फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११५
पेंगुइन इंडिया ने अमरीकी लेखक वेंडी डोनिगर की हिन्दू धर्म पर लिखी गई विवादस्पद किताब ‘द हिंदूज़: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को वापस लिए जाने के बाद पहली बार अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है ।
इस किताब पर हिन्दुओं की भावनाओं का आहत करने का आरोप है
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बीबीसी को भेजे ईमेल में पेंगुइन इंडिया ने कहा, "पेंगुइन बुक्स इंडिया विचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी में विश्वास करती है जो स्पष्ट तौर पर भारतीय संविधान में उल्लेखित है । पेंगुइन पूरी दुनिया में इसी सिद्धांत पर काम करती है और हम अपनी इस प्रतिबद्धता से हम कभी पीछे नहीं हटे हैं ।"
बयान के मुताबिक़, "किसी अन्य संस्था की तरह एक पब्लिशिंग कंपनी को उस देश के क़ानूनों का सम्मान करना होता है जहाँ वो काम कर रही है । फिर चाहे वो क़ानून कितने असहिष्णु क्यों न हो । साथ ही हमारी ज़िम्मेदारी अपने कर्मचारियों को किसी तरह के ख़तरे से बचाने की भी है ।"
कंपनी ने कहा, "चार साल की क़ानूनी प्रक्रिया के बाद इस सप्ताह दोनों पक्षों में सहमति हो गई है । हम इस किताब का हार्डकवर, पेपरबैक और ई-बुक संस्करण छाप चुके हैं । इस किताब के अंतरराष्ट्रीय संस्करण भारतीय पाठकों के लिए उपलब्ध रहेंगे ।"
बयान में कहा, "हम 'द हिन्दूज' को प्रकाशित करने के अपने फ़ैसले पर अडिग हैं । हम साथ ही ऐसी दूसरी किताबों को छापने के फ़ैसले पर अडिग हैं जो कुछ पाठकों की भावनाओं को आहत कर सकती हैं ।"
कंपनी ने कहा, "हमारा मानना है कि भारतीय दंड संहिता और ख़ासकर इसकी धारा २९५ए के रहते भारतीय प्रकाशकों के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी के अंतरराष्ट्रीय मानकों को पालन करना मुश्किल होगा ।"
बयान के मुताबिक़, "हमें लगता है कि यह मुद्दा न केवल भारत में सृजनात्मक आज़ादी के संरक्षण के लिए अहम है बल्कि मूलभूत मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए भी ज़रूरी हैं ।"
मामला
उल्लेखनीय है कि पेंगुइन इंडिया हाल में 'द हिन्दूज' को वापस लेने और उसकी बाक़ी बची प्रतियों को नष्ट करने के लिए सहमत हो गई थी ।
दिल्ली के साकेत में निचली अदालत में दोनों पक्षों के बीच हुए क़रार को मंज़ूरी दी थी ।
'शिक्षा बचाओ आंदोलन' संगठन का कहना था कि इस किताब से हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँची है और उसने इसे अदालत में चुनौती दी थी ।
डोनिगर ने फ़ेसबुक पर जारी एक बयान में कहा था, "मुझे समर्थन में जो मैसेज मिले हैं मैं उनसे ख़ुश हूं । मुझे भारत से भी कई लोगों ने मैसेज भेजे हैं जिनसे मैं कभी नहीं मिली लेकिन उन्होंने मेरी किताब पढ़ी है ।"
उन्होंने कहा, "जो कुछ हुआ उससे मैं दुखी और निराश हूं । लेकिन मैं इसके लिए पेंगुइन इंडिया को ज़िम्मेदार नहीं मानती हूं क्योंकि उसने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया । मुझे ख़ुशी है कि इंटरनेट के इस दौर में किसी किताब पर पाबंदी लगाना सभंव नहीं है ।"
शिक्षा बचाओ आंदोलन ने पुस्तक को वापस लेने के पेंगुइन इंडिया के फ़ैसले पर ख़ुशी जताई थी ।
स्त्रोत : बीबीसी हिंदी