जिस प्रकार हम हिंदु संस्कृति कहते है; उस प्रकार पश्चिमी सभ्यतावाली संस्कृति नहीं कह सकते; क्योंकि वह सुसंस्कृत नहीं, अपितु अधिकांश रूपसे विकृत है; इसलिए लेखमें पश्चिमी सभ्यतावाली मानसिकता ऐसा उल्लेख किया है ।
‘वैलेंटाईन डे’ क्यों मनाया जाता है ? इसका इतिहास क्या है ? ऐसे अनेक प्रश्न अपने मनमें उत्पन्न होते है । दुर्भाग्यवश इस विषयमें किसी भी प्रश्नका उचित उत्तर कहीं भी उपलब्ध नहीं है । विविध संकेतस्थलोंपर ‘‘वैलेंटाईन डे’ का इतिहास मिस्ट्रीके रूपमें संबोधित किया गया है । इसका यही अर्थ हुआ कि जिसप्रकार १ जनवरीको कुछ भी सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक, वैज्ञानिक अथवा आध्यात्मिक कारण नहीं है । तो भी यह दिवस नए वर्षके रूपमें मनाया जाता है, उसीप्रकार ‘वैलेंटाईन डे’ भी है।
१. ‘वैलेंटाईन डे’ के संदर्भमें जानकारी
हिस्ट्री.कॉम स्थल (वेबसार्इट) पर इस दिवसके विषयमें आगे दिए अनुसार जानकारी दी गई है :
१ अ. ‘वैलेंटाईन’ नामक पादरीने राजाज्ञाका अनादर करनेके कारण उसे मृत्युदंड मिलना
तीसरे शतकमें रोममें ‘वैलेंटाईन’ नामक एक पादरी (प्रीस्ट) था । उस समयके क्लॉडीयस २ नामक राजाने एक नियम लागू किया कि औरतें तथा बच्चे रहनेवाले पुरुषोंकी अपेक्षा अविवाहित पुरुष अच्छे सैनिक होते हैं; इसलिए युवा लडकोंको विवाह नहीं करना चाहिए । ‘वैलेंटाईन’ को यह अयोग्य प्रतीत हुआ एवं उसने राजाके नियमका पालन न कर छिपते-छिपाते प्रेमियोंका विवाह करना आरंभ किया । जिस समय राजा क्लॉडीयसको यह समझा, तो उसने ‘वैलेंटाईन’ की हत्या करनेका आदेश दिया ।
१ आ. ‘वैलेंटाईन’का कारागृहके अधिकारीकी युवा लडकीके साथ प्रेमके बंधनमें बंधना तथा उसने मृत्युसे पूर्व उसे भेजा हुआ पत्र आज भी उपलब्ध रहना
रोमके कारागृहमें स्थित वैलेंटाईन कारागृह अधिकारीकी युवा लडकीसे प्रेम होकर उसने उसे पत्र भेजा एवं उसमें आपके वैलेंटाईनकी ओरसे ऐसा लिखा । तबसे आज भी ऐसे लिखित स्वरुपमें पत्र उपलब्ध हैं ।
२. ‘वैलेंटाईन डे’ मनानेके तथाकथित कारण
अ. कुछ लोगोंका मत ऐसा है कि वैलेंटाईनकी पुण्यतिथि मनाने हेतु फरवरीमें वैलेंटाईन डे मनाया जाता है ।
आ. पांचवें शतकके अंतमें पोप जीलेसियसने ‘१४ फरवरी’ दिवसको ‘सेंट वैलेंटाईन डे’ के रूपमें घोषित किया । अत्यधिक समयके पश्चात इस दिवसका संबंध प्रेमके साथ स्थापित हुआ ।
३. पश्चिमी सभ्यतावाले देशोंमें भारतमें भी वैलेंटाईन डे त्यौहार समान मनाने के कारण होनेवाला धनका अपव्यय !
वैलेंटाईन डे पूरे विश्वमें विशेषतः अमेरिका, फ्रान्स, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशोंमें मनाया जाता है तथा वर्तमान समयमें भी यह दिवस भारतमें भी अन्य त्यौहारेंके समान मनाया जाता है । अमेरिकाके एक सर्वेक्षणके अनुसार वर्ष २०१३ में वैलेंटाईन डे के लिए लोगोंने कुल मिलाकर १८ सहस्र करोड डॉलर्स व्यय किए; जबकि भारतके सर्वेक्षणके अनुसार यहांके लोगोंने कुल मिलाकर १५ सहस्र करोड रुपयोंका व्यय किया ।
३ अ. फुलोंके लिए अधिकसे अधिक पैसोंका दाम लगाकर होनेवाली लूट !
इस दिवसपर लाल रंगके गुलाबके फूलोंको विशेष महत्त्व दिया जाता है । वर्ष २०१२ में देहली एवं आसपासके क्षेत्रमें फूल विक्रेताओंने १० करोडके फूलोंका विक्रय किया । अन्य दिवसपर एक गुलाबके फूलका मूल्य १२ से १५ रुपए होता है; परंतु वैलेंटाईन डे के दिन एक फूलका मूल्य २५ से ३० रुपए इतना होता है । कुछ स्थानोंपर एक फूल १०० रुपयोंको भी बिकाया जाता है । इससे ध्यानमें आता है कि फूलोंके विक्रयके माध्यमसे लोगोंको लूटा जाता है ।
३ आ. पर्यटन :
भारतमें ‘वैलेंटाईन डे’ मनानेवाले लोगोंके लिए केरल, गोवा, मसुरी तथा माऊंट अबू इत्यादि स्थानोंपर विशेष पर्यटनके ५ ते ५० सहस्र रुपयोंके पैकेजेस उपलब्ध हैं ।
३ इ. शुभकामना पत्र :
पश्चिमी सभ्यतावाले देशोंमें जनमदिन, विवाह, मृत्यु आदि अवसरपर तथा नातालके (ख्रिसमस) त्यौहारको लोग एक-दूसरेको शुभकामनापत्र भेजते हैं । भारतमें ‘वैलेंटाईन डे’ की कालावधिमों आर्चिज (Archies) नामक शुभकामनापत्र बनानेवाले प्रतिष्ठानद्वारा शुभेच्छापत्रोंका विक्रय १० गुना बढ गया । इस कालावधिमें शुभकामनापत्र बनानेवाले प्रतिष्ठानोंका लगभग ८० करोड रुपयोंका व्यवसाय होता है । (शुभकामनापत्र भेजना पश्चिमी सभ्यताकी मानसिकता है । यह मानसिकता इ.स. १९२० से १९३० की कालावधिमें भारतमें आई होगी । वर्तमान समयमें शुभकामना पत्रोंकी वार्षिक उथलपुथल ४०० करोड रुपयोंकी होती है तथा वह प्रतिवर्ष बढती ही जा रही है । शुभकामनापत्र भेजनेकी प्रथाके कारण लोगोंका एक दूसरेको व्यक्तिगत रूपसे मिलना न्यून हो गया है । कभी-कभी शुभकामनापत्र भेजना एक औपचारिकता होती है; क्योंकि उसमें सच्चा प्रेम नहीं है एवं केवल भेजना है, इस दृष्टिसे भेजा जाता है ।- संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
३ ई. उपाहारगृहमें खाना-पिना :
पश्चिमी सभ्यतावाले देशोंके समान भारतके उपाहारगृहमें खाने-पीनेका संस्कार विकसित हुआ है । भारतमें इस कालावधिमें उपाहारगृहमें खाने-पिनेके लिए कुल मिलाकर २ से ३ सहस्र करोड रुपए व्यय किए जाते हैं । संक्षेपमें ‘वैलेंटाईन डे’ की कालावधिमें भारतमें लगभग साढे चार से पांच सहस्र करोड रुपयोंका अपव्यय होता है । (पश्चिमी सभ्यतावाली मानसिकताका अनुकरण करने हेतु एक निरर्थक दिवसके लिए करोड रुपयोंका अपव्यय करनेसे देशके यथार्थ विकासके लिए आवश्यक पैसा व्यर्थ जानेके समान है । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
४. भारतीयों, क्या आपके ध्यानमें नहीं आता कि ‘वैलेंटाईन डे’ मनानेसे हानि ही हो रही है ?
४ अ. विदेशमें भी नहीं मनाए जानेवाले त्यौहार मनाया जाना ! :
भारतमें पाश्चात्त्योंको भी आश्चर्य प्रतीत होने जैसे ७ फरवरीसे १४ फरवरीतक रोज डे, प्रपोजल डे, चॉकलेट डे, टेडी डे, प्रॉमिस डे, किस डे, हग डे एवं वैलेंटाईन डे ऐसे कुल मिलाकर सलग रूपसे आठ दिवस मनाए जाते हैं । इतने दिन तो विदेशमें भी नहीं मनाए जाते । इसीसे ध्यानमें आता है कि भारतकी सामाजिक स्थिति कितनी गिर गई है !
४ आ. फूल देकर सच्चा प्रेम व्यक्त नहीं होता :
पश्चिमी सभ्यतावाले देशोंमें लडकियों एवं स्त्रियोंको फूलोंके गुत्थकी गुच्छ अत्यधिक चाह होती है । उन्हें लगता है कि फूल देनेवाला उनसे यथार्थ रुपसे प्रेम करता है । भारतमें भी इस दिन प्रेम व्यक्त करने हेतु युवा युवतियोंको गुलाबका फूल अथवा गुच्छ देते हैं । हिंदु धर्ममें प्रेम व्यक्त करनेके लिए कभी गुलाबका फूल अथवा फुलोंका गुच्छ (bouquet) नहीं दिया जाता । फूल देवी-देवताओंको अर्पित किए जाते हैं । दरवाजेपर फूलोंका तोरण बनाकर लगाया जाता है । सात्त्विकता बढानेके लिए गजरा कर सिरपर लगाते हैं तथा शुभ अवसरपर उपयोगमें लाते हैं ।
४ इ. वैलेंटाईन डे को चरमसीमापर पहुंची अनैतिकता ! :
कामवासनाकी पूर्तिके उद्देश्यसे अधिकांश लडके-लकियां वैलेंटाईन डे मनाते हैं । एक सर्वेक्षणके अनुसार लगभग ३० प्रतिशतसे अधिक लडके लकियोंसे लैंगिक संबंध रखने हेतु यह दिवस मनाते हैं । गर्भनिरोधक बनानेवाली कंपनियोंके मतानुसार अन्य दिनोंकी तुलनामें इस दिनको गर्भनिरोधकोंकी बिक्री अधिक होती है । इसका अर्थ यही है कि अविवाहित लडके-लडकियां इस दिन लैंगिक संबंध रखते हैं । फलस्वरूप अविवाहित लडकियोंको गर्भपात भी करना पडता है । संक्षेपमें इससे सामाजिक स्वास्थ्य बिगडता है । हिंदु धर्ममें विवाहसे पूर्व लैंगिक संबंध रखना निषिद्ध माना गया है ।
४ ई. लडकियोंको कष्ट देकर उन्हें प्रताडित करनेवाले रोड रोमिओ ! :
इंग्लैंड तथा यू.के. की बी.बी.सी. (BBC) के संकेतस्थलपर प्रसारित एक लेखके अनुसार वैलेंटाईन डे के कुछ सप्ताह पूर्व ही रोड रोमिओ बॉलीवूड चलचित्रके (सिनेमाके) नायक-नायिकाओंकें मिलनके जैसे आचरण करने लगते हैं एवं लडकियोंको कष्ट देते हैं ।
लडकियोंको इस कालावधिमें घरसे बाहर निकलना कठिन होता है । लडकियोंकी इच्छा अस्वीकार करनेपर कुछ लडके अपशब्द कहना, शारीरिक एवं मानसिक छल करना, बलात्कार करना, अगुवा करना तथा मुखमंडलपर एसिड फेंकना इस प्रकारसे लडकियोंको कष्ट देते हैं । इस प्रकारकी घटनाएं यों ही होती रहती हैं; परंतु इस कालावधिमें इन घटनाओंमें वृदि्ध होती दिखाई देती है ।
(इस प्रकारके कष्टोंका सामना करने हेतु लडकियोंके लिए स्वसुरक्षा प्रशिक्षण लेना अत्यावश्यक हो गया है । यदि लडकियोंने ऐसी घटनाओंका प्रतिकार नहीं किया, तो आनेवाले कालावधिमें ऐसी घटनाएं और भी बढनेकी अत्यधिक संभावना है । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
५. हिंदु संस्कृतिके समान त्यौहार मनानेसे देवी-देवताओंके तत्त्वका लाभ होना एवं वैलेंटाईन डे समान दिवस मनानेसे कोई लाभ न होना :
वैलेंटाईन डे ईसाई पंथसे संबंधित है । हिंदु धर्ममें जो कुछ त्यौहार तथा उत्सव मनाए जाते हैं, उनको आध्यात्मिक तत्त्वोंका आधार होता है, उदा. दत्त जयंती, गणेश चतुर्थी, श्रीरामनवमी आदि । इस दिन उन देवी-देवताओंका तत्त्व (दत्ततत्त्व, गणेशतत्त्व, श्रीरामतत्त्व) पृथ्वीपर अत्यधिक मात्रामें आनेसे सभीको उसका लाभ होता है । हिंदु धर्ममें संतोंकी पुण्यतिथिको उन उन संतोका तत्त्व सभीको मिलता है ।
‘वैलेंटाईन डे’, मदर्स डे, फादर्स डे, फ्रेंडशिप डे, पश्चिमी सभ्यतावाली मानसिकताके (ईसाई पंथके) हैं । इस दिन प्रेम, माता, पिता एवं मैत्रीका तत्त्व पृथ्वीपर नहीं आता । इसलिए उसका किसीको भी लाभ नहीं होता; इसीलिए हमारी ओरसे ऐसे दिवस मनाए जाना अपने देशकी आर्थिक, सामाजिक एवं पारिवारिक हानि करना ही है ।
६. युवकों, हिंदु संस्कृतिका महत्त्व ध्यानमें लें !
६ अ. हिंदु धर्ममें प्रेमको निषिद्ध न मानना :
हिंदु धर्ममें प्रेम अथवा प्रेम व्यक्त करनेको कभी निषिद्ध नहीं माना गया है । हिंदु धर्ममें मानसिक स्तरके प्रेमके भी आगे रहनेवाले आध्यात्मिक स्तरके (निरपेक्ष प्रेमको) श्रेष्ठ माना जाता है । प्रेमभाव रहे बिना प्रीति गुण विकसित करना असंभव है । यदि ऐसा है; तो हिंदु धर्म प्रेमका निषेध कैसे करेगा ?
(हिंदुओंका विरोध ‘वैलेंटाईन डे’ समान असभ्य, असांस्कृतिक एवं असामाजिक प्रथाको है । ऐसे दिवस मनाए बिना भी मनुष्य आवश्यक साध्य कर सकता है । वैलेंटाईन डे मनाकर समाजमें अनैतिकता फैलती है, स्त्रियोंका शील भ्रष्ट होता है, उनपर अत्याचार होते है । इसलिए लोगोंको उसका भान करा देना, उनका प्रबोधन करना तथा ऐसे कुप्रथाओंको रोकना ही स्वाभिमानी हिंदुओंका कर्तव्य है । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
६ आ. ‘वैलेंटाईन डे’ मनानेसे प्रेम अपने-आप नहीं बढता ! :
केवल ऐसे दिवस मनानेसे अपने मध्य प्रेम एवं मैत्रीके संबंध अपनेआप कैसे बढेंगे ? हममें प्रेमभाव बढनेके लिए प्रतिदिन प्रयास करना पडते हैं । तब कहीं कुछ समयके पश्चात हममें प्रेमभाव उत्पन्न होता है ।
६ इ. वैलेंटाईन डे को ही प्रेम व्यक्त करना संभव है, ऐसा नहीं है ! :
लडके-लडकियोंका एक दूसरेपर प्रेम होना प्राकृतिक है । यदि वैलेंटाईन डे नहीं भी रहा, तो भी एक दूसरेके विषयमें प्रेम व्यक्त कर सकते हैं । ‘वैलेंटाईन डे’ को लडके-लडकियोंने प्रेम व्यक्त नहीं किया, तो भविष्यमें वे व्यक्त नहीं कर सकेंगे ऐसा संभव नहीं है ।
६ ई. ‘वैलेंटाईन डे’ भारतमें नहीं मनाया जाता था, क्या उस समय लडके-लडकियोंमें प्रेम नहीं था ?
६ उ. हिंदुओंके कृत्यसे ही प्रेम व्यक्त होता है । इसलिए उन्हें पाश्चात्त्योंके समान मैं आपसे प्रेम करता हूं, ऐसा निरंतर कहनेकी आवश्यकता न रहना :
पाश्चात्त्य मानसिकतामें पति, पत्नी एवं बच्चे एक-दूसरेको निरंतर कहते हैं कि मैं आपसे प्रेम करता हूं । कोई घरके बाहर जाते समय ‘किस’ लेकर उपरोक्त वाक्य कहते हैं । मूलतः पाश्चात्त्योंमें स्वकेंद्रितता एवं स्वार्थ अधिक रहनेके कारण निरंतर ऐसे वाक्य कहकर उन्हें अपना प्रेम सिद्ध करना पडता है । इसके विपरीत हिंदु धर्ममें त्याग, व्यापकत्व एवं प्रीति कैसे बढाएं ? यह सिखाया गया है । इसलिए हिंदु माता, पिता एवं लडकोंको मैं आपसे प्रेम करता हूं, यह निरंतर नहीं कहना पडता । इस कृत्यसे ही सब व्यक्त होता है ।
७. हिंदु युवक-युवतियों, यह ध्यानमें लें !
७ अ. अपना यौवन देशके लिए अर्पण करनेवाले क्रांतिकारियोंको न भूलें ! :
अपनी संस्कृतिके अनुसार व्यक्तिकी अपेक्षा परिवार, परिवारकी अपेक्षा समाज एवं समाजकी अपेक्षा देश अधिक महत्त्वपूर्ण है, यही दृष्टिकोण रखकर भगतसिंह, राजगुरू एवं सुखदेव समान अनेक वीरोंने अपना यौवन अर्पण किया, जिसके कारण हमें स्वतंत्रता मिली । यदि वैलेंटाईनको प्रेमका संदेश मानकर वे विवाह कर बैठ जाते, तो क्या हमें स्वतंत्रताकी प्राप्ति होती थी ?
७ आ. हम समाजव्यवस्थाको उद्धस्त करनेवाला ‘वैलेंटाईन डे’ मनानके पीछे हम क्यों लगे हैं ? इसका विचार करें ! :
इंटरनैशनल बिजिनेस टाइम इ-दैनिक के अनुसार ‘वैलेंटाईन डे’ के दिन सुसाईड हेल्पलाईनपर सबसे अधिक फोन आते हैं । व्हॅलेंटाईन डेके दिन अपने मनके अनुसार प्रेम न मिलनेसे उत्पन्न अकेलापन एवं भग्न मानसिकता उसके लिए कारणभूत है । इस प्रकार हम समाजव्यवस्थाको उद्धस्त करनेवाला एवं अनेक व्यक्तियोंको निराशामें धकेलनेवाला दिवस मनानके पीछे क्यों पडे हैं ? हमारे पास एक कहावत है । अगलेको ठेस पिछला होशियार । हम पाश्चात्त्योंकी गलतियोंसे सिखेंगे अथवा नहीं ?
७ इ. हिंदु धर्मके आचरणसे जन्म-मृत्युके पार जाना संभव होता है , यह ध्यानमें रखकर धर्माचरण करें ! :‘वैलेंटाईन डे’ एवं इस प्रकारके अन्य डे पाश्चात्त्योंद्वारा स्थापित की गई कुप्रथाएं हैं । यदि हमने हिंदु धर्मका अभ्यास कर उसका आचरण किया, तो केवल एक ही नहीं, अपितु हमें अनेक जन्म एवं जन्ममृत्युके परे जाना संभव होता है । इस प्रकारके डे मनानेपर हमें जो सुख मिलता है; उस सुखके भी आगेका आनंद मिला देनेकी क्षमता हिंदु धर्मकी सीखमें है; इसीटिए ‘वैलेंटाईन डे’ समान दिवस मनानेकी अपेक्षा हिंदु धर्मकी उचित शिक्षा लेकर धर्माचरण करें एवं आपके मित्र-सहेलियोंको वैसा करने प्रेरित करें । ध्यानमें रखे कि जो धर्मका पालन करता है, धर्म उसीका पालन (पोषण) करता है । |
संकलक : अतुल दिघे, गोवा
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात