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बजट में अल्पसंख्यकों को लुभाने की कोशिश

फाल्गुन कृष्ण तृतीया, कलियुग वर्ष ५११५

महान आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियंस द्वारा डिजाइन किए गए संसद भवन में वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने साल 2014-15 वित्त वर्ष का अंतरिम बजट पेश करते हुए अल्पसंख्यकों को लुभाने की भरपूर चेष्टा की।
अल्पसंख्यक मामलों के विभाग के लिए उन्होंने 3711 करोड़ रुपये रखे । बीते वित्त साल के बजट में यह राशि 3.511 करोड़ करोड़ रुपये थी। यानी कि बीते साल के मुकाबले ठीकठाक वृद्धि हुई। उन्होंने बताया कि अल्‍पसंख्‍यक समुदायों को दिये जाने वाले ऋण वर्ष 2004-05 के 4,000 करोड़ रूपये से बढ़कर वर्ष 2013-14 में 66,500 करोड़ रूपये हो गए। चिदम्‍बरम ने कहा कि 10 वर्ष पहले देश के 121 जिलों में अल्‍पसंख्‍यक बहुल क्षेत्रों में अल्‍पसंख्‍यकों के 14,15,000 बैंक खाते थे। जबकि मार्च, 2013 के अंत में उनके 43,52,000 बैंक खाते थे। पूरे देश में दिसम्‍बर, 2013 के अंत तक अल्‍पसंख्‍यकों को 211,451 करोड़ रूपये के ऋण दिये गये। अब ये सारे दावे वित्त मंत्री के हैं। पर जमीनी हकीकत लगता है कि कुछ और है। केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य टिसरिग नामग्याल शानू ने हाल ही में इस लेखक से कहा था, “हमारे पास स्टाफ की भाऱी कमी है। सिर्फ 50 लोगों का स्टाफ होगा। इतने कम स्टाफ में आप हमारे से क्या उम्मीद करते हैं। जो भी मुमकिन होता है,कर देते हैं।“ क्या करते हैं ? कुछ सोचते हुए जवाब देते हुए वे कहते हैं,” हमारे काम तो काफी रहते हैं। हम सरकार को उन लोगों पर कार्रवाई की सिफारिश करते हैं,जिन पर अल्पसंख्यकों के हितों को चोट पहुंचाने के आरोप होते हैं। हमारे सदस्य मुजफ्फरनगर जैसी जगहों का दौरा करके सरकार को सिफारिश भी करते हैं पीड़ितों के पुनर्वास के हवाले से। हमारी रिपोर्ट भी आती हैं।“ और क्या करते है… “हमारा सालाना सम्मेलन होता है। इसमें पीएम भी होते हैं। अल्पसंख्यकों के मसलों पर चर्चा होती है।“

अब जरा समझ लीजिए कि ये हालत है देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यकों के सरकारी महकमें की। हां, वित्त मंत्री के अल्पसंख्यकों को लेकर दिए आंकड़े अपनी जगह ठीक हो सकते हैं। पर बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार की कोई एजेंसी इस तरफ गौर करती है कि उसकी तरफ से आवंटित राशि का इस्तेमाल किस तरह से हो रहा है। हां, इस विषय पर बहस नहीं हो सकती कि सरकार को अल्पसंख्यकों के चौतरफा विकास के लिए योजनाएं बनानी होंगी और उन्हें लागू करना होगा।

स्त्रोत : नीति सेन्ट्रल

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