उत्तर प्रदेश में वोटों के लिए ‘ज़हरीली सियासत’

माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११५

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे उत्तर प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल भी गड़बड़ाता दिख रहा है ।


५ फरवरी को संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में बताया कि वर्ष २०१२ के मुक़ाबले २०१३ में उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक घटनाएं दोगुनी से भी ज़्यादा बढ़ गई हैं ।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार वर्ष २०१२ में ११८ सांप्रदायिक घटनाएं हुईं जबकि २०१३ में इन घटनाओं की संख्या बढ़कर २४७ हो गई ।
उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के एक प्रवक्ता सांप्रदायिक घटनाओं को तीन श्रेणियों में रखते हैं ।
एक वो जिसमें जान और माल की हानि हो, यानी दंगे । दूसरी वो जिनमें दो संप्रदायों के लोगों में कहा-सुनी या मामूली झगड़ा हो गया हो और तीसरी वो जिनके कारण सांप्रदायिक तनाव बढ़ता हो । ऐसा विशेषकर त्योहारों पर देखा जाता है ।

राजनीतिक स्वार्थ

यदि यह मान भी लिया जाए कि इन २४७ घटनाओं में से अधिकतर दूसरे और तीसरे प्रकार की होंगी तो भी सांप्रदायिक सौहार्द ख़त्म करके चुनाव जीतना भले ही समाज के लिए हानिकारक हो लेकिन समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों के राजनीतिक हित में है ।

बहुजन समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर गर्व से कहते हैं, "जब तक हमारी सरकार रही, कहीं कोई दंगा नहीं हुआ । लेकिन १५ मार्च २०१२ को समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल खराब हो गया है । अखिलेश यादव के दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने में अभी कुछ समय बाकी है और छोटे-बड़े मिलाकर १२४ दंगे हो चुके हैं । यह सब राजनीतिक स्वार्थ के चलते किया जा रहा है ।"

इन छोटी बड़ी सांप्रदायिक घटनाओं को चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखना आवश्यक है । भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक पूरा दोष समाजवादी पार्टी के ऊपर डालते हैं ।

प्रशासन में दखल

उनके मुताबिक, "समाजवादी पार्टी की सरकार जब भी आती है, एक संप्रदाय के लोग उसे अपना रक्षक मानते हैं और निरंकुश हो जाते हैं । इसलिए छेड़छाड़ और पानी पर विवाद जैसी छोटी घटनाएं भी उग्र रूप ले लेती हैं । इससे सरकार का इक़बाल ख़त्म हो जाता है ।"

उनका मानना है कि यदि उन लोगों को अपराधी की तरह देखा जाए तो वो लोग भी संयम बरतेंगे ।

मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के संदर्भ में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का भी यही कहना था कि दंगों के दौरान प्रशासन में राजनीतिक दखल नहीं होना चाहिए ।

रिहाई

अल्पसंख्यकों की "रक्षक" मानी जाने वाली अखिलेश यादव की सरकार और पार्टी उनके लिए और भी कई योजनाएं चलाने का दावा करती है ।

इनमें हैंडपंप लगाने से लेकर कॉलेज और सड़कें बनाने से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं तो सरकार राज्य के सभी अल्पसंख्यकों के विवादरहित क़ब्रिस्तान और अंत्येष्टि स्थलों के चारों ओर बाउंड्री वॉल भी बनवा रही है

इसके अलावा "हमारी बेटी, उसका कल" जैसी योजनाएं भी हैं । साथ ही राज्य सरकार उन मुस्लिम लड़कियों को आर्थिक सहायता दे रही है जो दसवीं कक्षा के बाद आगे पढ़ना चाहती हैं ।

मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव

मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव

यही नहीं, विधानसभा चुनाव अभियान और चुनाव जीतने के बाद यह वादा करती रही कि 'आतंकवाद के मामलों' में बंद मुसलमानों को रिहा कर दिया जाएगा ।
सत्ता में आते ही प्रदेश सरकार ने सारे मुक़दमे वापस लेने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी । यह बात और है कि उन सभी मामलों में चार्जशीट दाख़िल हो चुकी थी ।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुक़दमे वापस लेने के आदेश पर रोक लगा कर सरकार के इरादों पर पानी फेर दिया । हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है ।

लुभावने वादे

चुनावों को नज़र में रखते हुए सरकार अल्पसंख्यकों के कल्याण हेतु बनाई गयी कुछ योजनाओं को तत्परता से लागू करने में लगी है ।
सरकार के ३० विभागों की ८५ कल्याणकारी और विकास की योजनाओं का २० प्रतिशत अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्रों में ख़र्च किया 
जाएगा ।
इसके अलावा २०१२ में अखिलेश सरकार ने एक निर्णय लिया कि प्रदेश के सभी अल्पसंख्यकों के विवाद रहित कब्रिस्तान और अंत्येष्टि स्थलों के चारों ओर बाउंड्री वॉल बनाई जाएंगी ।

स्त्रोत : बीबीसी हिन्दी

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