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उच्च न्यायालयद्वारा ‘खैरलांजीके माथेपर’, इस चित्रपट प्रदर्शनपर स्थगनके आदेश !

माघ शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११५ 

चरित्रहनन करनेका भोतमांगेका कहना !

देवताओंके अनादरवाले चित्रपट, नाटिका, विज्ञापन आदिके विरोधमें क्या हिंदु भी इस प्रकारसे न्यायालयीन लडाई करेंगे ? 

 

नागपुर (महाराष्ट्र) – ‘खैरलांजीके माथेपर’ इस चित्रपटमें भैयालाल भोतमांगेको मद्यपी तथा नामर्द प्रदर्शित किया गया है, साथ ही भोतमांगेकी लडकीकी प्रतिमा मलिन की जा रही है । इस चित्रपटके विषयमें भोतमांगे परिवारसे किसी भी प्रकारकी पूछताछ नहीं की गई, इस परिवादके कारण इस चित्रपटकी प्रदर्शनीको मुंबई उच्च न्यायालयके नागपुर खंडपीठने ६ फरवरीको स्थगनके आदेश दिए हैं । इस याचिकाकी आगेकी सुनवाई १२ फरवरीको होगी । 

१. `खैरलांजीके माथेपर’ राज्यमें यह चित्रपट ७ फरवरीसे प्रसारित होनेवाला था; किंतु चित्रपटमें भैयालाल भोतमांगेका प्रस्तुत यह चित्रण व्यक्तिगत स्वतंत्रताका उल्लंघन करनेकी याचिका भोतमांगे तथा अखिल भारतीय धम्मसेनाके संयोजक रवि शेंडेद्वारा प्रविष्ट की गई है । 
२. २९ सितंबर २००६ को भंडारा जनपदमें मोहाडी तहसीलके खैरलांजी गांवमें परिवारके हत्याकांडकी घटना घटी थी । यह चित्रपट उसीपर आधारित है । 
३. भोतमांगेने याचिकामें प्रस्तुत किया है कि हमारी लडकीपर हुए अन्यायके लिए हम ही कारणीभूत हैं, इस चित्रपटमें ऐसा चित्रण किया गया है । 
४. याचिकाकर्ताके अधिवक्ता जयदेव श्यामकुंवर, अधिवक्ता भूपेश चव्हाण और अधिवक्ता मिलिंद खोबरागडेद्वारा ऐसा तर्क किया गया है कि खैरलांजी हत्याकांड काल्पनिक नहीं, अपितु वह वास्तविकतापर आधारित है । 
५. उच्च न्यायालयने इस याचिकाकी ओर गंभीरतासे ध्यान दिया है । 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात 

 

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