ईरानः ‘खुदा का मजाक बनाने’ के आरोप में कवि को फांसी पर लटकाया !

फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११५ 


तेहरान- ईरान में एक कवि के लिए कलम ही उसकी जिंदगी की दुश्मन बन गई, जिसके चलते उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। ये कवि और मानव अधिकार कार्यकर्ता हाशिम शब्बानी थे। ईरान के मानव अधिकार कार्यालय के अनुसार शब्बानी को २७ जनवरी को किसी अज्ञात जेल में फांसी पर लटका दिया गया।

स्थानीय मानव अधिकार समूहों और कार्यालय के मुताबिक, ३२  साल के इस कवि पर 'खुदा का दुश्मन' होने का आरोप था। इसके अलावा इस नवयुवक को ईरान में भ्रष्टाचार फैलाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा भी बताया गया था। २०११ से उसकी फांसी की सजा के ऐलान तक वह जेल में ही बंद रहा।

५ फरवरी को शब्बानी के बारे में अमेरिका की एक एनजीओ फ्रीडम हाउस का अहम बयान भी आया था। बयान में कहा गया कि जेल में गुजारे उन सालों में शब्बानी को अलग-अलग तरीके से प्रताड़ित किया गया और उससे पूछताछ की गई।

ईरान के मानव अधिकार कार्यालय के मुताबिक केवल शब्बानी को ही फांसी की सजा नहीं दी गई, उसके साथ उसके दोस्त हादी रशेदी को भी मौत की सजा मिली। ईरान के मानव अधिकार कार्यालय के मुताबिक रशेदी और शब्बानी दोनों डायलॉग इंस्टीट्यूट के सदस्य थे। ईरान की इस्लामिक क्रांतिकारी ट्रिब्यूनल ने शब्बानी समेत १३ लोगों को खुदा के नाम पर मसखरी करने और भ्रष्टाचार फैलाने के मामले में दोषी पाया था।

बीबीसी पारसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फांसी से पहले दोषियों के परिजन को सूचना मंत्रालय ने सजा दिए जाने की जानकारी भी दी थी। परिजन की ओर से कोई उम्मीद भरा जवाब नहीं आया। परिवार के लोगों ने केवल इतना कहा कि शब्बानी की मौत के बाद उसे दफनाए जाने वाली जगह की जानकारी दे दी जाए।

रिपोर्ट के मुताबिक, दोषी कवि फांसी के पहले उसे जेल से किसी अज्ञात जगह ले जाया गया। ये ईरान सरकार की किसी को फांसी दिए जाने की सामान्य रणनीति होती है।

फांसी दिए जाने के साथ ही अपने देश में अपनी कविताओं और साहित्य प्रचार के लिए मशहूर इस युवा कवि की आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई।

ईरान के लोग भी आश्चर्यजनक मानते हैं कि ईरान के राष्ट्रपति ने भी इस युवा कवि की फांसी को अनुमति दे दी। हालांकि मीडिया की नजर में हसन रूहानी एक सभ्य,पढ़े लिखे और उदारवादी मानसिकता के माने जाते हैं।

तहेरी के मुताबिक अशरफ अल-अस्वत के पत्रकार ने लिखा है कि शब्बानी अकेला कवि नहीं हैं जिसको फांसी की सजा दी गई है। इसके पहले सईद सुल्तानपुर को उनकी शादी के दिन ही तेहरान की जेल में मार डाला गया था।

पत्र में शब्बानी ने क्या लिखा

परिवार को लिखे अपने पत्र में उसने लिखा है कि उसने खुद पर लगे आरोपों पर बचाव करने की कोशिश की है, जो कि किसी भी नागरिक का अधिकार होता है। इन सभी घटनाओं के बाद भी उसने लड़ाई के लिए सिवाय एक कलम के कभी हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया।
सवाल, जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुलग रहे हैं

1-वह खुदा का दुश्मन कैसे बन गया और उसने कैसे भ्रष्टाचार फैलाया। सवाल ये भी है कि वह क्यों राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना?

2-वह ऐसा कौन सा अपराध था, जिसके लिए उसे फांसी की सजा दे दी गई।

3- क्या उसने किसी मस्जिद और सरकारी इमारतों पर बम फेंका था?

4-क्या उसने एक आतंकी की तरह नागरिकों को धमकाया और उनकी हत्या की थी?

5- क्या उसने किसी हिंसक रणनीति को अंजाम दिया था?  

 

स्त्रोत : दैनिक भास्कर

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