जुंजाला (राजस्थान) : जुंजाला के बारे में जानकर शायद आप हैरान रह जाएंगे। राजस्थान के नागौर जिला मुख्यालय से ३५ किमी दक्षिण में अजमेर-नागौर बस मार्ग पर ही स्थित है गुसांईजी का पावन स्थल जुंजाला। इस धाम के बारे में कई तरह के पौराणिक संदर्भ और किंवदंतियां प्रचलित हैं।
५०० बीघा ओरण व लगभग १०० बीघा में फैले कच्चे सरोवर के किनारे पर गुसांईजी के इस मंदिर के गर्भगृह में शिला पर अंकित पदचिह्न ही आराधना का मुख्य केंद्र है। गुसांईजी को वामनदेव का अवतार माना गया है।
इस स्थान पर हिन्दू और मुसलमान दोनोंही संप्रदाय के लोग माथा टेककर अपनी मन्नत मांगते हैं। लाखोंकी संख्या में लोग यहां इकट्ठे होते हैं। अपने शिल्प से लगभग ६०० वर्ष पुराना लगने वाला मंदिर का शिखर काफी दूर से दिखाई देता है।
इस स्थान से जुड़ी है ये कथा…
कहते हैं कि यह पदचिह्न भगवान वामन का है। आपको मालूम ही होगा कि राजा बली से भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर ३ पग भूमि दान में मांग ली थी। भगवान वामन ने २ पग में तो राजा बली का संपूर्ण राज्य ही नाप दिया था और तब उनसे पूछा कि बता- अब यह तीसरा पग कहां रखूं ? बली ने कहा- प्रभु अब तो मेरा सिर ही बचा है।
तब तिसरा डग भरने के लिए भगवान वामन ने बली की पीठपर अपना पैर टिकाया, तो बली की पीठपर वामन का दायां पद अंकित हो गया। यही वह स्थान है, जहां वामन ने तीसरा डग भरा था।
भगवान वामन ने अपने पहले दो पैर कहां धरे थे…
कथा प्रचलित है कि जब भगवान ने वामन अवतार धारण कर पृथ्वी का नाप किया तो पहला कदम उन्होंने मक्का में रखा। वहां तक राजा बली का राज्य था। दूसरा कदम उन्होंने कुरुक्षेत्र में रखा और तीसरा पग उन्होंने ग्राम जुंजाला के राम सरोवर के पास रखा, जहां आज गुसांईजी का मंदिर है। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि समुद्र को पार कर पहला पग मक्का में, दूसरा पग उन्होंने जुंजाला में रखा था। तीसरा पग तो राजा बली के सिर पर महाबलीपुरम में रखा गया था।
जुंजाला के तीर्थ रामसरोवर में अधिकतर हिन्दू धर्मके लोग आते हैं। इसे गुसांईजी महाराज का पदचिह्न मंदिर कहते हैं।
असल में किसके हैं ये पदचिह्न
कहा जाता है कि राजस्थान के लोकदेवता और पीरो के पीर रामापीर बाबा रामदेव तथा लोकदेवता गुसांईजी समकालीन थे। दोनों गुरु भाई थे। भ्रमण के दौरान किसी बात पर रामदेव का गुसांईजी से विवाद हो गया।
गुसांईजी ने गुस्से में अपना दाहिना पैर जोर से पटककर वहीं रुक जाने का निर्णय ले लिया। जमीन पर पड़ा वह पदचिह्न अमिट बन गया, तभी से आप यहीं पर रहने लगे और गुसांईजी के नाम से इसी क्षेत्र में लोकदेवता में लीन हो गए।
बाबा रामदेव उम्र में बड़े थे इसलिए उन्होंने अपने भक्तोंको आदेश दिया कि उनके दर्शनोंके बाद उनके गुरु भाई के दर्शन जरूर करें अन्यथा ‘जात’ पूरी नहीं मानी जाएगी। आज भी राजस्थान, गुजरात, पंजाब व मध्यप्रदेश से आने वाले यात्री बाबा रामदेवजी की जात देने के पश्चात मीरां की स्थली मेड़ता से ८० किमी दूर उत्तर में स्थित जुंजाला जरूर आते हैं।
बाबा रामदेवजी के परिवार वाले भी यहां अपनी ‘जात’ का जडूला चढ़ाने जुंजाला आया करते थे। यहां मंदिर में एक पुराना जाल का पेड़ है जिसके नीचे बाबा रामदेवजी का जडूला उतरा हुआ है। इसलिए जो लोग रामदेवरा जाते थे, उन सब यात्रियोंकी जुंजाला आने पर यात्रा पूरी मानी जाती है इसलिए भादवा और माघ के महीने में मेला लग जाता है।
स्त्रोत : वेब दुनिया