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चतुर्थ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में सम्मिलित हिन्दूत्वनिष्ठों के पारिवारिक भावना, भाव तथा साधना में वृद्धि !

चतुर्थ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के समय हिन्दूत्वनिष्ठों में पारिवारिक भावना, भाव तथा साधना की लगन वृद्धिंगत हो रही है, यह दर्शानेवाली कुछ क्षणिकाएं

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चतुर्थ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के समय हिन्दुत्वनिष्ठों के संदर्भ में हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताओं के ध्यान में आए कुछ विशेष सूत्र …

१. हिन्दुत्वनिष्ठों की साधना करने की लगन अधिक बढ गई है । अनेक लोगों ने अधिवेशन स्थल पर उपस्थित संतों को ‘सनातन-निर्मित किस ग्रंथ का अभ्यास करें ?’, ‘प्रथम कौनसा ग्रंथ पढें ?’, इस संदर्भ में पूछकर तुरंत सभागृह के बाहर आयोजित सनातन-निर्मित ग्रंथ प्रदर्शनी से ग्रंथ क्रय कर उसका अभ्यास प्रारंभ किया ।

२. यह प्रतीत हुआ कि, हिन्दुत्वनिष्ठों में पारिवारिक भावना निर्माण हुई है । अधिकांश हिन्दुत्वनिष्ठ एकदूसरे से प्रथम बार ही मिल रहे थे; किंतु उनके वार्तालाप से एेसा प्रतीत हो रहा था कि वे पहले से ही परीचित है ।

३. अधिवेशन में हिन्दी तथा अंग्रेजी इन भाषाओं में मनोगत व्यक्त किया जा रहा था । जिन हिन्दूत्वनिष्ठों को विषय आकलन होने में अडचनें आ रही थी, वे एकदूसरे को पूछ कर विषय ज्ञात कर रहे थे ।

४. अधिवेशनस्थल पर सर्व हिन्दुत्वनिष्ठ तथा कार्यकर्ताओं को परिचयपत्र दिया गया है । उसे गले में लटकाकर ही अधिवेशनस्थल पर प्रवेश करने की कार्यपद्धति है । उपस्थित हिन्दुत्वनिष्ठ इस कार्यपद्धति का पालन ‘आज्ञापालन’ के रूप में करते हुए दिखाई दिए । एक दिन एक हिन्दुत्वनिष्ठ गले में परिचयपत्र परिधान करना भूल गया, तब अन्य हिन्दुत्वनिष्ठों ने उसे प्यार से कार्यपद्धति का भान करवाया तथा बताया कि, ‘‘हमें गुरुजी ने (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने) परिचयपत्र परिधान करने के लिए बताया है । हमें उनका आज्ञापालन करना चाहिए ।’’

अन्य एक हिन्दुत्वनिष्ठ परिचयपत्र परिधान करने के लिए भूल गया, तब एक कार्यकर्ता ने उसे उस संदर्भ में बताया । तत्पश्चात् किसी भी प्रकार का स्पष्टीकरण देने की अपेक्षा उस कार्यकर्ता ने सहायता की, इसलिए उसकी प्रशंसा कर हिन्दुत्वनिष्ठ पुनः जाकर परिचयपत्र परिधान कर आए ।

५. एक हिन्दुत्वनिष्ठ ने अपना अनुभव व्यक्त किया कि, ‘प्रातः ९.३० से रात्रि ८.३० तक अधिवेशन के बीच में पृथक-पृथक उद्बोधक सत्र, गुटचर्चा आरंभ रहती हैं । किंतु यहां की सात्त्विकता तथा चैतन्य के कारण इतने समय तक अधिवेशन में बैठना सहज हो रहा है ।’

६. भोजन एवं अल्पाहार के लिए उपलब्ध कालावधि में हिन्दुत्वनिष्ठों को भ्रमणभाष भारित करने की (चार्ज करने की ) व्यवस्था की गई थी । उस संदर्भ में अधिकांश हिन्दुत्वनिष्ठों ने ‘छोटी छोटी बातों का विचार कर नियोजन किया गया है, साथ ही अच्छी व्यवस्था की है’, यह बताकर कृतज्ञता व्यक्त की ।

७. दक्षिण भारत में राजनेताओं की अयोग्य नीति के कारण हिन्दी पढार्इ नहीं जाती । अतः दक्षिण के अधिकांश लोगों को हिन्दी भाषा अच्छी तरह से अवगत नहीं है । अधिवेशन में सम्मिलित हुए दक्षिण भारत के हिन्दुत्वनिष्ठों को हिन्दी भाषा में वार्तालाप करने में अडचनें आती है, इसलिए उन्हें अंग्रेजी में मनोगत व्यक्त करना बाध्य हो रहा है । इस विषय का हिन्दुत्वनिष्ठों को दुख था तथा सभी ने मनोगत के प्रारंभ में हिन्दी भाषा अवगत न होने का दुख व्यक्त किया ।

सात्त्विकता की दृष्टि से ग्रथों का अभ्यास करनेवाले हिन्दुत्वनिष्ठ !

१. अधिवेशनस्थल पर आयोजित किए गए सनातन-निर्मित ग्रंथ प्रदर्शनी पर ‘धर्म’ इस अंग्रेजी ग्रंथ की ओर देखने के पश्चात् अधिक चैतन्य एवं सात्त्विकता प्रतीत होती है । एक हिन्दूत्वनिष्ठ ने बताया कि, ‘‘इससे पूर्व मैंने यह ग्रंथ विक्रय किया था; किंतु इसी ग्रंथ का यह मुखपृष्ठ पहले के ग्रंथ की अपेक्षा अधिक सात्त्विक एवं चैतन्यमय प्रतीत हो रहा है ।’’

२. आसाम के एक हिन्दूत्वनिष्ठ प्रतिदिन ग्रंथप्रदर्शनी को भेट देते है तथा ग्रंथों के कक्ष के पास खडे रहकर ग्रंथों का अवलोकन करते हैं ।

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