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इस शहीद ने किया था अंग्रेजों पर पहला बम धमाका, छोटी उम्र में चढा़ था फांसी

माघ कृष्ण पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११५


 भागलपुर (बिहार) :  देश आज ६५वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। हर साल की तरह इस साल भी लाल किले पर देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ध्वजारोहण करेंगे। ध्वजारोहण के बाद उन्हें २१ तोपों की सलामी दी जाएगी। dainikbhaskar.com इस पैकेज से आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहा जो मात्र १८ साल की उम्र में देश की लिए फांसी चढ़ गया था । देश की आजादी के लिये शहीद होने वाले खुदीराम बोस सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे । उनका जन्म ३१ दिसंबर, १८८९ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में बद्दूनैनी गांव में एक सधारण परिवार में हुआ था । अंग्रेजों की बर्बरता को देख खुदीराम बोस ने नवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और भारत के स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे । आजादी की लड़ाई के लंबे इतिहास में खुदीराम बोस द्वारा ही संभवत पहला बम धमाका किया गया । 


१९०५ में एक कृषि प्रदर्शनी के दौरान सोनार बांग्ला नाम के अखबार की प्रतियां बांटने के दौरान पुलिस ने उन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था, लेकिन गवाही के अभाव में वे बरी हो गए थे । १९०५ में ही अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत बंगाल विभाजन के विरुद्ध हुए 'बंग भंग' आंदोलन में भी खुदीराम बोस ने अपनी भूमिका निभाई । इस दौरान ६ दिसंबर की ठंड में खुदीराम बोस ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर विशेष रेलगाड़ी में सवार बंगाल के तत्कालीन गवर्नर पर बम से हमला किया था, लेकिन संयोगवश गवर्नर बाल-बाल बच गए थे । ये धमाका  करने के बाद सुदीराम पकड़े गए और ११ अगस्त, १९०८ को बिहार के मुजफ्फरपुर जेल में खुदीराम बोस को फांसी पर लटका दिया गया।

 बोस ने १९०८ में अंग्रेज अधिकारियों वाटसन एवं पैरुपल फूलर पर बम से प्रहार किया था । 'युगान्तर' नामक क्रांतिकारी संगठन ने अपनी बैठक में मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड द्वारा आन्दोलनकारियों को निर्मम सजा सुनाने के फैसले पर सजा देने की बात कही थी । इसकी जिम्मेदारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को दी गई ।

 बोस बम-पिस्तौल के साथ मुजफ्फरपुर पहुंच गए। ब्रिटिश न्यायाधीश की सारी गतिविधियों को समझ-बूझकर रात के समय क्लब से लौटने के दौरान अंधेरे में खुदीराम बोस ने न्यायाधीश किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर बम से ताबड़तोड़ प्रहार कर दिया । धमाके की आवाज तीन मील दूर तक गूंजी थी। दुर्भाग्यवश उस बग्घी में न्यायाधीश सवार नहीं था, लेकिन बम धमाके से दो ब्रिटिश महिलाओं की चीथड़े उड़ गए।

३० अप्रैल, १९०८ की उसी रात्रि नंगे पैर २४ मील दूर दौड़ते हुए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी पास के बेना रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां ब्रिटिश शासन द्वारा खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया । बोस को गिरफ्तार होते देख प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली । बाद में त्वरित कार्रवाई करते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने ११ अगस्त, १९०८ को मुजफ्फरपुर जेल में ही खुदीराम बोस को फांसी पर चढ़ा दिया । इसके बाद किंग्सफोर्ड ने भी अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। बाद में क्रांतिकारियों के भय से बीमार हालत में उसका निधन हो गया । 

 कहा जाता है कि क्रांति का ‘पहला बम धमाका जहां खुदीराम बोस ने किया था, वहीं 'भगवत् गीता' हाथ में लेकर फांसी पर झूलने वाले वह देश के पहले सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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