पेशावर : पाकिस्तान के सूबे ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में इस वक़्त लगभग पचास हज़ार हिंदू रहते हैं, जो आज से नहीं, बल्कि पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। लेकिन हाल ही में पेशावर जा कर बहुत से हिंदुओं से मिलकर ऐसा लगा जैसे वो अब इस इलाक़े में मायूसी का जीवन बिता रहे हैं और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं रखा। हिंदू समुदाय के मुद्दों पर काम कर रहे जाने-माने कार्यकर्ता हारून सरबदियाल का कहना है कि हिंदू युवाओं को तालीम से ज़्यादा आसानी से शराब बेचने का परमिट उपलब्ध है और वो पेशावर शहर में ग़लत धंधों में लगे हैं। कहते हैं कि किसी क़ौम को गुमराह करना हो तो उसकी नौजवान पीढ़ी को तबाह कर दो। कौन क़सूरवार जाने-माने कार्यकर्ता हारून सबरदियाल हिंदुओं के मुद्दों पर काम करते हैं। कालीबाड़ी हो या करीमपुरा, दोनों ही पुराने पेशावर के तंग गलियों वाले इलाक़े हैं जहां बचे-खुचे वाल्मिकी समुदाय के लोग रहते हैं। मैंने मशहूर क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार के जंगी मुहल्ले का सफ़र तय किया और वहां वर्षों से अपना प्रेस चला रहे इतिहासकार इब्राहिम ज़िया सेमिलकर हिंदुओं और पेशावर के इतिहास की जानकारी ली तो हैरानी हुई कि मुग़ल दौर से लेकर बंटवारे तक इस शहर के बड़े कारोबारी लोग हिंदू ही थे।
इतिहासकार इब्राहिम जिया पेशावर के हिंदुओं के इतिहास की जानकारी रखते हैं। गहनों के कारोबार से लेकर सिनेमाघर तक, सब हिंदूओं के हाथ में था और मुसलमान उनके मुलाज़िम थे। फिर बंटवारा और मुस्लिम लीग का बोलबाला हुआ तो वक़्त पलट गया। आहिस्ता-आहिस्ता हिंदू समुदाय अपने ही शहर में गुमनाम होता गया। सिंध प्रांत के ज़िले मीठी थारपारकर में, जो राजस्थान के बॉर्डर से जुड़ा है, वहां देखा जाए तो हिंदू शांति से ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। वहां के डॉक्टर सोनू खंगरानी के मुताबिक़ ख़ैबर पख़्तून ख़्वाह में ना सिर्फ़ हिंदुओं ने अपना लिबास तब्दील किया बल्कि वो नाम भी बदलने पर मजबूर हुए। उनका कहना था कि इसके लिए सरकार कसूरवार है। इतिहास का हिस्सा लेकिन सरकार तो इसके बारे में कुछ जानती ही नहीं। मैंने जब मौजूदा सरकार के सूचना मंत्री मुस्ताक़ गनी से संपर्क किया तो वो मेरा शुक्रिया अदा करके बोले “ये आपके ज़रिए ही मुझे पता चला है कि यह ज़ुल्म हो रहा है। ” उनसे बात करने के बाद मैं सोचती रही कि पेशावर, जिस पर कभी हिंदू राज किया करते थे आज उन्हें एक मंत्री तक पहुंचना इतना मुश्किल क्यों है जबकि पाकिस्तान संविधान तो तमाम अल्पसंख्यकों को जीने का बुनियादी हक़ देता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ साल बाद इस प्रांत में हिंदू इतिहास का हिस्सा हो जाएं।
स्रोत : न्यूज़शंट