पाकिस्तान में अपना पुश्तैनी गाँव घर सदा के लिए छोड़ भारत चले आए हज़ारों हिंदू भारतीय नागरिकता के लिए सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनका कोई देश नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान उनके लिए अब बीती बात है और भारत ने उन्हें अभी अपनाया नहीं है। पाकिस्तान के ये हिंदू अल्पसंख्यक हाल में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के जोधपुर दौरे के दौरान उनसे मिले और अपना दर्द बयां किया।
सरकार से गुहार पाकिस्तान के हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए काम कर रहे सीमान्त लोक संगठन के मुताबिक़, राजनाथ सिंह ने ज़रूरी कार्यवाई का वादा किया है, मगर बेघर होने के दर्द ने इन अल्पसंख्यकों की रातों की नींद उड़ा रखी है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए गंगाराम कहते हैं, ज़िंदगी वहां बहुत दुश्वार थी, मगर यहाँ भी आसान नहीं है। हम पर अब भी पाकिस्तानी होने की इबारत चस्पा है।” चाहे कुछ भी हो जाए अब हम वापस उस मुल्क का रुख़ नहीं करेंगे।
केंद्र सरकार ने क़रीब दो माह पहले पाकिस्तान से आए इन हिंदुओं की नागरिकता के लिए देशभर में शिविर लगाए थे। इनमें चार शिविर राजस्थान में भी आयोजित किए गए थे, लेकिन नागरिकता की मंज़िल अब भी दूर है, क्योंकि इन हिंदुओं के मुताबिक़, नागरिकता का शुल्क इतना भारी है कि उनकी फटी जेब इसको पूरा नहीं कर सकती।
जेब पर भारी फ़ीससीमान्त लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं, नागरिकता देने का अधिकार अब पूरी तरह केंद्र सरकार के हाथ में है। हमारी मांग है कि नागरिकता देने का अधिकार ज़िला कलेक्टर को दिया जाना चाहिए।सोढ़ा के मुताबिक़, इससे पहले वर्ष २००५-०६ में शिविर लगाकर १३ हज़ार पाकिस्तानी हिंदुओं को हाथोंहाथ भारतीय नागरिकता दी गई थी, क्योंकि उस समय नियम और फ़ीस में ढील दी गई थी।
इन हिंदुओं में ज़्यादातर या तो दलित हैं या फिर आदिवासी भील समुदाय के हैं।
इनमे से एक, प्रेम भील ने अपने पूरे परिवार के साथ २००५ में भारत का रुख़ किया था।
दरबदर प्रेम बताते हैं, उस वक्त पांच साल भारत में गुजारने के बाद नागरिकता मिल रही थी, अब इसे सात साल कर दिया गया है। मगर बड़ी समस्या नागरिकता शुल्क की है, ये अभी पांच हज़ार से लेकर २५ हज़ार तक है। इसमें छह श्रेणियाँ हैं।
उनके मुताबिक़, अधिकांश परिवार बेहद ग़रीबी में जीवन गुजार रहे हैं। उनके लिए यह राशि जुटाना नामुमकिन है। संगठन के अनुसार, इस समय राजस्थान में लगभग २० हज़ार पाकिस्तानी हिंदू हैं, जो नागरिकता के लिए गुहार लगा रहे हैं। भारत में पनाह लेने के लिए पाकिस्तान से हिंदुओं का आना जारी है। दोनों देशों के बीच हर हफ्ते फेरी लगाती रिश्तों की रेल थार एक्सप्रेस इसका ज़रिया बनी हुई है।
क्यों छोड़ रहे वतन आखिर पाकिस्तान के हिंदू भारत का रुख क्यों कर रहे हैं?
सोढा बताते हैं, बहुत बेबसी में ही लोग अपना घर गाँव छोड़ते हैं। धार्मिक भेदभाव और अल्पसंख्यक आबादी के साथ उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं ने अल्पसंख्यकों को भारत आने के लिए मज़बूर कर दिया है। यहां आए लोगों के चेहरे पर दर्द की झुर्रियां हैं। इनमें से हर कोई अपनी बदनसीबी की दास्ताँ सुनाता मिलता है, इस उम्मीद में कि कभी ये दास्ताँ वो भी सुनेंगे जिन्हें उनकी क़िस्मत का फैसला करना है ।
स्त्रोत : पल पल इंडिया