंध्रप्रदेश
स्त्रोत : दैनिक सनातन पभात