वारकरियों को वारी रोक कर उनकी मांगों के लिए आंदोलन करना पडा, क्या इसे भाजपा राज्य के अच्छे दिन’ कह सकते हैं ? लोगों, यह स्थिती दोबारा न आए, इसलिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करें !
पुणे – गत वर्ष में उच्च न्यायालय ने पंढरपुर के पेशाबखानों की व्यवस्था, चंद्रभागा की स्वच्छता के संदर्भ में राज्यशासन तथा वारकरियों पर तीव्र शब्दों में वक्तव्य किया । अतः वारकरियों की अपकीर्ती हुई है । परिणामस्वरुप राज्यशासन न्यायालय में उचित भूमिका प्रस्तुत करें, इसलिए श्री ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी १० जुलाई को संगमवाडी में रोकी गई । वारी के इतिहास में पहली ही बार (अंध)श्रद्धाविरोधी अधिनियम के विरोध में यह वारी रोकने के पश्चात् अब दूसरी बार यह वारी रोकने की नादानी राजनेताओं पर आई है । (इस से यही सिद्ध होता है कि, भक्तगणों को भक्ति छोडकर आंदोलन करने के लिए विवश करनेवाले कांग्रेस के राज्य में तथा भाजपा के राज्य में कोई भी अंतर नहीं है ! ऐसे समय पर श्रध्दालु हिन्दुओं को अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने हेतु सक्रिय होना अनिवार्य हुआ है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
१. गत वर्ष में उच्च न्यायालय में पंढरपुर की सफाई तथा चंद्रभागा के प्रदूषण इस संदर्भ के परिवाद आरंभ हैं ।
२. इस समय न्यायालय ने वारकरियों पर पृथक प्रकार का वक्तव्य किया । परिणामस्वरूप विश्ववंद्य वारकरी संप्रदाय अपकीर्त हुआ है । उनकी प्रतिमा यात्रा में अस्वच्छता करनेवाले, खुली हवा में पेशाब के लिए बैठने वाले ऐसी हुई है ।
३. इसका विरोध करने हेतु १० जुलाई को संगमवाडी में ठिय्या आंदोलन करने की चेतावनी दी थी ।
४. वारकरियों का यह कहना है कि, पेशाबखानों की व्यवस्था अथवा नदी की सफाई यह विषय राज्यशासन के अधिकार में आते हैं । उस में वारकरियों का कुछ भी अपराध नहीं है । ऐसे होते हुए भी, वारकरियों को लक्ष्य किया गया है तथा राज्यशासन ने इस की ओर अनदेखा किया है, यह अनुचित बात है ।
५. अतः राज्यशासन ने अब वारकरियों को डेरा लगाने का प्रबंध कर देना चाहिए तथा वारकरियों की अन्य मांगे भी स्वीकार करनी चाहिए । इस निवेदन का स्वीकार करने हेतु जनपदाधिकारी ही वारी के स्थान पर उपस्थित रहें, ऐसी भूमिका दिंडीस्वामी संगठन ने अपनाने के कारण वारी पर प्रतिबंध लगाया गया ।
६. संत तुकाराम महाराज की पालकी ने शिवाजीनगर से आज प्रस्थान किया है; किंतु श्री ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी रूकने के कारण राज्यशासन की यह बडी असफलता सिद्ध होती है ।
७. सायंकाल तक राज्यशासन का प्रतिनिधी अथवा जनपदाधिकारी भी वारी के स्थान पर उपस्थित नहीं रहा; अतः वारकरियों में राज्यशासन की असंवेदनशीलता के विषय में असंतोष उत्पन्न हुआ था । (हिन्दुओ, वारकरियों के इस आंदोलन को उनकी पुष्टि देने हेतु अधिक संख्या में सहकार्य करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
८. अंत में जनपदाधिकारियों से भेंट कर वारकरियों का कहना सुनकर निवेदन स्वीकार करने के कारण पालकी मार्गस्थ हुई ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात