कोलंबो – श्रीलंका के एक सैनिक को जाफना में करीब १५ साल पहले चार नाबालिगों समेत आठ तमिल नागरिकों को गला काटकर मारने के जुर्म में मौत की सजा सुनाई गई है। यह दुर्लभ मामला है, जिसमें सेना को उसकी कार्यवाहीयों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
दो न्यायाधीशों वाले हाई कोर्ट ने गुरुवार को स्टाफ सार्जेन्ट सुनील रत्नायके को मौत की सजा सुनाई। उसके चार सहयोगियों को प्रत्यक्ष सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
जाफना के मीरूसुवील गांव में हुए इस नरसंहार का पता तब चला था, जब कुछ नागरिक सेना के हमले से बचकर भाग निकले थे। उन्होंने अन्य लोगों को इस घटना की जानकारी दी थी।
कोर्ट को बताया गया कि मासूम लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी गई और उन्हें जाफना में सामूहिक कब्र में दफना दिया गया। यह घटना १९ दिसंबर २००० को हुई थी।
इलाके में टाइगर छापामारों और सैनिकों के बीच हुई भीषण लड़ाई के दौरान इन लोगों के घर पर बम फेंक दिया गया था। वे उस वक्त तो वहां से चले गए थे, मगर बाद में अपने घरों की हालत देखने पहुंचे तो उनकी हत्या कर दी गई।
तत्कालीन राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा की सरकार ने मामले को दबाने के बजाय सैनिकों की पूरी यूनिट को निलंबित कर दिया था। पांच लोगों को अरेस्ट करके उनके खिलाफ २००३ में आरोप तय किए गए थे।
श्रीलंका की सेना पर मई २००९ में समाप्त हुए गृहयुद्ध के आखिरी महीनों में कम से कम ४०००० तमिल नागरिकों को मार डालने का आरोप है।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स