माघ शुक्ल पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११५
शंकराचार्यजीने ऐसा वक्तव्य क्यों दिया होगा ?
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एक हिंदी समाचारपत्रद्वारा लिए गए विशेष साक्षात्कारमें उत्तराम्नाय ज्योतिष आणि पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजीने ऐसा वक्तव्य दिया कि भाजपाके प्रधानमंत्री पदके उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हिंदुत्वके लिए धोखादायी हैं । कुछ दिन पूर्व शंकराचार्यजीने मोदीके प्रधानमंत्रीपदके विषयमें प्रश्न पूछनेवाले एक पत्रकारके मुंहपर मारा था; परंतु उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि ऐसा हुआ ही नहीं है । सभी एकजात तथाकथित सेक्यूलरिस्ट धर्मनिरपेक्षतावादी पिछले ११ वर्षोंसे वर्ष २००१ में गुजरातमें हुए दंगोंके नामपर नरेंद्र मोदीका नामपर छल कर रहे हैं । उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कहा जा रहा है । भाजपामें मोदी ही एकमात्र प्रखर हिंदुनिष्ठके रूपमें प्रख्यात होते हुए यही मोदी हिंदुत्वके लिए धोखादायी हैं, ऐसा शंकराचार्य कह रहे हैं । इसलिए हिंदुओंको यह आश्चर्यजनक प्रतीत होता है । शंकराचार्यजीने ऐसा वक्तव्य क्यों दिया, इसका विचार करनेकी आवश्यकता है । क्योंकि यह वक्तव्य किसी मोदीविरोधी अथवा अन्य हिंदुनिष्ठ नेताद्वारा नहीं किया गया है, अपितु हिंदुओंके चार पीठोंमें दो पीठोंके प्रमुख धर्मगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीजीने दिया है । हिंदुत्व अथवा अध्यात्मका अभ्यास करनेवाले व्यक्तिको शंकराचार्यजीद्वारा दिए गए वक्तव्योंमें कुछ वक्तव्य योग्य प्रतीत होंगे ।
राष्ट्रभाषाको भूलनेवाले मोदी !
नरेंद्र मोदी देशहितकी बातें करते हैं तथा मुंबईमें जाकर ‘वोट फॉर इंडिया' की घोषणा करते हैं । भारतमें रहकर भारतके लिए मत मांग रहे हैं । पाकिस्तानमें जाकर भारतके लिए मतयाचना की, तो कुछ समझ सकते हैं । इससे ध्यानमें आता है कि मोदीद्वारा लिया गया अंग्रेजी भाषाका आधार एवं उनकी नीतिकी आलोचना की गई है । यदि भारतके भावी प्रधानमंत्री राष्ट्रभाषा अथवा अन्य कोई भी भारतीय भाषाका उपयोग करनेके स्थानपर अंग्रेजी भाषाकी सहायता लेते हैं, तो शंकराचार्यजीको कैसा अच्छा लगेगा ? मोदी इस बातका विचार करें । किसी भी घोषणाको भारतके ग्रामीण क्षेत्रतक पहुंचानेके लिए अंग्रेजी नहीं, अपितु भारतीय भाषा ही आवश्यक है । यदि शंकराचार्यजीको संदेह है कि कल मोदी प्रधानमंत्री बने, तो क्या वे इस बातका विचार करेंगे, तो उसमें क्या अनूचित है ? मोदीके अबतकके भाषणमें उन्होंने राष्ट्रभाषाके विषयमें कुछ भी भाष्य नहीं किया अथवा गुजरातमें भी उन्होंने इस विषयमें कुछ विशेष प्रयत्न किए दिखाई नहीं दिए ।
मुख्यमंत्री मोदी ‘हिंदुत्व’के संदर्भमें असफल ही हैं !
शंकराचार्यजीने मोदीको सुझाव भी दिया है । नरेंद्र मोदीको वेदोंका ज्ञान नहीं है । उनको वेदोंका अभ्यास करना चाहिए, तो ही उन्हें वेद समझमें आएंगे एवं तदुपरांत ही वे बडे-बडे वक्तव्य दें । भारतके कुल सभी राजनीतिक पक्षके नेताओंको वेदोंका ज्ञान रहनेकी बिलकुल संभावना नहीं है । वेद जाननेवाला कोई राजनीतिक नेता रहना दुर्लभसे दुर्लभ बात है, जिसकी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्डमें प्रविष्टि हो सकती है । मोदीको वेदोंका ज्ञान रहनेकी संभावना भी न्यून है । यदि मोदीको वेदोंका ज्ञान होता, तो उन्होंने गुजराथमें जो विकास किया है, उसे धर्मकी नींव मिली होती । मोदी हिंदुनिष्ठ हैं, परंतु फिर भी धर्म, अध्यात्मका अभ्यास की हुई अथवा साधना करनेवाली साधक व्यक्ति नहीं हैं । इसलिए मोदीद्वारा गुजरातका विकास आधुनिक विज्ञानवादी विकास है, जो विकसित राष्ट्रवाली अमेरिका अथवा युरोप समान विनाशकी ओर ले जानेवाला है । इससे पूर्व पुरी पीठके शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजीने भी यह स्पष्ट किया है । यदि मोदी साधक होते अथवा उन्हें वेदोंका ज्ञान होता, तो उन्होंने सत्ताद्वारा खरा हिंदुत्ववाद अर्थात अध्यात्मवाद गुजरात राज्यमें चलाया होता ।
भाजप हिंदुत्वके लिए कार्य कर दिखाए !
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वतीजीने भाजपाकी भी आलोचना की है । उन्होंने कहा है कि भाजपा हिंदुओंकी पहचान करनेवाला पक्ष है । भाजपवाले वेदशास्त्रको नहीं मानते । अतः देशके हिंदुओंको आगामी कालावधिमें विचारपूर्वक निर्णय लेनेकी आवश्यकता है । भाजपा ना तो हिंदुनिष्ठ है ना अध्यात्मवादी । इसलिए अपेक्षित नहीं कि वे वेदशास्त्र मानते होंगे । भाजपा संघका अपत्य है । संघ ही अध्यात्मवादी नहीं है, तो भाजपा एवं भाजपावाले कैसे रहेंगे ? ऐसी भाजपा एवं उनके नेता सत्तामें आनेपर धर्म एवं हिंदुत्वके लिए कुछ करेंगे इसमें संदेह प्रतीत होनेके कारण ही वे मोदी एवं भाजपाको हिंदुत्वके लिए धोखादायी कह रहे हैं । शंकराचार्यजी द्वारा उपर्युक्त साक्षात्कारमें की गई आलोचनाके उपरांत भाजपा अथवा मोदीद्वारा कोई स्पष्टीकरण अथवा प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की गई । इसका अर्थ यही है कि वे शंकराचार्यजीको महत्त्व नहीं देते हैं ।
मोदी हिंदुत्वके लिए धोखादायी हैं अथवा नहीं, यह तो वे प्रधानमंत्रीपदपर विराजमान होनेके पश्चात उनके कामकाजसे सिद्धा करना संभव होगा ।
तबतक हिंदुओंको प्रतीक्षा करनी पडेगी ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात