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काबुल – अफगानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित संसद पर हमला करने वाले सभी सातों आतंकी मारे गए हैं। छह आतंकियों को सिक्योरिटी फोर्सेस ने ढेर कर दिया जबकि एक आत्मघाती हमलावर खुद के किए विस्फोट में मारा गया। सात आम लोगों के भी घायल होने की खबरें हैं। सुरक्षा बलों ने दो घंटे तक चले ऑपरेशन के बाद परिसर की तलाशी लेने का काम शुरू कर दिया। तालिबान ने हमले की जिम्मेदारी ली है। इस हमले को पाकिस्तान की साजिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।
कुल नौ धमाके हुए
जानकारी के मुताबिक हमले के दौरान कुल नौ धमाके हुए। सुरक्षा बल अब यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि धमाके किस तरह से किए गए। यह भी जांच की जा रही है कि कहीं सुरक्षा में कोई कमी तो नहीं थी जिसका आतंकियों ने फायदा उठाया।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, हमला सुबह १० बजकर २० मिनट पर हुआ, जब उप राष्ट्रपति मोहम्मद सरवर दानिश रक्षा मंत्री के नॉमिनी का सासंदों से परिचय करवाने वाले थे।
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संसद में घुसा आतंकी लेकिन किसी सांसद को नुकसान नहीं
एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के मुताबिक एक आतंकी संसद के अंदर भी पहुंच गया था लेकिन वह किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा पाया। सुरक्षा बलों ने उसे काबू में कर लिया था। हमले में सभी सांसदों और पत्रकारों को सुरक्षा बलों ने सुरक्षित निकाल लिया। नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद यह तालिबान की तरफ से पहला बड़ा हमला है।
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तालिबान ने ली जिम्मेदारी
हमले के दौरान ही तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने टि्वटर पर लिखा, “कई मुजाहिद्दीन पार्लियामेंट बिल्डिंग में घुस गए हैं और भारी गोलाबारी जारी है। हमारे लड़ाकों ने हमला उस वक्त किया, जब रक्षा मंत्री पद के लिए उम्मीदवार को संसद में प्रस्तावित किया जा रहा था।” धमाके के वक्त संसद की कार्यवाही जारी थी।
हमले के पीछे पाकिस्तान!
अफगान संसद पर हुए हमले के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ हो सकता है। सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पिछले महीने २५ मई को अफगानिस्तान सरकार के अधिकारियों और तालिबानी नेताओं के बीच चीन में एक बेहद गोपनीय वार्ता हुई थी। इस बात की जानकारी चीन के ही कुछ खुफिया अधिकारियों ने आईएसआई को दे दी। पाकिस्तान को लगता है कि कहीं अफगानिस्तान में उसकी भूमिका कम न हो जाए या अफगान सरकार भारत और अमेरिका के ज्यादा करीब न चली जाए, इसीलिए तालिबान के एक खास धडे़ से यह हमला कराया गया है। चीन में हुई उस बातचीत में अफगान प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मोहम्मद मासूम स्तानिकजेई ने किया, जो कि पिछले सप्ताह तक देश की शांति वार्ता संस्था हाई पीस काउंसिल के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य थे। उनके अलावा पूर्व सांसद सत्ता मे साझेदार अब्दुल्ला अब्दुल्ला के सहयोगी मोहम्मद असीम ने भी इस बैठक में शिरकत की।
तालिबान की ओर से तीन वरिष्ठ नेता मुल्ला अब्दुल जलील, मुल्ला मोहम्मद हसन रहमानी और मुल्ला अब्दुल रज्जाक बैठक में शामिल हुए। खास बात यह है कि ये तीनों पाकिस्तान में ही रहते हैं और तालिबान के क्वेटा स्थित नेतृत्व परिषद के करीबी है।
हमले के पीछे राजनीतिक वजह तो नहीं
एक विदेशी न्यूज एजेंसी के जर्नलिस्ट ने अपने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि हमले के पीछे अफगानिस्तान की अंदरूनी राजनीति हो सकती है। उसने कहा कि अफगानिस्तान में संसद ही सबसे सुरक्षित जगह है और वहां आत्मघाती धमाके के बाद भी घुसना असंभव है। लेकिन न सिर्फ हमलावर संसद परिसर में घुसे बल्कि संसद भवन के भीतर भी एक आतंकी पहुंच गया। इस जर्नलिस्ट ने कहा कि ऐसा तभी हो सकता है जब कोई बड़ा सुरक्षा अधिकारी या सांसद उसकी मदद करे। फिलहाल, वहां उपराष्ट्रपति और रक्षा मंत्री की नियुक्ति को लेकर विवाद चल रहा है।
भारत ने की थी संसद बनाने में मदद
अफगानिस्तान में संसद भवन के निर्माण कार्य में भारत ने भी मदद की है। इसके लिए आर्थिक सहायता के साथ ही वहां भारतीय कर्मचारियों को भी तैनात किया गया है। अफगानिस्तान संसद भवन के निर्माण के लिए २६० करोड़ रुपए दिए गए।२०१४-१५ के दौरान इस योजना के वास्ते ९५ करोड़ रुपए जारी किए गए। इस भवन के निर्माण कार्य में भारत के १११ कर्मचारी जुटे थे।
संदर्भ : दैनिक भास्कर