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मलेशिया में गैर-मुसलमान छात्रों को रोजे में प्यास लगी तो शिक्षक ने कहा, ‘स्वयं का मूत्र पी लो’ !

इस समाचार से कट्टरपंथियों की हिन्दुआें के प्रति द्वेष भावना का अनुमान लगाया जा सकता है । – सम्पादक, हिन्दू जनजागृति समिति

मलेशिया, कुआलालम्पुर – मलेशिया के एक स्कूल में शिक्षक ने रमजान के दौरान गैर-मुस्लिम बच्चों को प्यास लगने पर खुद का पेशाब पीने का आदेश दे दिया। इस पर विवाद हो गया है। मामला केदाह राज्य के सुंगई पेटानी शहर के सेकालाह रेंदेह केबांगसान इब्राहिम स्कूल का है। बच्चों के अभिभावक (पैरेंट्स) ने शिक्षक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है। शिकायत के बाद शिक्षा विभाग ने शिक्षक पर जांच शुरू कर दी है। वहीं, शिक्षक ने अपने बयान को सिर्फ एक मजाक बताया था। इस मामले से नाराज मलेशिया के कुछ लोगों ने पाठशाला पर पेट्रोल बम से हमला किया। जिसमें दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

शिक्षक ने कहा, पेशाब बाउल से पी लो पानी

रमजान के पवित्र महीने में मुस्लिम बहुल मलेशिया में ज्यादातर आबादी रोजे पर है। रोजे के दिनों में रोजेदार मुस्लिम दिन ढलने से पहले कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। इसे देखते हुए सुंगई पेटानी के एक पाठशाला में क्लास रूम से पानी हटा लिया गया था। जब गैर-मुस्लिम बच्चों ने क्लास के दौरान पानी मांगा तो शिक्षक नाराज हो गया। उसने क्लास रूम में बच्चों को पानी पीने से रोक दिया। साथ ही उसने कहा कि अगर वह प्यासे हैं तो टॉयलेट बाउल से पानी ले सकते हैं या फिर खुद का पेशाब भी पी सकते हैं।

स्कूल में ४० फीसदी छात्र गैर-मुस्लिम

एक छात्र की मां कविथा सोमली ने बताया कि उसके ११ साल के बेटे ने बताया कि शिक्षक ने उसे खुद का यूरिन पीने को कहा है। पहले तो उन्हें यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब उन्होंने बाकी पैरेंट्स से चर्चा की तो हर जगह से ऐसी ही बात सामने आई। गैर-मुस्लिम समुदाय (खासकर हिंदू) ने इस मामले को लेकर विरोध दर्ज कराया है।

मंत्री ने कहा, यह हमारी नीति नहीं

मामले की रिपोर्ट देख कर डिप्टी एजुकेशन मिनिस्टर पी कमलनाथन ने केदाह एजुकेशन डिपार्टमेंट को जांच के आदेश दे दिए। उन्होंने कहा कि गैर-मुस्लिमों को पानी न देना सरकार की पॉलिसी का हिस्सा नहीं है। गौरतलब है कि रमजान में मलेशिया के सार्वजनिक संस्थानों, स्कूलों, कॉलेज-यूनिवर्सिटीज में ज्यादातर कैंटीन बंद कर दी जाती हैं।

मुस्लिमों के सामने न खाएं-पिएं गैरमुस्लिम : उप शिक्षामंत्री

इससे पहले एक अन्य उप शिक्षामंत्री मैरी याप ने गैरमुस्लिमों छात्रों से आग्रह किया था कि वह रमजान में मुस्लिम छात्रों के सामने खाने-पीने से बचें। बीते साल भी मलेशिया सरकार को कड़ी निंदा का सामना करना पड़ा था, जब रमजान में एक गैरमुस्लिम छात्रा को कैंटीन बंद होने के कारण शॉवर रूम में खाना खाने को मजबूर होना पड़ा।

मलय नेताओं का था प्रस्ताव- रमजान में स्कूलों में कैंटीन बंद रखे जाएं

रमजान शुरू होने से पहले मलेशिया में कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने यह प्रस्ताव दिया था कि स्कूलों में कैंटीन बंद कर दिए जाएं। अगर गैर-मुस्लिम बच्चों को पानी पीना या खाना खाना है तो वे बंद कमरों या टॉयलेट में जाकर ऐसा करें। इसके बाद कई उदारवादी मुस्लिमों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ आवाज उठाई।

‘हमें रोजा रखना है तो दूसरे लोगों का खाने का हक क्यों छीनें ?

एक वकील अजहर ने कहा- मुद्दा यह है कि हमारी खुशी के लिए गैर-मलेशियाई लोग क्यों एडजस्ट करें ? वे क्यों रोजा रखें ? हमें रोजा रखना है तो हम दूसरों का खाने का हक क्यों छीनें ? अगर ऐसा करना इतना जरूरी है तो हम हमारे गैर-मलेशियाई भाइयों-बहनों से यह भी क्यों नहीं कह देते कि वे ज्याद पढ़ाई न करें ताकि मलेशियाई मुस्लिम बच्चों को एग्जाम्स में सम्मानजक मार्क्स मिल सकें।

‘मेरी बेटी के ट्यूटर ईसाई हैं, वे अरबी तख्ती के नीचे बैठते हैं, उन्हें तो कोई एतराज नहीं है’

अजहर ने यह भी कहा कि उनकी बेटी के ट्यूटर ईसाई हैं। वे जहां बेटी को पढ़ाते हैं, वहां दीवार पर अरबी लिखी तख्ती टंगी होती है। लेकिन उन्होंने तो कभी इस बात पर ऐतराज नहीं जताया कि उस जगह पर बैठने से उनके ईसाई धर्म का अपमान हो रहा है या उन्हें कन्वर्ट कराने की कोशिशें हो रही हैं। उन्हें अपने मजहब और अपनी आस्था पर भरोसा है। …तो फिर हम इतने डरे हुए क्यों हैं?’

स्रोत : भास्क

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