माघ शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११५
क्या हिंदु अपने श्रद्धास्रोतोंके अनादरके विरोधमें कभी ऐसी तत्परता दर्शाते हैं ?
मुंबई – धर्मांधोंद्वारा ५ फरवरीको यहांके मुंबई उच्च न्यायालयमें ‘या रब’ हिंदी चलचित्रके विरोधमें जनहित याचिका प्रविष्ट की गई है । इस संदर्भमें ६ फरवरीको मुंबई उच्च न्यायालयके मुख्य न्यायमूर्ति मोहित शहा एवं न्यायमूर्र्ति एम.एस. संकलेचाके समक्ष सुनवाई हुई ।
१. यह याचिका ‘जमियत-उलेमा-ए-महाराष्ट्र’ स्वयंसेवी संगठनद्वारा प्रविष्ट की गई है । इस चलचित्रमें मदरसोंका चित्रण आतंकवादके स्रोतके रूपमें होनेके संदर्भमें उन्होंने आपत्ति उठाई है ।
२. इस संदर्भमें अधिवक्ता मतीन शेखने बताया कि इस चलचित्रमें मदरसेके अध्यापकोंद्वारा लडकोंका बुदि्धभेद कर उन्हें आतंकवादके लिए सिद्ध करनेके संदर्भमें दर्शाया गया है । यह चित्रण अवास्तव, विद्वेषी एवं चूक है । इसलिए इसपर हमें आपत्ति है ।
३. याचिकाकर्ता गुलजार आजमीने कहा कि मदरसे अराष्ट्रीय अथवा अमानुषिक कृत्योंके केंद्र नहीं हैं । वहां लडकोंको शिक्षा दी जाती है । राज्यमें सहस्रों मदरसे होते हुए इस प्रकारका चलचित्र दर्शाया जानेपर जातीयवाद एवं हिंसा भडकनेकी संभावना है । (क्या इसे धर्मांधोंकी धमकी समझें ? आजतकके अनेक दंगोंसे स्पष्ट हो गया है कि हिंसा कौन करवाता है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
४. याचिकाकर्ताके और एक अधिवक्ता अफरोज सिदि्दकी एवं अन्सार तांबोलीने कहा कि चलचित्र परिनिरीक्षण मंडलने दो बार इस चलचित्रकी प्रदर्शनीको अनुमति देनेमें टालमटोल की थी । (हिंदुओंके आस्थास्रोतोंके अनादरके संदर्भमें अनेक बार परिवाद करनेपर भी ढुलमुल नीतिको अपनानेवाले चलचित्र परिनिरीक्षण मंडल धर्मांधोंकी भावनाओंको आहत करनेवाले चलचित्रोंकी अनुमति अस्वीकार करते हैं । यह है परिनिरीक्षण मंडलका दुरंगीपन ! हिंदु असंगठित होनेके कारण ही इस प्रकारसे उनकी भावनाओंको कोई महत्व नहीं देता, यही सच है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) मात्र निर्माताओंके लवादकी ओर जानेपर उन्हें अनुमति दी गई है ।
५. तत्पश्चात ७ फरवरीको यह चलचित्र प्रदर्शित हो गया है ।
६. इस चलचित्रके विरोधमें भुसावलमें भी जमियत-उलेमाद्वारा प्रांताधिकारियोंको निवेदन दिया गया है । इस चलचित्रको प्रखर विरोध होनेकी संभावना है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात