माघ शुक्ल पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११५
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हाल ही में एक नगरमें हिंदु धर्मजागृति सभा आयोजित की गई थी । सभाके दूसरे दिन पुलिस अधीक्षकने भ्रमणभाषपर संपर्क कर हिंदू जनजागृति समितिके कार्यकर्ताको अपने कार्यालयमें आनेके लिए कहा; परंतु किसलिए आमंत्रित किया है, इसका कारण नहीं बताया । दूसरे दिन संध्या समय ५.४५ से ७.१५ की कालावधिमें जिला पुलिस अधीक्षकके कार्यालयमें एक अधिवक्ता, दैनिक सनातन प्रभातके वार्ताकार एवं हिंदू जनजागृति समितिके कार्यकर्ता गए थे । इस समय पुलिस अधीक्षकके साथ हुआ उनका संभाषण यहां दे रहे हैं ।
पुलिस अधीक्षक : क्या आपको पता है कि आपको मैंने किसलिए आमंत्रित किया ?
समितिके कार्यकर्ता : नहीं ।
पुलिस अधीक्षक : अधिक स्मार्ट न बनें । प्रतिदिन हम अनेक लोगोंको मिलते हैं । इसलिए कौन कैसा है इसकी हमें पहचान है ।
कार्यकर्ता : हमें सचमें पता नहीं है । आपके कार्यालयसे जब मुझे एक पुलिसकर्मीका फोन आया कि साहबने मिलनेके लिए बुलाया है, तब मेरे उनसे, ‘किसलिए बुलाया है’, पूछनेपर उन्होंने कहा कि मुझे पता नहीं है ।
पुलिस अधीक्षक : (दैनिक सनातन प्रभातके वार्ताकारको उद्देश्यकर) इनको साथमें क्यों लाया ? मैंने केवल आपको ही आमंत्रित किया था । ये बिन बुलाए मेहमान हैं । इससे पूर्व आपने इन्हें साथमें नहीं लाया था । आज क्यों लेकर आए ?
कार्यकर्ता : वे मेरे साथ आए हैं ।
पुलिस अधीक्षक : (वार्ताकारको सनातन प्रभातमें हिंदु धर्मजागृति सभाके समाचारका कतरन दर्शाते हुए कहा) : ये क्या छापा है ? क्या आपको मराठी आती है ?
वार्ताकार : क्या छापा है ?
पुलिस अधीक्षक : पढकर तो दिखाएं ?
वार्ताकार : इसमें कौनसा सार पढकर दिखाऊं ? (तदुपरांत पुलिस अधीक्षकने स्वयं ही अपने संदर्भमें सार पढना आरंभ किया ।)
पुलिस अधीक्षक : क्या ऐसा छापा जाता है ?
वार्ताकार : वक्ताने जो वक्तव्य दिया है, उसे छापा है ।
पुलिस अधीक्षक: आप ऐसे ही कुछ भी छापते हो ।
वार्ताकार : सनातन प्रभातमें आपत्तिजनक क्या है, बताएं । (तदुपरांत पुलिस अधीक्षकने वार्ताकारको बाहर बैठनेके लिए कहा )
पुलिस अधीक्षक : यदि मेरी कार्यपद्धतिपर कोई आपत्ति है, तो उसपर बोल सकते हैं; परंतु व्यक्तिगत जीवनके विषयमें उन्होंने क्यों बोला ? नाम धर्मजागृति सभा; परंतु आलोचना मेरी । मेरे व्यक्तिगत जीवनके विषयमें बोला । कल यदि किसीने ऐसा कहा (कार्यकर्ताका नाम लेते हुए ) कि इन्होंने काली संडास की, कितना भी पानी डालनेपर वह बहकर नहीं गई, तो हाथसे उसे हटानेका प्रयास किया । ऐसी बातें बताइं, तो क्या होगा ? (पुलिस अधीक्षकने पूरे संभाषणमें ४ बार ये वाक्य सुनाए ।) (सत्य न पचनेके कारण निम्नस्तरपर जाकर वक्तव्य देनेवाले पुलिस अधीक्षक ! ऐसे पुलिस अधीक्षक जनताके समक्ष क्या आदर्श रखेंगे ? ऐसे पुलिसकर्मियोंका जनताके राजस्वके पैसोंसे क्यों पोषण करें ? संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) मेरे जिलेमें आकर मेरी आलोचना करते हो इसका क्या अर्थ है ? (कार्यकर्ताको उद्देश्यकर) आप दोनों घरमें क्या करते हो यह देखनेके लिए क्या आपके घर किसीको रखवाली करनेके लिए कहूं ? आप आयोजक थे, तो आपने वक्ताको क्यों नहीं रोका ? आपने स्टेजपरसे ऐसा क्यों नहीं प्रकट किया कि जो विषय प्रस्तुत किया गया है वैसा कुछ नहीं है । हमारे पास इस प्रकारके कोई प्रमाण नहीं हैं । आप आयोजक होनेके योग्य नहीं हैं । आप सभाके लिए अनुमति मांगने क्यों आते हो ? भविष्यमें अनुमति लेने हेतु आप आपके वरिष्ठ लोगोंको भेजें ।
कार्यकर्ता : साहब, आयोजकके रूपमें मेरी योग्यता है अथवा नहीं, यह समिति निश्चित करेगी । इससे पूर्व हमने जिलेमें अनेक कार्यक्रम आयोजित किए हैं । इसमें पुलिसको कहीं भी कष्ट नहीं हुए ।
पुलिस अधीक्षक : मैं डेढ वर्षसे यहां हूं । हम अनेक बार मिले हैं; तो आपने अभी ही मेरी आलोचना की ? मैं आपको अच्छा व्यक्ति मानता था । मैं आपको हमेशा ‘तुम’ नहीं, अपितु ‘आप’ कहकर पुकारता हूं । आपके मेरे पास आते ही मैं आपके कार्यक्रमके लिए अनुमति देता हूं । आपको आधे घंटेसे अधिक रुकना नहीं पडता । यदि विलंब हुआ, तो मैं आपको घर जानेकी अनुमति देता हूं । पश्चात घरपर अनुमति भेजता हूं । आप आए तो चाय पिलाता हूं । (प्रत्यक्षमें अनुमति प्राप्त करने हेतु समितिके कार्यकर्ताओंको पुलिस अधीक्षकके पास बार बार जाकर पृष्ठपोषण / अनुवर्ती प्रयास करना पडता है । केवल एक बार चाय पिलाई थी । हिंदू जनजागृति समितिके कार्यकर्ता ) अब मेरी बदली होगी । तदुपरांत यहां आपने मेरे संदर्भमें कितना भी भाष्य किया, तो मैं इस संदर्भमें कुछ नहीं बोलूंगा ।
एक यातायात पुलिस निरीक्षककी ओर देखकर पुलिस अधीक्षकने उनसे पूछा कि समितिके कार्यकर्ताओंको अब क्या करना चाहिए ? इसपर निरीक्षकने कहा कि इनको एक पत्रकार परिषद आयोजित कर उसमें इस घटनाके लिए क्षमायाचना करनी चाहिए ।
कार्यकर्ता : साहब, क्षमा मांगनेका प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता ? हमने वक्ताको ऐसा बोलनेके लिए नहीं कहा है । वे उनके विचार हैं । पीछे जिलेमें प्रा. श्याम मानवके ५ कार्यक्रम आयोजित किए गए थे, जिनमें प्रथम अर्थात रत्नागिरीके कार्यक्रमसे पूर्व हमने आपको एक निवेदन दिया था जिसमें प्रा. मानव संत एवं धर्मकी निंदा करते हैं; इसलिए उनका कार्यक्रम निरस्त करनेकी मांग की गई थी । इसपर आपने कहा था कि प्रत्येकको अपने विचार प्रस्तुत करनेकी स्वतंत्रता है । वैसा अधिकार प्रत्येकको है । इसलिए ना हम उनका कार्यक्रम निरस्त कर सकते और ना ही उनपर कोई कार्यवाही कर सकते । तदुपरांत प्रा. मानवने अपने कार्यक्रममें संतोंकी आलोचना की । हमारे श्रद्धास्रोत प.पू. डॉ. आठवलेजीकी भी निम्नस्तरपर जाकर निंदा की । हमारे वक्ताओंको भी अपने विचार प्रस्तुत करनेका अधिकार है ।
पुलिस अधीक्षक : उन्होंने मेरे व्यक्तिगत जीवनकी आलोचना की ।
कार्यकर्ता : वक्ता निरपराध हिंदुनिष्ठोंके पक्षमें लडनेवाले अधिवक्ता हैं । उन्होंने दंगाईयों एवं दो स्थानोंकी अनधिकृत मस्जिदोंके विरुद्ध कार्यवाहीके लिए न्यायालयमें लडाई की है । उनका कार्य देखकर हमने उन्हें सभामें वक्ताके रूपमें आमंत्रित किया है ।
पुलिस अधीक्षक : आप आयोजक हैं । कार्यक्रमके लिए अनुमति आपने ली है । अतः हम आपपर कार्यवाही करेंगे । पुलिसदलको भडकानेके संदर्भमें, पुलिसमें असंतोष व्याप्त करनेके नामपर अपराधकी प्रविष्टि करेंगे । (पुलिसमें असंतोष व्याप्त होनेके लिए राजनेता एवं पुलिस अधिकारी ही उत्तरदायी हैं । तो भी उसका दोष हिंदू जनजागृति समितिके मत्थे मढनेवाले पुलिस अधीक्षक ! संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
अधिवक्ता : साहब, समितिके कार्यकर्ता आयोजक हैं । आप उनके विरुद्ध अपराधकी प्रविष्टि कैसे कर सकते हैं ? साहब, वक्ताने सीधे आपपर आरोप नहीं लगाए । उन्होंने ऐसा प्रस्तुत किया कि आपके संदर्भमें इससे पूर्व अन्य समाचारपत्रोंद्वारा प्रसारित घटनाएं सनातन प्रभातने प्रसारित नहीं की थीं । तो भी आपने कहा कि सनातन प्रभातमें भडकीला लेखन किया जाता है । सभाकी समाप्तिके उपरांत कृतज्ञता भी व्यक्त की गई । इस प्रकारसे प्रत्येक कार्यक्रममें कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।
पुलिस अधीक्षक : यदि मुझे कोई बात बुरी लगी, तो मैं कभी क्रोधित होकर नहीं कहता । मैं इस व्यक्तिको (दैनिक सनातन प्रभातके वार्ताकारकी ओर अंगुलीनिर्देश कर ) कभी आमंत्रित नहीं करता । वही आकर मुझे दैनिक बताता है । उस दिन मैंने उसे हंसते हुए कहा कि ऐसा भडकीला क्यों छापते हो ? तनिक सौम्यतासे लें । मैंने व्यक्तिगत रूपसे कहा था, उन्होंने त्वरित उसे छाप दिया । उसपर ईश्वरकी कृपा न्यून है । उसे लगता होगा कि मुझे उसके साथ मित्रताका आचरण करना चाहिए; परंतु मुझे इसकी क्या आवश्यकता है ? आप यदि मेरे व्यक्तिगत जीवनके संदर्भमें बोलना चाहते हैं, तो वैसी अनुमति मांगें । कुछ शर्तोंके आधारपर मैं दूंगा । पश्चात कार्यक्रममें पुलिस अधीक्षक ऐसे हैं, तथा वैसे हैं ऐसा बताया, तो भी मुझे पसंद है । मुझपर लगाए आरोपोंके विषयमें मुझे कुछ नहीं लगा; परंतु मेरे सहयोगियोंको बुरा लगा है । मैं इन आरोपोंका सामना करते हुए आगे बढा हूं । ईश्वरकी कृपासे मैं आगेके स्तरपर पहुंच गया हूं । (स्वयं ही स्वयंको प्रशस्तिपत्र देनेवाले पुलिस अधीक्षक ! ईश्वरकी कृपा होनेके लिए प्रथम साधना करनी पडती है । साधना करना तो दूर, इसके विपरीत राष्ट्र एवं धर्मके कार्यमें अडचनें उत्पन्न करनेवाले पुलिसकर्मियोंपर क्या कभी ईश्वरकी कृपा होगी ?- संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) इन आरोपोंमें मैं निर्दोष हूं, यह सिद्ध हो गया है । इतनी साधारण जानकारी प्राप्त करना आपको संभव नहीं हुआ एवं सीधे मुझपर आरोप लगाते हो । मैं आपको अच्छा व्यक्ति समझता था ।
अधिवक्ता : साहब इनका (हिंदू जनजागृति समितिका) कार्य अत्यंत अच्छा है ।
पुलिस अधीक्षक : यदि आप मेरे स्थानपर होते, तो क्या किए होते ? आपके मेरे मित्रताके संबंध हैं; इसलिए लगता था कि कार्यवाही न करें । मन दुखी हो रहा है । आप आयोजकके रूपमें क्या कार्यवाही करेंगे, २ दिन उपरांत बताएं । मैं भी मेरी पद्धतिके अनुसार क्या कार्यवाही करना संभव है, देखता हूं । (क्या इसको पुलिस अधीक्षककी धमकी समझें ? संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात