‘संख्या’ बढते ही मुसलमान आक्रामक क्यों हो जाते हैं ?

गत २-३ दशकोंसे इस्लाम धर्म के माननेवालोंकी हिंसक गतिविधियां पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। २००५ में समाजशास्त्री डॉ. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के माननेवालोंकी दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिजम एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।

उपरोक्त शोध ग्रंथोंके अनुसार जब तक मुसलमानोंकी जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग २ प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानून पसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (०.६ प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में १.५, कनाडा में १.९, चीन में १.८, इटली में १.५ और नॉर्वे में मुसलमानोंकी संख्या १.८ प्रतिशत है। इस लिए यहां मुसलमानोंसे किसी को कोई परेशानी नहीं है।

जब मुसलमानोंकी जनसंख्या २ से ५ प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: २, ३.७, २.७, ४ और ४.६ प्रतिशत मुसलमान हैं।

जब मुसलमानोंकी जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में ५ प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियोंपर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। उदाहरण के लिए वे सरकारों और शॉपिंग मॉल पर ‘हलाल’ का मांस रखने का दबाव बनाने लगते हैं, वे कहते हैं कि ‘हलाल’ का मांस न खाने से उनकी धार्मिक

मान्यताएं प्रभावित होती हैं। इस कदम से कई पश्चिमी देशों में खाद्य वस्तुओंके बाजार में मुसलमानोंकी तगड़ी पैठ बन गई है। उन्होंने कई देशोंके सुपरमार्कीट के मालिकोंपर दबाव डालकर उनके यहां ‘हलाल’ का मांस रखने को बाध्य किया। दुकानदार भी धंधे को देखते हुए उनका कहा मान लेते हैं।

इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानोंकी संख्या क्रमश: ५ से ८ फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशोंकी सरकारोंपर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।

जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में १० प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आर्थिक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातोंको सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारोंका जलाना हो, हरेक विवादको समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान १० प्रतिशत), इसराईल (१६ प्रतिशत), केन्या (११ प्रतिशत), रूस (१५ प्रतिशत) में हो चुका है।

जब किसी क्षेत्र में मुसलमानोंकी संख्या २० प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओंका दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान ३२.८ प्रतिशत) और भारत (मुसलमान २२ प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानोंकी जनसंख्या के ४० प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्यवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान ४० प्रतिशत), चाड (मुसलमान ५४.२ प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान ५९ प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डॉ. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानोंकी जनसंख्या ६० प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियोंका ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मोंके धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान ७० प्रतिशत), कतर (मुसलमान ७८ प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान ७५ प्रतिशत) में देखा गया है।

किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का ८० प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मोंके अल्पसंख्यकोंको उनके मूल नागरिक अधिकारोंसे भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को १०० प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान ८३ प्रतिशत), मिस्र (९० प्रतिशत), गाजापट्टी (९८ प्रतिशत), ईरान (९८ प्रतिशत), ईराक (९७ प्रतिशत), जोर्डन (९३ प्रतिशत), मोरक्को (९८ प्रतिशत), पाकिस्तान (९७ प्रतिशत), सीरिया (९० प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (९६ प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

ये ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें बिना धर्मांधता के चश्मे के हर किसी को देखना और समझना चाहिए। चाहे वे मुसलमान ही क्यों न हों ।

– विनीत नारायण

स्त्रोत : पंजाब केसरी

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​