इस्लामाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ की मुलाकात का शुरू में स्वागत करने के बाद पाकिस्तान के नेताओं और मीडिया ने संयुक्त बयान में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं होने पर सरकार की लानत मलामत शुरू कर दी है। साझा बयान में आतंकवाद का जिक्र किया गया और मुंबई हमलों की सुनवाई तेज करने पर जोर दिया गया जबकि कश्मीर मुद्दा नदारद रहा।
पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआइ) के नेता शाह महमूद कुरैशी ने निजी चैनल एक्सप्रेस टीवी से कहा कि साझा बयान में कश्मीर का जिक्र होना चाहिए था। यह आश्चर्यजनक है कि बयान से कश्मीर गायब है।
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सीनेटर रहमान मलिक ने कहा शरीफ के प्रति मोदी का बर्ताव नामुनासिब था। मोदी ने किसी जार की तरह बर्ताव किया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को अपने ‘सिंहासन’ की तरफ आने के लिए लंबा गलियारा पार करना पड़ा। मलिक ने कहा कि कूटनीतिक तौरतरीकों का लिहाज नहीं करते हुए मोदी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के लिए जरा सा भी शिष्टाचार नहीं दिखाया और उनका स्वागत करने के लिए वे कुछ कदम भी नहीं चले।
जियो टीवी के प्रमुख एंकर तलत हुसैन ने कहा कि साझा बयान में कश्मीर का जिक्र नहीं होना शरीफ की नाकामी है। ऐसा लगता है कि शरीफ बस मोदी को खुश करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि सरकार को भारत से सकारात्मक जवाब पाने की हड़बड़ी थी।
विदेशी मामलों पर सरकार को परामर्श देने वाले गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पाकिस्तान एंड गल्फ स्टडीज’ (सीपीजीएस) की अध्यक्ष सीनेटर सेहर कामरान ने भी साझा बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा कि बयान बस मुंबई मामले की सुनवाई का जिक्र करता है, लेकिन दीर्घकालिक कश्मीर विवाद को उजागर करने में नाकाम रहा है जो भारत की क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने वाली भूमिका को स्पष्ट करने की दिशा में एक गंवा दिया मौका है।
पाकिस्तानी सीनेटर ने कहा कि कश्मीर पाकिस्तान की शहरग (जीवन रेखा) है और इस विवाद का हल क्षेत्रीय शांति व स्थिरता की भावी संभावनाओं में निहित है। विदेश मंत्रालय ने साझा बयान में कश्मीर का जिक्र नहीं होने पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन माना जा है कि सरकार को इस पर ढेर सारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा।
स्रोत :जनसत्ता