भविष्यमें उपाययोजना करने हेतु देशमें जनगणना करना आवश्यक है, २४०० वर्ष पूर्व ही यह बतानेवाले कौट

माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११५

१. लोकसंख्यावृदि्ध एक वैशि्वक समस्या है तथा लोकसंख्या एवं जीवनमानका परस्परसंबंध होनेके कारण तथा बढी हुई लोकसंख्याके कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जानेके फलस्वरूप जनगणना करना आवश्यक

लोकसंख्यावृदि्ध एक वैश्विवक समस्या हो गई है । लोकसंख्यावृदि्ध तथा जीवनमानका निकटका संबंध है; अत: लोकसंख्यावृदि्धके कारण अन्न, वस्त्र, निवास, निरुद्योगिता (बेकारी), अपराधी प्रवृत्ति, झोपडट्टीका प्रश्न, जीवनावश्यक वस्तुओंका अभाव, निसर्गका असंतुलित होना एवं पर्यावरण प्रदूषण आदि अनेक भयंकर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं । इस हेतु उस देशकी, राज्यकी लोकसंख्या तथा लोकसंख्याके अनुसार निरंतर सभी हिस्सोंकी विस्तृत जानकारी लेते रहना आवश्यक हो जाता है; अत: जनगणना की जाती है । इसके अतिरिक्त जनगणनाका अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांखि्यकी, मानसशास्त्र, आनुवंशिकी, मानवविषयक एवं भूगोल आदि विषयोंसे, शास्त्रोंसे एकदम प्राचीन तथा निकटका संबंध है ।

२. पूर्व कालमें राज्यका राजस्व इकट्ठा करना, युवक-बूढोंकी जानकारी अंकित करना, व्यवसाय, आय एवं व्ययका मेल बिठाना, इन सभी हेतु जनगणना उपयुक्त सिद्ध होती है ।

जनगणना भारतमें प्राचीन कालसे चली आ रही थी । उस समयके राजे-महाराजाओंके कालमें अपने-अपने राज्यकी सारी संपत्तिकी गिनती करने हेतु जनगणना की जाती थी । इससे उस राज्यसे राजस्व वसूल करनेमें जनगणनाद्वारा इकट्ठी की गई जानकारीका उपयोग होता था । ख्रिस्ताब्द पूर्व ४०० वर्ष पूर्व कौटिल्यके अर्थशास्त्रमें जनगणनाके संदर्भमें जानकारी अंतर्भूत है :

  • धारा (राजस्व वसूली) इकट्ठा करनेवाले कितने परिवारोंसे धारा इकट्ठा किया जा सकता है तथा कितने परिवारोंसे इकट्ठा नहीं किया जा सकता, इसकी जानकारी अंकित करने हेतु घरोंकी गिनती करें
  • साथ ही कितने किसान, ग्वाला, व्यापारी, दुकानदार तथा सेवक (नौकर) हैं, यह जानकारी अंकित करें
  • इसके साथ ही हर परिवारमें कितने युवा तथा बूढे लोग हैं, इसकी भी गिनती करें
  • उनका व्यवसाय क्या है, आय कितनी है तथा व्यय कितना है, इसकी जानकारी भी इकट्ठी करें
  • इतना ही नहीं, अपितु भटकी हुई जमातके लोगोंके विषयमें उनके स्थानांतरणका कारण क्या है, इसकी भी जानकारी इकट्ठी करें !

ऐसी सूचना दी गई थी ।

३. लोकसंख्यामें वृदि्ध, न्यून होना अथवा जितनी है उतनी ही स्थिर रहना, ये बातें जननक्षमता, मृत्यु तथा स्थानांतर मुख्य रूपसे इन तीन सूत्रोंपर निर्भर करती है तथा जनगणनाद्वारा यह एक आसान किंतु महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त होता है; तथा किया जा सकता है ।

 

– प्रा. जे.के. पवार (गोमंतक, १४.१.२०००)

 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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