‘आप’का नहीं, अपितु ‘हिंदु राष्ट्र’ ही चाहिए !

फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितिया, कलियुग वर्ष ५११५

'आप' वालोंसे क्या चूक हुआ ?
. . . लेकिन केजरीवाल कहां गलत थे, इसकीभी कारणमीमांसा होना आवश्यक है ।


अंततः 'आम' आदमी पक्षके (‘आप’के) देहलीके मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालने त्यागपत्र दिया । कांग्रेसके दुर्बल आधारपर खडी इस सरकारको निश्चित रूपसे कभी तो गिरना ही था; परंतु इन ४९ दिनकी आप सरकारने भाजपा एवं कांग्रेसकी पोल खोलते हुए  नियत समयपर त्यागपत्र दिया । उसने जनताको दिखा दिया कि जनलोकपाल समान भ्रष्टाचार विरोधी सूत्रपर भाजपा एवं कांग्रेस एक होते हैं ।

कांग्रेसियोंद्वारा निश्चित रूपसे 'आप'का विश्वासघात ! 

'आप' की कथित अपरिपक्वताको दिखाने हेतु उसके समक्ष कठिनाई उत्पन्न करने, जनमानसमें राहुल गांधीकी छबीको अंकित करने, केजरीवाल खलनायक है, ऐसा सिद्ध करने तथा पूरे देशभरमें 'आप' विरुद्ध कांग्रेसका चालू संघर्ष 'आप' विरुद्ध भाजपा होनेका चित्र खडा करनेके उद्देश्यसे कांग्रेसने अपना समर्थन दर्शाया था । सत्ता प्राप्त करना असंभव हुआ, तो प्रत्येक बहुमतके किनारेपर रहनेवाले पक्षको समर्थन देना एवं नियत समयपर उसे वापस लेना तथा अपना वर्चस्व अबाधित रखनेका प्रयास करना, यह कांग्रेसकी पूर्वसे ही नीति एवं इतिहास रहा है । इस समय भी उन्होंने बाहरसे अपना समर्थन दिया; परंतु जनलोकपाल सूत्रके समय कांग्रेसी सभागृहमें ही बैठे रहे तथा उन्होंने जनलोकपाल विधेयक विधानसभामें प्रस्तुत करनेके विरोधमें मतदान किया । परिणामस्वरुप केजरीवालको त्यागपत्र देनेका निर्णय लेना पडा । आज देहलीके उपराज्यपाल  एवं राष्ट्रपती कांग्रेसके ही हैं । कांग्रेसियोंको जनताकी नहीं, अपितु सत्ताकी ही चिंता है । इसलिए वे केजरीवालका त्यागपत्र अस्वीकार करनेका साहस नहीं दिखाएंगे ।

भाजपाको भी निश्चित रूपसे 'आप' नहीं चाहिए ! 

इस खेलमें भाजपाने कांग्रेसको पूरा सहयोग दिया । सर्वाधिक विधायक होते हुए भी सरकार स्थापित न करनेसे उसका आरंभ किया गया । १४ फरवरीको जनलोकपाल विधेयक असंविधानिक है ऐसा कहकर आपत्ति उठानेवाली भाजपाने अपनी भ्रष्टाचारविरोधी कमजोरीको सिद्ध किया । यदि विधेयक असंविधानिक था, तो क्या उसको निरस्त करना भाजपाके लिए सहज संभव नहीं था ? इससे पूर्व भी जब शीला दीक्षित सरकारद्वारा १३ विधेयक असंविधानिक रूपसे पारित करवाए गए, तब विपक्षियोंका प्रतिनिधित्व करनेवाली भाजपाने उसपर आपत्ति क्यों नहीं उठाई ? इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा भी  'आप' की सरकार नहीं चाहती थी । 

'आप' का साहस निश्चित रूपसे प्रशंसायोग्य है ! 

'आप' की सरकारने लाल दीएकी गाडी प्रयुक्त न करना, सुरक्षा अस्वीकार करना तथा इसके साथ बिजलीका मूल्य न्यून करना, अधिक जलपूर्ति करना ऐसे साहसपूर्ण निर्णय लिए । मुकेश अंबानीके विरुद्ध 'एफ.आय.आर. प्रविष्ट करनेके कारण ही 'आप' के विरोधमें भाजपा एवं कांग्रेस खौल गई । भाजप एवं कांग्रेसद्वारा मुख्यमंत्री अथवा मंत्रीके बदलनेपर पूर्वके ३ माह केवल सम्मान समारोह एवं प्रशासकीय कामकाज समझकर लेनेमें ही व्यय होते हैं । अतः 'आप' के लोगोंको सरकारी कार्योंका कोई अनुभव न होते हुए उन्होंने ४९ दिनोंमें जो साहससपूर्ण निर्णय लिए, वे प्रशंसायोग्य हैं । अतः कांग्रेस अथवा भाजपा दोनोंको ही 'आप' की हंसी उडानेका कोई अधिकार नहीं है । 

कांग्रेस एवं भाजपाद्वारा लोकराज्यकी हत्या ! 

आजतक पूरे देशमें मुख्य रूपसे भाजपा एवं कांग्रेस परस्परविरोधी राजनीति करते थे । ये पक्ष एक तो सत्तामें रहते थे अथवा विपक्षियोंमें संयुक्त रूपमें रहते थे । इस प्रस्थापित राजनीतिको विरोध करनेका केजरीवालका प्रयास कुछ मात्रामें सफल हुआ । उन्होंने कांग्रेसके आधारपर ही कांग्रेसियोंके प्रकरण बाहर निकालनेका प्रयास किया । इससे कांग्रेस एवं भाजपा भयभीत हो गए । इसीलिए केजरीवालने स्पष्ट रूपसे कहा कि अंतमें शरद पवारको भी कारागृहमें जाना पडता था । केजरीवालने अंबानीके विरोधमें सक्रियता दर्शाकर कांग्रेस एवं भाजपाद्वारा चलाई जानेवाली राजनीतिके बाजारीकरणको  (काटशह) विरोध करनेका प्रयास किया । अब भविष्यमें किसी भी चुनावके लिए समाजके सामने वे गए, तो भी जनता न्यूनतम इन सूत्रोंका स्पष्ट रूपसे विचार करेगी ! 

'आप' वालोंसे क्या चूक हुआ ?

यह सब सच है, लेकिन केजरीवाल कहां गलत थे, इसकीभी कारणमीमांसा होना आवश्यक है । 'आप' पक्षमें तत्त्वनिष्ठताका अभाव था, ऐसा कहनेमें कोई आपत्ति नहीं होगी । केवल साधारण मनुष्यका हित इसी एक उद्देश्यको समक्ष रख उन्होंने पक्ष चलानेका प्रयास किया; परंतु उनके पास निश्चित मानसिकता तथा नियोजनका ढांचा आदि कुछ नहीं था । उन्होंने साधारण लोगोंके हितके लिए दाया, बाया किसी भी मार्गका अनुसरन कर उसे आनंदसे अपनानेकी मानसिकता रखी । अतः ऐसी आलोचना आरंभ हुई कि केजरीवालके कुछ निर्णय तानाशाहीके समान थे । इसके अतिरिक्त आपवालोंके पास सभीको एकत्रित बांधकर रखनेवाला कोई विचार, व्यक्ति अथवा निष्ठा नहीं थी 

लोकराज्यके दुर्जनोंके कारण उसमें परिवर्तन होना निश्चित रूपसे असंभव ! 

केजरीवालने अपना राज्य नैतिकताके बलपर टिकानेका प्रयास किया; परंतु उन्हें उनके ही पक्षके कुछ लोगोंका सहयोग नहीं मिला । कुछ लोग छोडकर चले गए । कुछ लोगोंने पलटवार किया, जबकि कांग्रेस एवं भाजपाने तो उनका राज्य ही हथियालिया ।

केजरीवालने एक प्रकारसे वर्तमान समयकी लोकराज्यकी बीभत्स व्यवस्थामें घुसकर उसके ही माध्यमसे भ्रष्ट लोगोंको नियंत्रित करनेका प्रयास किया; परंतु लोकराज्य ही दुर्जनोंके हाथोंमें जानेके कारण उनकी एकताके सामने इस प्रयासको सफलता नहीं मिल पाई ।

इसका अर्थ यह है कि लोकराज्यमें सामान्यजन अथवा हिंदुनिष्ठोंका टिकना कठिन है ।

इसके लिए पूरी तरहसे खोखले हुए इस निरर्थक लोकराज्य तंत्रको ही परिवर्तित करना पडेगा ।.

केवल नैतिकताकी अपेक्षा धर्मकी साथ रहनेवाला राज्य अधिक समय टिक सकता है ।

यह 'आप'की असफलताका पाठ है ।

परिणामतः ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करना अनिवार्य है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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