माघ शुक्ल पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११५
वि.दा.सावरकर |
१. वीर सावरकरकी स्वराज्य संकल्पना
स्वतंत्रतावीर वि.दा.सावरकर दिसंबर १९२७ के श्रद्धानंद में कहते हैं, `जिसमें हमारी अस्मिता अबाधित रहती हो वही स्वराज्य है’ । जिसमें प्राणोंसे प्रिय अपनी अस्मिता, अपने हिंदुत्वका, हमें परित्याग करना पडे अथवा अपना सम्माननीय ध्वज अहिंदुओंके पैरोंपर न्योछावर करना पडे, वह हम हिंदुओंका स्वराज्य नहीं ।
२. पराधीन राष्ट्रोंको अन्य राष्ट्रों, विशेकर उनपर राज्यकरनेवाले राष्ट्रके शत्रु-मित्रादिकी गतिविधियोंको सावधानीसे देखना चाहिए !
फरवरी १९२८ के श्रद्धानंदमें वे लिखते हैं, कि प्रत्येक परतंत्र राष्ट्रको अपने अभ्युदयके लिए संघर्ष करते समय, सामान्यत: जगके अन्य राष्ट्रोंकी कार्यप्रणालियों एवं जिस समाजके शिकंजकी लौह पकडके कारण वे झुके रहते हैं, उस साम्राज्यके शत्रु-मित्रादि, पडोसियोंकी गतिविधियोंको सावधानीसे देखना चाहिए ।
३. अपने पराक्रमको विस्मृत भारतीय !
२९ नवंबर १९३० के केसरीमें पर-आक्रम (पराक्रम) अर्थात बीचके कालमें शत्रु देशपर चढाई करनेका पूर्ण विस्मरण होगया जिसके फलस्वरूप हमारे देशकी सीमाएं संकुचित होगइं । (१९३० में युगद्रष्टा वीर सावरकरको जिसका बोध हुआ, उसका ज्ञान हमें अभी भी नहीं हुआ है । प्रतिदिन हमारे अस्मिताहीन राज्यकर्ता केवल सुरक्षात्मक नीतिमें ही समाधान मानकर अपनी पीठ थप-थपा लेते हैं । हमारे रक्षामंत्री तो सीमावर्ती प्रांतमें गोलीबारी होनेपर वहां जाना भी टालते हैं । ऐसे दुर्बल राज्यकर्ता शत्रुपर चढाई करना तो दूर, शत्रुको ही चढाई करनेके लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिसके फलस्वरूप हमारी सीमाएं आजभी असुरक्षित हैं । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
४. विदेशनीति कैसी होनी चाहिए ?
चीनने भारतपर आक्रमण किया । उसके विषयमें वीर सावरकरने निम्नानुसार कहा है ।
अ. जो विश्वासघात नहीं करता वह शत्रु नहीं !
आ. जब कोई पडोसी देश मित्रता प्रदर्शित करता है, उस समय तो फूंक फूंक कर पैर रखने चाहिए ।
इ. हमारा राजनैतिक हित जिससे साध्य होता हो, वही हमारा मित्र है !
ई. वास्तविक तटस्थ नीति वही है, जिसके कारण सभी देशोंसे हम अपना हित साध्य करवा लें । (सत्ताके लिए लालायित कांग्रेसी एवं स्वार्थांध राजनैतिक लोग, शत्रुके विषयमें क्या ऐसी नीतिको कभी स्वीकार कर सकते हैं ? राष्ट्रकी अस्मिता प्रतिदिन तार–तार होनेपर भी, निर्लज्ज निद्रिस्त राजनैतिक, राष्ट्रहितसे स्वहित कैसे साधा जा सकता है, रात-दिन इसीका विचार करते रहते हैं । पाकिस्तान, चीन, बंगलादेश आदिके द्वारा किए जानेवाले आक्रमण एवं चाढाईयोंको सहज ही दुर्लक्ष करते हैं । चीन जैसे शत्रुने भाई-भाई कहते हुए विश्वास्घात कर हमारा भूभाग अपने नियंत्रणमें कर लिया इसके पश्चात भी नेहरू सरीखे व्यक्ति स्वत:को भाग्यविधाता संबोधित करवाकर अपना महिमामंडन करवानेवाले, यह कहते हुए कि वह भूभाग महत्वपूर्ण नहीं था, अपनी विदेशनीतिकी दुर्बलता एवं विफलताको ढकते हैं । यदि स्वा. वीर सावरकर जैसे नेताके हाथमें राष्ट्रकी डोर होती तो ऐसी अपकीर्ति देखनी नहीं पडती । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
५. परराष्ट्र संधियां करते समय ध्यानमें रखनेवाले सूत्र
अ. विदेशनीतिकी समीक्षा करते समय, भारतको अन्य देशोंद्वारा प्रकटकी गई घोषित नीतियों पर अधिक विश्वास न कर, स्वराष्ट्रहितको ही प्रमुख तत्त्व मानते हुए तदनुसार संधि करनी चाहिए ।
आ. अंतरराष्ट्रीय संबंधोंमें बहुधा कोई अनन्य शत्रु अथवा मित्र नहीं होता एवं स्वसामर्थ्यवान होनेपर ही संधियोंका उपयोग होता है । (आज हमारे राजनेता सैनिकोंके सिर काटकर उन्हें भालेकी नोकपर लगाकर नाचनेवाले पाकिस्तानसे संधिकी याचना करते हैं. भारतमें आमंत्रितकर उनका सम्मान एवं आदरातिथ्य करते हैं । जिसके फलस्वरूप केवल पाकिस्तान ही नहीं वरन श्रीलंका सहित सर्व छोट-छोटे देशोंने, भारत कितने पानीमें है, इसका अनुमान लगाकर भारतीय सीमाओंको असुरक्षित कर दिया है । राष्ट्रकी एकता एवं एक संघता को ही धक्का लग रहा है । ऐसे विकट समयमें राष्ट्रको सामर्थवान बनानेके प्रयत्न करनेकी अपेक्षा, आज यह कांग्रेस शासन इसे शक्तिहीन करनेके लिए देशभक्तोंके देशप्रेमको समूल उखाड फेकनेमें ही अपने पूरे सामर्थ्यका उपयोग कर रहा है । दुष्ट एवं देशद्रोही स्वार्थांधोंद्वारा रोपित विषवृक्षके कारण ही आज ऐसी विकट परिस्थितिमें भी संपूर्ण देश भोगलालसामें लिप्त है । आज हमारी स्थिति जलते हुए रोममें फीडल बजानेवाले नीरो जैसी ही है । आज देशमें राष्ट्र एवं धर्मके विषयमें प्रेमका अभाव है । आज इस देशको स्वा. वीर सावरकरके जाज्वल्य देशप्रेमकी अत्यंत आवश्यकता है । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
६. अपनी तटस्थताकी घोषण करना भी हास्यास्पद है !
‘आत्मानं सततं रक्षेत ।’ अर्थात आत्मरक्षा ही हमारी विदेशनीतिका मूल मंत्र होना चाहिए; यह स्पष्ट करते हुए मई १९५२ में वीर सावरकरने अपने भाषणमें कहा था, `हमारा भारतीय राष्ट्र जबतक शस्त्रसज्ज नहीं होता तब तक हम तटस्थ हैं, ऐसी खोखली डींग भी हम नहीं मार सकते’ भेड-बकरियां, हम आपपर आक्रमण नहीं करना चाहते, सियारसे ऐसा कहना जितना हास्यास्पद है, उतना ही हास्यास्पद, हम तटस्थ हैं, यह कहना होगा ! यदि चिडिया यह कह दे कि वह तटस्थ है, तो क्या बाज उनपर झपट्टा मारना छोड देगा ?’( देशवासी भारतीय बंधुओं, क्षमा सामथ्र्यवानोंका बल है, एवं उनको ही शोभित करता है, दुर्बलों को नहीं. भेड-बकरियों जितने प्रतिकारक्षमताहीन अपने राजनैतिकोंको अब आक्रामक होकर यह बात कहनेका समय आगया है । शस्त्रसज्जता एवं पराक्रम, इस राष्ट्रकी विदेशनीतिके ये ही महत्वपूर्ण अंग हैं । इसलिए हे भारतीय बंधुओं जागृथ हों ! पराक्रमी हों एवं देशको बचाएं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
– श्रीकांत ताम्हणकर (संदर्भ : स्वयंभू, दीपावली अंक २०१३)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात