• बुजूर्ग गौओंका उपयोग नहीं होता, इस लिए उनकी हत्या की जाती है, इसका समर्थन करनेवालोंको का इस संदर्भ में क्या कहना हैं ?
• प्रतिवर्ष एक गोशाला से ३ लक्ष उपलों का विदेश में निर्यात !
सोलापुर (महाराष्ट्र) : यहां शहर के आधुनिक वैद्य, गोप्रेमी तथा समाजसेवकोंने एकत्रित आकर देशी गौओंके संवर्धन हेतु ‘जय संतोषी माता गोशाला’ का निर्माणकार्य किया है। इस गोशाला में गोसंगोपन के साथ गाय के गोबरद्वारा निर्माण किए गए उपलोंका निर्यात किया जाता है। इस निर्यात के कारण नए उद्योग को गति प्राप्त हुई है। प्रतिवर्ष विदेश में ढाई से तीन लक्ष उपलोंका निर्यात किया जाता है। (गौओंके संवर्धन हेतु ‘जय संतोषी माता गोशाला’ चलानेवाले सर्व गोप्रेमियोंका अभिनंदन ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
सूखी गौओंका संगोपन तथा खेती का पूरक उद्योग के रूप में यह व्यवसाय किसानोंको नई दिशा प्रदान करने वाला सिद्ध हो रहा है। महाराष्ट्र के साथ देश तथा विदेश में भी इन उपलों की अधिक मात्रा में मांग है। (गोवंशहत्या बंदी अधिनियम पारित करने के कारण निरुद्योगिता की मात्रा बढ रही है, ऐसा झूठा वक्तव्य देनेवाले गोद्रोही राजनेता तथा विरोधी क्या गोसंवर्धन के इस प्रकार के अभियान का आयोजन कर उद्योगनिर्मिति कर सकते हैं ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) अतः गोवंशहत्या बंदी का विरोध करनेवालोंको मुंहतोड उत्तर प्राप्त हुआ है।
१. इस प्रकल्प के कारण सूखी गौओंकी उपयुक्तता सिद्ध हो रही है।
२. जय संतोषी माता गोशाला के माध्यम से समाज के सुशिक्षित व्यक्तियोंने एकत्रित आकर यह प्रकल्प आरंभ किया।
३. पशुवधगृह में आनेवाली गौओंका विक्रय कर यह गोशाला आरंभ की गई है तथा इसके पीछे देशी गोधन बचाने का महान उद्देश्य है। शहर के चार युवा आधुनिक वैद्योंने इस अभियान का आरंभ किया है। (सर्वत्र के गोप्रेमी गोधन बचाने हेतु कार्यरत सोलापुर के आधुनिक वैद्योंका अनुकरण करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
४. सात वर्ष पूर्व इस गोशाला में सात गौएं थीं। आज वहां ८५ गौएं हैं। वहां गोसेवा के साथ-साथ बडी मात्रा में उपलोंका उत्पादन किया जाता है।
५. एक गाय के लिए प्रतिदिन ६० रुपए का व्यय आता है; किंतु २५ उपलोंका एक पैकिट ३५ रुपए में विक्रय किया जाता है।
६. प्रारंभ में स्थानीय बाजार में विक्रय किए जानेवाले उपलोंको अब विक्रय हेतु विदेश भी भेजा जाता है।
७. अतः इस से यहां की महिलाओंको उद्योग प्राप्त हुआ है। प्रतिदिन १ सहस्र ५०० उपालोंकी निर्मिति की जाती है। इन महिलाओंको ५ से ६ सहस्र रुपए वेतन प्राप्त होता है।
८. अग्निहोत्र के लिए इस गोशाला के उपलों की मांग अधिक मात्रा में है। रूस, जर्मनी, मलेशिया इत्यादि देशों में उपाले भेजे जाते हैं।
९. यहां औषधनिर्मिति तथा सेंद्रिय खाद के लिए उपयुक्त जीवामृत निर्माण करने की प्रक्रिया भी आरंभ की गई है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात
Bahut Bhaut Abhinandan