महाराष्ट्र : महाराष्ट्र की धार्मिक नगरी नासिक में सिंहस्थ कुंभ के नाम पर मंदिर-मठ की जमीनें हड़पी जा रही हैं। इस महीने से शुरू हो रहे कुंभ मेले के लिए नासिक नगर निगम ने ३५० एकड़ जमीन किराए पर अधिग्रहीत की है। लेकिन २००३ के कुंभ मेले के लिए जिन संस्थाओं से जमीन ली गई थी, उस जमीन को विभिन्न मद में आरक्षित कर मंदिर-मठ के उद्देश्य को ही समूल नष्ट करने की कोशिश की जा रही है।
वहीं, नेताओं और प्रशासन की मिलीभगत से कुछ जमीनें बिल्डरों ने हथिया ली है। दरअसल, जिस नगर निगम के पास जमीन के संरक्षण का अधिकार था, उसी ने मनमानी की है। नासिक के तपोवन का ३०० साल पुराना श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर ट्रस्ट उनमें से एक हैं, जिसकी कई एकड़ जमीन जबरन ले ली गई लेकिन उसके बदले में ट्रस्ट को कुछ नहीं मिला। मंदिर ट्रस्ट ने नगर निगम को अपनी जमीन सिर्फ कुंभ मेले के लिए दी थी। अब स्थिति यह है कि उसमें से अधिकांश जमीन नगर निगम ने हड़प ली है।
यह मंदिर ट्रस्ट अयोध्या के मणिरामदास की छोटी छावनी की एक शाखा है। इसके मुख्य महंत नृत्यगोपालदास जी हैं, जो राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष हैं। श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर ट्रस्ट के महंत रामसनेही दास बताते हैं कि तपोवन में जहां मंदिर बना हुआ है, वहां गोशाला है और कुछ जमीन पर चारे के लिए खेती होती है। मंदिर प्रांगण का संत निवास और लांस के साथ ही जो थोड़ी बहुत जमीन बची है, उसे पार्क, रिक्रिएशन ग्राउंड और स्टेडियम आदि के लिए आरक्षित कर दिया गया है। प्राचीन सीताजी की चरण पादुका मंदिर सहित पास की जमीन भी अस्पताल के लिए आरक्षित की जा चुकी है। जबकि सन २००३ में इसका अधिग्रहण सिर्फ कुंभ मेले के लिए किया गया था।
नासिक नगर निगम ट्रस्ट की ३० एकड़ जमीन पहले ही ले चुका है लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद रकम का भुगतान नहीं कर रहा है। महंत का दावा है कि जमीन का कानूनी रिकॉर्ड मंदिर ट्रस्ट के नाम पर है फिर भी जमीन हड़पी जा रही है। आगामी १४ जुलाई को नासिक कुंभ का ध्वजारोहण होगा। पिछली बार नगर निगम प्रशासन ने कुंभ मेले के लिए १३५ एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, जिसमें से ८७ एकड़ जमीन का गोलमाल हो चुका है। कुछ जमीन पर निजी इमारतें तो कुछ जगह कॉलोनियां बन गई हैं।
स्रोत : अमर उजाला