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दूध मिलावटखोरों को हो उम्रकैद की सजा : सुप्रीम कोर्ट

माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११५

नई दिल्ली – दूध में वाशिंग पाउडर, कास्टिक सोडा, यूरिया और वाइटनर जैसे खतरनाक पदार्थों की मिलावट पर सुप्रीमकोर्ट नें चिंता जताते हुए राज्यों से कानून सख्त करने को कहा है। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा २७२ में संशोधन कर मिलावट के अपराध में उम्रकैद तक की सजा किए जाने पर राज्यों से जवाब मांगा है। इसके अलावा पहले से कानून सख्त कर चुके उत्तर प्रदेश से पूछा है कि मिलावट के आरोपी कितने लोगों के खिलाफ इस कानून में कार्रवाई की गई है?

न्यायमूर्ति केएस राधा कृष्णन व न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की पीठ ने दूध में मिलावटी दूध के मामले में सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए। खाद्य पदार्थो में मिलावट की आईपीसी की धारा २७२ में संशोधन के बारे में राज्यों को तीन सप्ताह के भीतर जवाब देना है। कोर्ट ने राज्यों के हलफनामों पर असंतोष जताते हुए उन्हें बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। राज्यों को हलफनामे में दूध ब दुग्ध पदार्थों में मिलावट और की गई कार्रवाई का ब्योरा देना होगा। अगली सुनवाई २० फरवरी को होगी।

इससे पहले कोर्ट ने राज्यों से मिलावट रोकने के किए गए उपायों के बारे में पूछा। उत्तर प्रदेश ने बताया कि २०१२-१३ में १२३७ मामलों में और २०१३-१४ में १८५ मामलों में मिलावट पायी गई। इनमें से ५२ और २२ नमूनों में वनस्पति तेल, डिटर्जेट, स्टार्च, वाइटनर आदि खतरनाक पदार्थो की मिलावट में मुकदमें हुए हैं। याचिकाकर्ता के वकील अनुराग तोमर ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने कानून संशोधित हो चुका है, उम्रकैद तक की सजा है लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया है कि कितने लोगों पर इस कानून में कार्रवाई हुई है। इस पर कोर्ट ने प्रदेश सरकार को अगली सुनवाई पर ब्योरा पेश करने का निर्देश दिया।

पंजाब ने बताया कि ७८५ में से २८ मामलों में मिलावट पायी गई। कुछ में प्लास्टिक तत्व भी मिले। कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि ऐसी मिलावट स्वास्थ्य के बहुत खतरनाक है इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं। दूध बच्चों से लेकर सभी पीते हैं। कोर्ट के मिलावट के सवाल पर वकील ने कहा कि गाय प्लास्टिक और गंदगी खाती है। जवाब पर कोर्ट ने नाखुशी जताई। उधर हरियाणा ने एक मामले में डिटर्जेट व बाकी में पानी की मिलावट पाए जाने की बात कही।

धारा २७२ में संशोधन पर सिर्फ विचार चलने की दलील पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि क्या जब लोग मरने लगेंगे तब कार्रवाई होगी। राज्य सरकार को इतना लंबा समय क्यों लग रहा है। अगर सरकार कुछ नहीं करती तो मुख्य सचिव को बुलाया जाएगा। जब कोर्ट को बताया गया कि मिलावट का कानून तो पहले से ज्यादा कमजोर हो गया है। पहले छह महीने की सजा थी लेकिन अब तो सिर्फ जुर्माना लेकर दोषी को छोड़ दिया जाता है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि कानून के दांत तो मिलावटी दूध से गिर गए हैं। राज्य सरकारें रोकथाम के बजाए पैसा एकत्र करके ही खुश हो रही हैं।

स्त्रोत : जागरण

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